ज्योतिषशास्त्र : आयुर्वेदा

अत्यधिक पसीना - हाइपरहाइड्रोसिस : कारण, लक्षण, निदान, आयुर्वेदिक उपचार

Sandeep Pulasttya

7 साल पूर्व

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पसीना आना एक प्राकृतिक क्रिया है | यह शरीर के विषाक्तीकरण की उन विधियों में से एक है जो शरीर की अतिरिक्त तरलता को बाहर निकालने एवं शरीर के तरल पदार्थ को संतुलित करने का कार्य करती है | वस्तुतः शरीर में उत्सर्जित अनावश्यक तरल पदार्थों का प्रमुख रूप से पेशाब के माध्यम से व कुछ भाग मल त्यागने   से बाहर निकलता है ।

आयुर्वेद में पसीना को मल अथवा मेटाबोलिज्म के बहिर्गामी उत्पाद के रूप मैं माना गया है। शरीर में कई प्रकार के मलों का उत्पादन होता है। स्थूल मल के रूप में  प्रमुख उत्सर्जित पदार्थ मल, मूत्र एवं पसीना बताये गए हैं।

अतः, पसीना एक स्थूल मल के साथ साथ सूक्ष्म मल कि श्रेणी में भी समलित है |

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए मूत्र एवं मल का नियमित रूप से शरीर से बाहर निकलना अति आवश्यक होता है |

भिन्न भिन्न व्यक्तियों के प्राकृतिक संविधान के आधार पर, पसीना उत्सर्जन की मात्रा भी भिन्न भिन्न होती है | शरीर में पित्त दोष अथवा पित्त वृद्धि की स्थिति, अत्यधिक पसीना उत्सर्जन का कारण बनता है। मूल रूप से पित्त प्रकृति के व्यक्तियों में अन्य व्यक्तियों से अधिक पसीना स्राव होता है। वात और कफ प्रमुख व्यक्तियों में कम पसीना स्राव होता है जब तक कि वे पित्त विकार से पीड़ित नहीं होते।

इसी प्रकार, जो व्यक्ति मानसिक विकृति, अत्यधिक मोटापे से ग्रसित होते हैं उनमें भी पसीने का स्राव अधिक होता है | अत्यधिक पसीना स्राव एक संकोचशील स्थिति है एवं कई विकारों के एक प्रमुख लक्षण या जटिलता के रूप में प्रकट हो सकता है।

 

 

अत्यधिक पसीना स्राव के प्राथमिक कारण :-

 

♦   पित्त प्रकोप (पित्त विकार) -

अत्यधिक पसीने का स्राव पित्त विकार का एक प्रमुख लक्षण है | जो व्यक्ति पित्त प्रकृति वाले होते है, उनमें स्वाभाविक रूप से दूसरों से अधिक पसीने का स्राव होता है | ऐसा उन व्यक्तिओं में मेटाबोलिज्म में वृद्धि के कारण होता है | पित्ता एवं अग्नि (मुख्य मेटाबोलिक अग्नि) को एक एवं सामान कहा गया है | वास्तव में पित्त शरीर में अग्नि का प्रतिनिधित्व करता हैं। तो स्वाभाविक रूप से जब आंत एवं ऊतकों में अग्नि गतिविधि अन्य व्यक्तियों की तुलना में अधिक होती है, तब शरीर में अत्यधिक गर्मी से प्रेरित हो पसीना स्राव की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है जो की पित्त प्रकृति के व्यक्तियों में अधिक होती है |

पसीने को पित्त का अश्रैया स्थल भी कहा जाता है, अर्थात पित्त पसीने में स्थित होता है एवं इनमें परस्पर संगत सम्बन्ध होता है | इस प्रकार पसीना शरीर में स्थित अतिरिक्त पित्त को बाहर निकालने एवं शरीर के तापमान को संतुलित करने हेतु एक तंत्र का रूप  है।

 

♦   वसा वृद्धि, मेदस्विना - (अतिरिक्त वसा, वसा मेटाबोलिज्म की त्रुटियां) -

मेदोज रोग

पसीना एक प्रकार से वसा का मल है। हम आम तौर पर देखते हैं कि जो व्यक्ति मोटापे या अधिक वजन वाले होते हैं, उनमें अपने समकक्षों की तुलना में अधिक पसीना स्राव होता है। इस प्रकार, उन लोगों में अत्यधिक पसीना आना सामान्य होता है, जिनमें वसा एवं वसा मेटाबोलिज्म का गणित गड़बड़ होता है |

ऐसा माना गया है कि अतरिक्त वसा अथवा रुग्ण वसा अत्यधिक पसीना स्राव, रोग की जनक है |

 

