8 साल पूर्व
यह रत्न हिन्दी में अकीक उर्दू में हकीक एवं अंग्रेजी में अगेट के नाम से विख्यात है। इस रत्न के रासायनिक विश्लेषणानुसार असल में यह रत्न सिकता अथवा सिलिका बालू का यौगिक रूप होता है। इसे सिक्य स्फटिक भी कहा जाता हैं। इस सिकता यौगिक में एल्युमीनियम, आयरन आक्साइड, मैगनीज ऑक्साइड आदि पदार्थों का अंश मिश्रित रहता है। यह अपारदर्शक पत्थर है, परन्तु यदाकदा पारदर्शी रूप में भी मिलता हैं इसकी कठोरता का माप साढ़े छः से सात तक होता है एवं इसकी आपेक्षिक गुरुता 20.60 तक प्राप्त होती है। इस रत्न की प्राप्ति मुख्यतः ज्वालामुखी युक्त पर्वतों के निकट होती है। भारतवर्ष में यह स्टोन अत्यधिक मात्रा में प्राप्त किया जाता है। संसार के अन्य कई देशों में भी यह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
लाल, काले, पीले, सफेद, मिश्रित और हरे रंग में भी प्राप्त होने वाले इस चिकने और मोमी चमक वाले स्टोन का सौन्दर्य वास्तव में बड़ा ही मनमोहक होता है।
प्राप्ति स्थान
भारतवर्ष स्थित खम्भात प्रांत, अकीक अथवा हकीक प्राप्ति का मुख्य क्षेत्र स्थल है। वैसे, जबलपुर के निकट भेडा घाट से आगे पश्चिम दिशा की तरफ नर्मदा नदी की सम्पूर्ण तलहटी इस स्टोन से युक्त है। औंकारेश्वर के निकट, नर्मदा नदी में मुख्य रूप से और विभिन्न आकार एवं प्रकार के अकीक स्टोन प्राप्त होते हैं। प्रसिद्ध नर्मदेश्वर शिवलिंग इसी स्टोन से जल की धारा में स्वतः ही निर्मित होते रहते हैं ऐसी धारणा है।
नर्मदा नदी में प्रायः स्लेटी, पीले, चितकबरे और मिश्रित रंगों वाले अकीक स्टोन प्राप्त होते हैं। लाल रंग का अकीक स्टोन ईरान एवं यूनान आदि में अधिक मात्रा में उत्पन्न होता है। भिन्न भिन्न स्थलों के भौतिक वातावरणानुसार अकीक स्टोन विभिन्न जातियों एवं रूपों में मिलता है। किन्तु रासायनिक विश्लेषणानुसार केवल लेसमात्र का ही अन्तर मिलता है। सामान्यतः समस्त उपलब्ध अकीक स्टोन एक सामान ही होते हैं। उनमें अन्तर का मुख्य आधार रंग ही होता है। रंग भेद को ध्यान में रखते हुए अकीक स्टोन को कई वर्गों में बाँटा जाता है। उनमें दस वर्गों की गणना विशेष रूप से होती है-
1 |
अकीक |
6 |
सिजरी अथवा शजर |
2 |
यमनी |
7 |
पनघन |
3 |
गवा |
8 |
राता |
4 |
गौरी |
9 |
पालडंक |
5 |
हदीद |
10 |
पितोनिया |
उक्त सभी अकीक अथवा हकीक के ही रूप व भेद हैं परन्तु भिन्न भिन्न होने पर भी प्रभाव सबका लगभग एक सामान ही है। ऐसी मान्याता है की यदि कोई भी अकीक धारण किया जाय, तो अवश्य ही धारणकर्ता व्यक्ति भूत व प्रेत, नजर, जादू व टोना, तन्त्र मन्त्र एवं शत्रुभय से सदा ही सुरक्षित रहता है।
विशेषता
