ज्योतिषशास्त्र : रत्न शास्त्र

पुखराज रत्न का सम्पूर्ण विवरण, धारण विधि, रोगोपचार, शुद्धता परीक्षण एवं उपरत्न

Sandeep Pulasttya

7 साल पूर्व

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नवग्रहों में सबसे सम्माननीय एवं पूजनीय ग्रह बृहस्पति को देवताओं का गुरु होने का गौरव प्राप्त है। अपने ब्रह्मतेज एवं विदूषिता के लिए विख्यात बृहस्पति ग्रह को नवग्रहो में भी वैसा ही सम्मान प्राप्त है। ब्रह्माण्ड में बृहस्पति ग्रह के दर्शन जितनी तेजस्विता के साथ होते है, अपने ग्रहीय प्रभाव को भी उतनी ही प्रबलता से दिखाते हैं। जिस व्यक्ति की जन्म कुण्डली में बृहस्पति ग्रह शुभस्थिति में होता हैं, उस व्यक्ति को सुख सौभाग्य में कभी कमी नहीं रहती। परन्तु यदि यही बृहस्पति ग्रह निर्बल अथवा अशुभ स्थिति में आ जाए तो अनेक प्रकार की बाधायें एवं कष्टप्रद स्थितियाँ उत्पन्न कर देता हैं।

बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधि रत्न पुखराज है। यह एक खनिज पत्थर है और विश्व के अनेक भागों में पाया जाता है। रासायनिक प्रयोगों से प्राप्त विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि इसमें एल्युमिनियम, हाइड्रोक्सिल एवं फ्लोरीन जैसे तत्वों के मिश्रण की उपस्थित रहती है। वैसे इसकी एक अन्य जाति भी पाई जाती है जो बालुका प्रधान होती है। सिकता वर्ग का यह पुखराज कठोरता में कम, चिकना न होकर रूखा, खुरदरा और सामान्य चमक वाला होता है।

श्रेष्ठ पुखराज सफेद और पीले दोनों रंगों में प्राप्त किया जाता है। इसमें सफेद पुखराज विशेष रूप से उत्तम माना जाता है। संसार भर के कई देशों में यह रत्न उपलब्ध है अथवा पाया जाता है अतः देश काल की भिन्नता के आधार पर अन्य रंगों में भी यह रत्न उपलब्ध होता है।

पुखराज रत्न पारदर्शी रूप में उपलब्ध है। रंग भेद के आधार पर इसको भी चार वर्णों- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र में वर्गीकृत किया गया है। सफेद रंग में उपलब्ध कोई कोई पुखराज रत्न तो हीरा रत्न की भाँती ही प्रतीत होता है यही नहीं कपटी व चालाक रत्न व्यापारी तो उसे हीरा रत्न बताकर बेच भी देते हैं। यही बात पीले पुखराज के सम्बन्ध में भी आती है। पीले रंग का स्फटिक पत्थर ठीक पुखराज रत्न जैसा ही होता है। अतः इस भ्रामक रूप का लाभ उठाकर कितने ही कपटी व चालाक रत्न व्यापारी उसे असली पीला पुखराज रत्न बताकर ग्राहकों से मोटी वसूली कर लेते हैं। रूप, रंग, चमक एवं पारदर्शिता में सामान्यता होने के कारण ही सफेद पुखराज को हीरा रत्न एवं पीले रंग के स्फटिक को पुखराज रत्न बताकर बेचने में व्यापारियों को निरापद सफलता मिल जाती है। करोड़ों रुपये का व्यापार, पुखराज के नाम पर ऐसी ही धोखा धड़ी पर चलता है।

मध्य भारत के उड़ीसा प्रदेश में पीला स्फटिक पाया जाता है। अधिकांश रत्न व्यापारी अथवा जोहरी उसे पुखराज बताकर ही बेचते हैं व मोटा मुनाफा कमाते हैं। जो मूल्य, गुण तथा प्रभाव पुखराज रत्न में विधमान होते हैं वे पीले स्फटिक में बहुत ही अल्प रूप में विधमान होते है। भारतवर्ष को तो पुखराज रत्न के उत्पादक देश की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता किन्तु संसार के अन्य देशों जैसे श्रीलंका, यूराल पर्वत, ब्राजील, बर्मा एवं जापान को इसकी उत्पत्ति का गौरव प्राप्त है।

पुखराज एक बहु प्रचलित रत्न है और संसार की अनेक भाषाओं में इसका विवरण प्राप्त होता है। संस्कृत में पुष्पराग, पीतमणि, गुरुरत्न और पुष्पराज के नाम से प्रसिद्ध यह रत्न गुजराती भाषा में पीलूराज, बँगला में पोखराज, पंजाबी में फोकज और कन्नड़ में पुष्पराग कहा जाता है। बर्मी भाषा में इसका उल्लेख आउटफिया नाम से मिलता है। अंग्रेजी साहित्य में इसके लिए टोपाज शब्द प्रयुक्त किया गया है।