♦   रक्त के ऊतकों का दूषितकरण, रक्त विकार एवं उसके उत्पन्न रोग -

रक्त के ऊतकों के दूषितकरण, रक्त विकार एवं विकृति के कारण उत्पन्न रोगों एवं परिस्थितियों में, शरीर से जो अत्यधिक पसीना स्राव होता है, वह अत्यधिक दुर्गन्ध युक्त होता है |

 

♦   पसीने के वाहक स्रोत अथवा चैनलों के दूषित होने के कारण -

शरीर में पसीने के वाहक स्रोत अथवा चैनल एवं मूल कंट्रोल स्टेशन, वसा एवं त्वचा के बालों के रोम छिद्र हैं। इस प्रकार वसा एवं पसीना परस्पर संबंधपरक होते हैं।  पूर्व में भी चर्चा हुई है कि पसीना, वसा का मल है | पसीना रुपी मल, त्वचा के रोम छिद्रों के माध्यम से शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है |

अत्यधिक पसीना स्राव, पसीने के वाहक स्रोत अथवा चैनलों के दूषितकरण अथवा संदूषण के प्रमुख लक्षणों में से एक के रूप में वर्णित किया जाता है | इसमें वसा उत्तकों का दूषितकरण भी सम्मलित है।

 

♦   रक्त के ऊतकों का संदूषण, रक्त का विषाणन एवं रक्त विषाणन से उत्पन्न रोग -

शरीर से गन्दी दुर्गन्ध अत्यधिक पसीने के स्राव के कारण उठती है जो कि रक्त के ऊतकों के संदूषण एवं विकृति के परिणामस्वरूप उत्पन्न बीमारियों एवं परिस्थितियों के कारण होता है |

 

♦   दूषित व्यान वायु ( बाहरी वायु ) की अत्यधिक सक्रियशीलता -

व्यान वायु, वायु के उप-प्रकारों में से एक है इसके अन्य कार्यों में, सामग्री का वितरण महत्वपूर्ण कार्य है | व्यान वायु रक्त रस को पोषक तत्वों के साथ परिसंचरण में रखता है। रक्त में पित्त का निवास है | जब व्यान वायु रक्त रस को त्वचा की सतह पर, त्वचा को पोषण प्रदान करने के लिए पोषक तत्वों एवं सम्बंधित उत्तकों के साथ लेकर जाती है, तब रक्त में स्थित पित्त की अग्नि त्वचा में स्थित रोम छिद्रों के माध्यम से पसीने को बाहर निकालने में सहायता प्रदान करती है। इसलिए पसीना स्राव की प्रक्रिया सामान्य रूप से चलती है, व्यान वायु एवं इसके कार्य संतुलित रहते हैं | व्यान वायु की अत्यधि सक्रियशीलता रक्त की अधिक मात्रा को त्वचा की सतह पर लेकर जाती है एवं इस कारण रक्त में स्थित पित्त अत्यधिक पसीने का स्राव उत्पन्न करता है |

 

♦   समान वायु एवं पाचक पित्त के अक्ष में बाधा -

समान वायु, वायु का ही एक उपप्रकार है जो उदर में स्थित मेटाबोलिक अग्नि के निकट स्थित होती है। उदर में अग्नि पाचक पित्त के रूप में होती है | यह दोनों समन्वय स्थापित करने का कार्य करते हैं | यदि समान वायु आंधी है तो, पाचक पित्त अग्नि है | यदि इन दोनों तत्वों आंधी एवं अग्नि के मध्य परस्पर संगतता अच्छी है तो पाचन क्रिया सुखद तरीके से होता है। आंत में मौजूद एक अन्य तत्व कफ है जो बफर के रूप में कार्य करता है एवं उदर की सुरक्षा करता है जब भी वायु एवं अग्नि में  उत्तेजना अथवा अधिक वृद्धि होती है। इस प्रकार कफ एक जल निकाय के रूप में कार्य करता है। समान वायु कि सहायता से भोजन को पचाने के बाद पाचक पित्त, पचे हुए भोजन का विभाजन रस (पौष्टिक रस), मूत्र एवं मल में करता है।

समान वायु भी भोजन को पोषक तत्वों एवं मल में विभाजित करने में सहायता करता है। पसीना भी एक प्रकार का मल पदार्थ में जो मेटाबोलिज्म के इस स्तर पर अल्प मात्रा में बनता है। पसीना, शरीर में जब रक्त रस के साथ ऊपरी सतह पर पहुँचता है, तब यह शरीर से बाहर निकलता दिखाई देता है |

जब तक पाचक पित्त व समान वायु के अक्ष संतुलित रहते है, तब तक मल मूत्र उचित अनुपात में बनती हैं। किन्तु जब यह अक्ष असंतुलित हो जाते है, तब पसीना अथवा पसीना प्रक्रिया बढ़ जाती है जिस कारण अधिक पसीने का गठन होता है साथ ही पसीना स्राव भी अधिक होता है।

 

 