अकीक अथवा हकीक स्टोन में एक विचित्रता यह होती है कि इसके भीतर ठीक उसी प्रकार जल भरा रहता है, जिस प्रकार कि कच्चे नारियल व अण्डे में जल समाहित होता है। परन्तु जहाँ नारियल एवं अण्डे का जल मोटे अपारदर्शी छिलके के कारण दृष्टि गोचर नहीं होता वहीं अकीक अथवा हकीक स्टोन पारदर्शी होने के कारण उसके अंदर भरा नीर छलकता हुआ सा दिखाई देता है। वस्तुतः यह कार्बनिक प्रक्रिया है। चारों ओर से पूर्ण रूप से बन्द, गोल सुडौल स्टोन के अंदर छलकता नीर, देखने में भी बहुत मनभावन प्रतीत होता है। कुछ लोगों को ढ़ृड विश्वास है कि ऐसा पत्थर वास्तव में भगवान शिव का अंश होता है, और उसके अंदर भरा नीर, साक्षात् भगवान शिव की जटाओं में विराजमान गंगा का एक अलोकिक रूप है। जो भी हो, यह स्टोन सुन्दर एवं अदभुद अवश्य होता है। प्रायः कारीगर लोग ऐसा स्टोन प्राप्त होने पर उसको संगतराश कर शिवमूर्ति का आकार प्रदान कर देते हैं। जल से युक्त ऐसी शिवमूर्ति बहुत ही मूल्यवान् होती है।
उपरत्न
राता या रातरतुआ नामक विख्यात एक लाल रंग का अकीक स्टोन मूँगे का उपरत्न कहा जाता है। इसे धारण करने वाला व्यक्ति ज्वर से मुक्त हो जाता है। कुछ लोगों की धारणा है कि यमनी और राता एक ही हैं, परन्तु कुछ लोगों की धारणा है कि गहरे और पूर्णरूप से लाल रंग वाला स्टोन ही यमनी है, जबकि फीकी लालिमा युक्त स्टोन राता कहलाता है। जो भी हो, दोनों ही परस्पर अकीक के भेद हैं, और समान रूप से शुभ प्रभाव रखते हैं। लाल रंग का अकीक स्टोन रक्तातिसार रोग के शमन में बहुत कारगर माना गया है। उसे किसी जानवर (गाय, बैल, भैंस) के गले में पहना देने से नजर नहीं लगती और पशु स्वस्थ रहता है।
अकीक अथवा हकीक स्टोन का एक अन्य विख्यात रूप पितोनिया भी है। हिमालय, विन्ध्यप्रदेश और नर्मदा की तलहटी में पाया जाने वाला यह अकीक स्टोन विभिन्न रंगों में प्राप्त होता है। हरा, पीला या मटमैला रंग का होने पर भी इसमें लाल रंग के छीटें पाये जाते हैं। यह अपेक्षाकृत कुछ कठोर, वजनी और चिकना होता है। लाल रंग की बिन्दुओं से युक्त होने के कारणवर्ष ही यह रक्ताश्म, पित्तपाषाण या पित्ताश्म कहलाता है। अंग्रेजी भाषा में यह ब्लडस्टोन के नाम से विख्यात हैं।
धारण
यदि पत्थर टूटा अथवा फूटा न हो, अनगढ़, कुरूप, दरार वाला और गडढ़ेदार न हो, तो कोई भी अकीक स्टोन धारण किया जा सकता है। यह सदैव प्रभावी माना जाता है। इस स्टोन के प्राकृतिक शिवलिंग, जो नर्मदा की धारा में प्राप्त होते हैं, बहुत पवित्र माने जाते हैं। महात्माओं और सुधी पण्डितों की धारणा है कि अन्य पत्थरों से बना शिवलिंग बिना प्राण-प्रतिष्ठा किये, न तो पूजनीय होता है, न ही उसका कोई फल मिलता है। परन्तु अकीक का प्राकृतिक शिवलिंग बिना प्राण प्रतिष्ठा के ही, सदैव शक्तिमान और समर्थ रहता है। वह साक्षात् शिवजी का स्वरूप होता है।
नोट : अपने जीवन से सम्बंधित जटिल एवं अनसुलझी समस्याओं का सटीक समाधान अथवा परामर्श ज्योतिषशास्त्र हॉरोस्कोप फॉर्म के माध्यम से अपनी समस्या भेजकर अब आप घर बैठे ही ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं |
© The content in this article consists copyright, please don't try to copy & paste it.