 

शुद्ध पुखराज की पहचान

कलयुग में धोखाघड़ी आम बात है छोटी छोटी चीजों व मुनाफे की प्राप्ति हेतु इंसान छल कपट का सहारा ले रहा है वैसे तो समस्त रत्नों के क्रय विक्रय में छल कपट होता है परन्तु पुखराज रत्न के विषय में यह अपने चरम रूप का प्रदर्शन करता है। असली नकली की पहचान करने हेतु विशेषज्ञों ने अपने कई मत प्रकट किये है जिनको अमल में लाने पर पुखराज के असली अथवा नकली होने का ज्ञान हो जाता है। इनमे से कुछ परीक्षण निम्नवत हैं -

पुखराज रत्न को गोबर से रगड़ने पर यदि चमक काम अथवा फीकी हो जाय तो रत्न नकली है, परन्तु ऐसा करने पर यदि चमक में और वृद्धि हो जाय, तो पुखराज रत्न असली है।

अधिक टॉप पर गर्म अथवा तपाये जाने पर यदि रत्न तड़क या टूट जाय तो नकली है। रंग में परिवर्तन न हो, तो भी नकली है। अधिक ताप पर चटके अथवा टूटे नहीं तो असली है एवं अधिक ताप पर तपाये जाने पर यदि रंग बदलकर एकदम सफेद हो जाय तो असली है।

किसी विषैले जन्तु द्वारा दंशित स्थान पर असली पुखराज रत्न रखने से विष का प्रभाव धीमा हो जाता है।

पुखराज को दूध में एक दिन, एक रात तक छोड़ रखें। बाद में निकालकर देखें। यदि उसकी तेजस्विता पूर्व की भाँती है, तो पुखराज रत्न असली है किन्तु यदि चमक कम अथवा फीकी पड़ने पर पुखराज के नकली होने का आभास प्राप्त होता है।

धूप में यदि पुखराज रत्न को सफेद कपड़े पर रख दिया जाए तो असली पुखराज रत्न से पीली आभा छिटकती है।

 

पुखराज रत्न धारण विधि

ज्योतिषाचार्यों के मतानुसार जिस व्यक्ति की जन्म कुण्डली में बृहस्पति ग्रह निर्बल स्थिति में है तो उस व्यक्ति को शुद्ध पुखराज रत्न धारण करना लाभदायक एवं कल्याणकर होता है। जिन कन्याओं का विवाह न हो पा रहा हो अथवा विवाह में विघ्न आ रहा हो यदि ऐसी कन्याएं पुखराज रत्न धारण करे तो विवाह शीघ्र संपन्न हो जाता है। जिन गृहणियों को सन्तान एवं पति सुख का आभाव है पुखराज रत्न धारण से सुख प्राप्त होता है। पुखराज रत्न धारण करने से अनेक प्रकार के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं दैविक विक्षेप शान्त होते हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी अनुभवी ज्योतिष विशेषज्ञ से अपनी कुण्डली का विश्लेषण कराकर विधि विधान पूर्वक  गुरु पुष्य के दिवस प्रथम प्रहर में, स्वर्ण धातु से निर्मित अँगूठी में निर्दोष व असली पुखराज रत्न  धारण करता है, तो उसे अनेक प्रकार से लाभ प्राप्त होते है।

पुखराज अथवा येलो सफायर को स्वर्ण की अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्ल पक्ष के ब्रहस्पतिवार के दिन सूर्य उदय होने के पश्चात् इसकी प्राण प्रतिष्ठा करवाकर धारण करें | इसके लिए सबसे पहले अंगुठी को दूध, गंगा जल, शहद, घी एवं शक्कर के घोल में डाल दे, फिर पांच अगरबत्ती ब्रहस्पति देव के नाम जलाए और प्रार्थना करे कि हे ब्रहस्पति देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न पुखराज धारण कर रहा हूँ कृपया करके मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करें | तत्पश्चात अंगूठी को निकाल कर "ॐ ब्रह्म ब्रह्स्पतिये नम:" का 108 बार जप करते हुए अंगूठी को अगरबत्ती के उपर से 108 बार ही घुमाए तत्पश्चात अंगूठी विष्णु जी के चरणों से स्पर्श कराकर तर्जनी में धारण करे |