अत्यधिक पसीने के द्वितीयक कारण :-

इस श्रेणी में, हम यह पाते हैं कि अत्यधिक पसीना कुछ प्रमुख रोगों के लिए द्वितीयक होता है अर्थात अत्यधिक पसीना एक लक्षण अथवा प्रारम्भिक लक्षण अथवा जटिलता अथवा किसी रोग के खराब भावीफल के संकेत के रूप में उत्पन्न होता है। अत्यधिक पसीने का आयुर्वेदिक विभेदन निम्नवत दिया जा रहा है :-

 

अत्यधिक पसीना स्राव ( पूर्वसूचक लक्षण ) :-

अत्यधिक पसीना स्राव एक पूर्वसूचक लक्षण के रूप में निम्न परिस्थितियों के रूप में उभरता है -

♦   मिर्गी

♦   त्वचा रोग

♦   गाउट (गठिया)

♦   पेरीफेरल वास्कुलर रोग ( रक्त वाहिनियों में संकुचन )

 

अत्यधिक पसीना स्राव, ( पूर्ण लक्षण ) :-

♦   अत्यधिक पित्त के कारण उत्पन्न बवासीर में

♦   पित्त विकार के कारण उत्पन्न अपच में

♦   गैस्ट्राइटिस या एसिड रिफ्लक्स रोग में

♦   रक्त में गहरे रूप में निहित त्वचा रोग में

♦   पित्त विकार से उत्पन्न ज्वर में

♦   वसा उत्तकों में निहित गहरे ज्वर में

♦   ज्वर ह्रास के प्राम्भिक लक्षण के रूप में

♦   ज्वर से मुक्ति के रूप में

♦   पित्त विकार के कारण पेट का ट्यूमर होने की स्थिति में

♦   पित्त विकार के कारण जलन उत्पन्न होने की स्थिति में

♦   नवजात बच्चे द्वारा पित्त से दूषित माता का दूध पान की स्थिति में

♦   पित्त द्वारा बाधित सामान वायु की स्थिति में

♦   वसा के मेटाबोलिज्म की त्रुटियों के कारण उत्पन्न रोगों की स्थिति में

♦   पित्तामाट्ययाय - पित्त की विकृति के कारण बिगड़ी मादकता की स्थिति में

♦   स्कंद ग्रह द्वारा पीड़ित बच्चे (शिशुओं में होने वाली अनौपचारिक, अलौकिक, संक्रामक रोगों की तरह) में

♦   पागलपन की स्थिति में

♦   आंत अथवा सम्बंधित अंगों में रक्त स्राव की स्थिति में

♦   विषाक्तता की स्थिति में

♦   थकाऊ अथवा विकट रोगों के कारण उत्पन्न सिरदर्द की स्थिति में

♦   विकृत पित्त के कारण उत्पन्न उदार शूल की स्थिति में

♦   पेप्टिक अल्सर की स्थिति में

♦   विकृत पित्त के कारण सूजन उत्पन्न होने की स्थिति में

♦   अत्यधिक साँसों का हाँफना की स्थिति में

♦   ब्रोन्कियल अस्थमा की स्थिति में

♦   विकृत पित्त के कारण उत्पन्न बेहोशी की स्थिति में

♦   विकृत पित्त के कारण उत्पन्न हृदय रोग की स्थिति में

 

पसीना प्राकृतिक मल है | हमें स्वस्थ रखने के लिए इसका बाहर जाना अति आवश्यक होता है | यह शरीर से अपने साथ बहुत सारे कचरे एवं विषाक्त पदार्थों को बाहर लेकर जाता है | किन्तु अनेकों स्थितियों परिस्थितियों में अधिक पसीना स्राव न केवल एक संकोचशील स्थिति नहीं है अपितु एक हानिकारक स्थिति भी है। अत्यधिक पसीना स्राव शरीर में स्थित पानी के अनुपात को असंतुलित तो करता ही है साथ ही ऊतकों को भी हानि पहुंचाता है। अत्यधिक पसीना स्राव वात, पित्त, मेद एवं रक्त के असंतुलन अथवा कुछ रोगों से सम्बन्ध को दर्शाता है। एक लंबी अवधि के लिए अत्यधिक पसीना स्राव की स्थिति का बने रहना चिकित्सकीय परामर्श लेना आवश्यक हो जाता है क्योंकि, इसकी पृष्ठभूमि में गंभीर रोग हो सकता है। आयुर्वेदिक संदर्भों के अनुसार यह लेख अत्यधिक पसीने स्राव की विभिन्न परिस्थितियों को प्रस्तुत करता है। यह लेख इस समस्या की पृष्ठभूमि में विद्यमान रोगों के उचित निदान एवं प्रभावी उपाय प्रदान करने में सहायक सिद्ध होगा, ऐसी हमें पूर्ण आशा है |

 

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