ज्योतिषशास्त्र : आयुर्वेदा

स्वर्ण भस्म : लाभ, दुष्प्रभाव, प्रयोग मात्रा, निर्माण विधि एवं सामग्री

Sandeep Pulasttya

7 साल पूर्व

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स्वर्ण भस्म स्वर्ण से बनाई जाती है | इसका उपयोग बांझपन, अस्थमा, ऊतक क्षय, विषाक्तता आदि के आयुर्वेदिक उपचार में किया जाता है। इस औषधि का सेवन आयुर्वेदाचार्य के परामर्श के पश्चात ही करना चाहिए |

 

स्वर्ण भस्म के उपयोग :

♦   यह एक प्राकृतिक कामोद्दीपक, हृदय के लिए टॉनिक समान, प्रतिरोधक क्षमता वृद्धिकारक किन्तु पाचन में भारी होता है।

♦   स्वर्ण भस्म को रगड़कर भी प्रभाव प्राप्त किये जा सकते हैं |

♦   यह बुद्धिमत्ता, स्मृति एवं बोलने की क्षमता में सुधार करता है।

♦   यह विकृत अवशोषण, अपच, हिचकी, खून की कमी, दमा, अस्थमा, बुखार, ऊतक क्षय, क्षय रोग, अस्थिर बुद्धि, मिर्गी, स्नायुबंधन की कमजोरी, हृदय रोग, वात दोष, यौन रोग, स्मृति ह्रास, उन्माद, मनोविकृति, त्वचा के रोग, बुढ़ापा, आवाज़ बैठना आदि रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है।

♦   शरीर के खोये रंग, कान्ति एवं सौंदर्य को शीघ्र वापिस ले आता है |

♦   यह अत्यधिक भोगता या बुढ़ापे के कारण नष्ट हुई यौन शक्ति को शीघ्र वापिस ले आता है |

♦   त्वचा रोगों और योन रोगों में इसकी प्रभावशीलता असाधारण है।

♦   यह विशेष रूप से अर्धांगघात एवं पूर्ण पक्षाघात के उपचार में प्रयोग किया जाता है।

 

विषाक्तता में स्वर्ण भस्म का प्रयोग :

पुराने समय में, जब किसी व्यक्ति को विषाक्तता हो जाया करती थी, तब पहले रोगी को उल्टी कराकर पेट के जहर को बाहर निकालने के लिए प्रेरित किया जाता था। तत्पश्चात, दिल को शुद्ध करने के लिए, तांबे की भस्म का सेवन कराया जाता था। तत्पश्चात लम्बी अवधि के लिए स्वर्ण भस्म के सेवन हेतु परामर्श दिया जाता था। इस प्रकार स्वर्ण भस्म का लम्बी अवधि तक उपयोग करने से विष का प्रभाव क्षीण हो जाता था व रोगी का शरीर सोने की तरह ही शुद्ध हो जाता था |

 

त्रिदोष पर प्रभाव :-  स्वर्ण भस्म का सेवन वात, पित्त एवं कफ दोष को संतुलित करता है।

 

स्वर्ण भस्म सेवन हेतु निर्धारित मात्रा :

स्वर्ण भस्म का सेवन निर्धारित मात्रा में ही करना चाहिए | 1 रत्ती का अर्थ है 125 मिलीग्राम इसलिए, मात्रा 1/8 - 1/4 रत्ती अर्थात 15- 30 मिलीग्राम प्रति दिन है।

 

स्वर्ण भस्म सेवन मात्रा –

0 से 5 वर्ष - प्रति दिन 5 मिलीग्राम।

5 से - 10 वर्ष - प्रति दिन 10 मिलीग्राम

10 से 16 वर्ष - प्रति दिन 15 मिलीग्राम।

17  वर्ष से उप्पर - प्रति दिन 15-30 मिलीग्राम।

 

♦   स्वर्ण भस्म सेवन यदि मछली के पित्त के साथ किया जाता है तो जलन की उत्तेजना से बचाव करता है |

♦   भृंगराजा के साथ सेवन करने पर यह कामोत्तेजक प्रभाव देता है।

♦   दूध के साथ सेवन करने पर यह ताकत और प्रतिरक्षा में सुधार करता है।

♦   पुनर्नवा के साथ सेवन करने पर यह आँखों की सेहत में सुधार लाता है |

♦   वच जड़ के साथ सेवन करने पर यह मेमोरी में सुधार करता है|

♦   केसर के साथ सेवन करने पर यह त्वचा का रंग सुधारता है।

♦   निर्विशा नामक जड़ी-बूटियों के साथ सेवन करने पर यह विष के खिलाफ कार्य करता है |

♦   यह अदरक, लौंग और काली मिर्च के साथ सेवन करने पर मनोविकृति से राहत देता है |

 

स्वर्ण भस्म बनाने की विधि एवं सामग्री :

यह शुद्ध सोने से तैयार किया जाता है। भस्म बनाने के लिए अलग-अलग विधियां हैं यहाँ एक सरल विधि दी जा रही है :

एक कंटेनर लें उसमें शुद्ध सोने का पत्र दाल दें | कंटेनर में नींबू का रस एवं रस सिंदूर का पेस्ट डाल दें। कंटेनर को बंद कर दें | 4-5 घंटे के लिए वायु के अभाव में 500 डिग्री सेल्सियस ताप पर गर्म करें। सूखने पर गर्म करना बंद कर दें | ठंडा होने पर कंटेनर से निकाल कर पाउडर बना लें |

 

स्वर्ण भस्म प्रयोग में सावधानियां  :

♦   स्वर्ण भस्म के सेवन काल में बेल का फल नहीं लिया जाना चाहिए।

♦   दूध, शहद एवं घी के साथ सेवन करने पर स्वर्ण भस्म की प्रभावशीलता बढ़ जाती है।

♦   स्वर्ण भस्म के साथ स्वयं की चिकित्सा हानिकारक सिद्ध हो सकती है|

♦   स्वर्ण भस्म को निर्धारित मात्रा में, सीमित अवधि के लिए एवं चिकित्सक के परामर्श अनुसार सेवन करना चाहिए |

♦   बच्चों की पहुँच से दूर रखें |

♦   घूप की रोशनी से दूर ठन्डे स्थल पर रखें |

 

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