आर्युवेदाचार्यों के मतानुसार हृदय रोग, श्वांस, खाँसी, दमा आदि रोगों एवं विकारों से ग्रस्त  यदि कोई व्यक्ति पुखराज रत्न धारण करते हैं, तो उसका रोग निवारित हो जाता है।

पुखराज रत्न गुणवान होने के साथ साथ कुछ विपत्तियों के जनन का भी कारण है। जरूरी नहीं है कि जो व्यक्ति इसे धारण करेगा सुख लाभ एवं अनुकूलता की ही प्राप्ति करेगा।  अतः दूसरे शब्दों में हर एक व्यक्ति के लिए यह रत्न लाभप्रद नहीं होता। बिना कुण्डली का विचार किये, यदि ग्रहों की प्रतिकूलता में पुखराज रत्न धारण कर लिया जाय, तो भयंकर परिणाम प्रदान करता है। यदि पुखराज नकली है, अथवा असली होकर भी दोषयुक्त है, तब ऐसे स्थिति में कुण्डली विश्लेषण से अनुमोदित होने पर भी लाभ की अपेक्षा भयंकर हानि पहुँचाता है। अतः असली होते हुए भी पुखराज रत्न का निर्दोष होना अति आवश्यक है। सदोष पुखराज के विषय में कहा गया है-

प्रभाहीन, धारीदार, दूधिया रंग वाला, जालदार, काली छींटों से युक्त अथवा सफेद बिन्दुओं से युक्त पुखराज रत्न का धारण अथवा प्रयोग सर्वथा निषेध होता है। लाल छींटे, गड्ढे, खरोंच और एक साथ दो रंगों से युक्त पुखराज रत्न भी अनिष्ट का कारक होता है।

 

पुखराज रत्न के उपरत्न

सच्चे एवं निर्दोष पुखराज रत्न के आभाव में रत्न ज्योतिषाचार्यों ने इसके स्थानापन्न हेतु  कुछ उपरत्नों का भी वर्णन किया है, जो पुखराज रत्न के सामान प्रभावी व गुणकारी तो नहीं, किन्तु इसकी तुलना में आंशिक रूप से अवश्य ही कुछ प्रभाव रखते हैं। ऐसी भी मान्याता है की यदि इन उपरत्नों को कुछ अधिक समय तक धारण किया जाए तो फलस्वरूप पुखराज रत्न वाला लाभ भी प्राप्त किया जा सकता है।

पुखराज के उपरत्न इस प्रकार बताये गये हैं-(1) सुनैला, (2) केरु, (3) घीया, (4) सोनल, (5) केसरी। इनमें सुनैला और केसरी भारत में पाये जाते हैं, शेष की उत्पत्ति ईरान एवं  अफगानिस्तान में होती है। सोनल श्रीलंका में भी प्राप्त होता है। केरु के उत्पत्ति स्थल बर्मा एवं  चीन प्रांत हैं। ये सभी उपरत्न हल्के पीले रंग के होते हैं तथा धारण उपरान्त पुखराज रत्न वाला प्रभाव आंशिक रूप में प्रदान करते हैं।

 

पुखराज रत्न के माध्यम से रोगोपचार

आयुर्वेद शास्त्र में स्थित वर्णनानुसार पुखराज रत्न के माध्यम से अनेको असाध्य रोगों का उपचार भी किया जाता है। एक महँगा रत्न होने के कारणवर्ष यह रत्न आमजन हेतु सुलभ नहीं है, किन्तु फिर भी जिसके पास हो, वह रोगानुसार पुखराज से इस प्रकार लाभान्वित हो सकता है-

⇒  हृदय रोग, खाँसी, रक्त स्राव, रक्त चाप, रक्तातिसार, विशूचिका, जल जाने के घाव, पित्त सम्बंधित विकार आदि के निवारणार्थ पुखराज का प्रयोग लाभकारी होता है।

⇒  थोड़ी देर पुखराज को नित्य मुँह में रखा जाय तो दन्तदोर्बल्य, मुख की दुर्गन्ध एवं अन्य गले व मुख सम्बंधित विकार जैसे -टांसिल, छाले, घाव आदि निवारित हो जाते हैं।

⇒  कास, अर्श, अस्थिवेदना आदि पर पुखराज रत्न की भस्म का प्रयोग अति लाभकारी सिद्ध होता है।

⇒  केवड़ा जल में पुखराज को घोलकर अथवा घिसकर रोगी को पिलाने से यकृत, तिल्ली एवं गुर्दे से सम्बंधित दोष अथवा विकार शान्त हो जाते हैं।

⇒  शहद के साथ पुखराज रत्न को घिसें तत्पश्चात वह घोल चाटने से, पाण्डु, कामला एवं ज्वर में लाभ मिलता है।

 

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