ज्योतिषशास्त्र : रत्न शास्त्र

रत्नों के विशिष्ट गुणों की विवेचना

Sandeep Pulasttya

8 साल पूर्व

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रत्न कुंडली स्थित निर्बल ग्रह को सबल बनाने में प्रयोग किये जाते हैं किन्तु रत्नों में कुछ अतिरिक्त विशिष्ट गुण भी होते हैं जिनके सन्दर्भ में बहुत कम ही लोगो को ज्ञात है। यहां हम रत्नों के उन्हीं कुछ विशिष्ट गुणों की विवेचना कर रहे है।

वस्तुतः एक ही रत्न में कई भिन्न भिन्न रंगों का उपस्थित होना एवं विभिन्न कोणों से उसका हर बार अलग रंग में दिखायी देना मनलुभावन भले ही लगता हो, परन्तु उस रत्न को सदोष बनाता है।

जिस रत्न से ज्योति रश्मियाँ उत्सर्जित हो रही हों, ऐसा किरणयुक्त रत्न बहुत मूल्यवान् होता है। माणिक्य रत्न एवं नीलम रत्न में यह गुण प्रायः देखने को मिलता है। सूर्य का प्रकाश पड़ने पर इस प्रकार के रत्नों से किरणें उत्सर्जित होने लगती है।

चमक की तरह दमक भी रत्नों के लिए एक महत्तवपूर्ण गुण है। दमक का अर्थ आभा होता है। दमक की अधिकता उस रत्न को ज्यादा कीमती बना देती है। पर यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक रत्न आभा युक्त ही हो। रत्न आभाहीन भी हो सकता है अथवा रत्न में आभा कम या ज्यादा भी हो सकती है। सर्वज्ञात है कि हीरे का मूल्यांकन उसकी दमक (आभा) के आधारानुसार ही होता है। भारतवर्ष में अनगिनत देवी देवताओं की प्राचीन प्रतिमाओं में ऐसे हीरे जड़े हुए हैं, जिनकी आभा से आँखे चैंधिया जाती हैं। पुराने रजवाड़ों के पास आज भी इस कोटि के रत्न सुरक्षित व संरक्षित हैं। गोला गोकर्णनाथ और बद्रीनाथ के दर्शन करने वालों भक्तों को इस तथ्य का अनुभव है कि उन मन्दिरों में स्थित देव प्रतिमाओं में जड़े हीरे आकाश में स्थित शुक्र ग्रह की भाँती दमकते रहते हैं। भगवान् बद्रीनाथजी के मुकुट में जड़े कितने ही ऐसे हीरे इतने प्रकाशमान है कि उनके भीतर से उत्सर्जित ज्योति किरणों से आँखें चोंधिया जाती हैं। इन्द्रधनुषी किरणें प्रसारित व उत्सर्जित करते वह हीरे श्रद्धालु की दृष्टि में चिरकाल तक शोभामान व दृश्यमान रहते हैं। 

रत्नों का एक अन्य गुण उनकी पारदर्शिता में भी समाहित है। रत्नों में ताप चालकता भी होती है, अर्थात कुछ रत्नो में ताप के सुचालक होने का भी गुण विद्यमान होता है। किन्तु यह प्रभाव सभी रत्नों में एक सामान न होकर अलग अलग होता है । जो रत्न ताप के सुचालक होते हैं उनका स्पर्श करने पर शीतलता की अनुभूति होती है। दूसरी श्रेणी में वे रत्न आते हैं जो ताप के कुचालक होते हैं इस तरह के रत्नो को स्पर्श करने पर ताप की अनुभूति होती है। भौतिक विज्ञान की दृष्टि से हीरा एक ताप सुचालक रत्न है, जबकि कुछ अन्य रत्न जैसे पुखराज एवं मूँगा ताप के कुचालक माने जाते हैं।

सारांश यह है कि रत्न स्वयं में अनमोल एवं अदभुद पदार्थ हैं, जोकि भौतिक और दैविक दोनों दृष्टियों से गुणसम्पन्न, प्रियदर्शी, अत्यंत प्रभावशाली एवं मूल्यवान् हैं।

भौतिक विज्ञान में सौर प्रकाश के विश्लेशण के अन्तर्गत एक शब्द मिलता है- VIBGYOR यह वस्तुतः सूर्य के सात रंगों का संकेतक शब्द है जो प्रत्येक रंग के लिए प्रयुक्त शब्द के प्रथमाक्षर को मिलाकर बनाया गया है। प्रकाश विज्ञान ने सौर-रश्मियों की व्याख्या में उनके सात रंग इस प्रकार गिनाये हैं-

(1)  बैंगनी  ( Violet )

(2)  नीला  ( Indigo )

(3)  आसमानी  ( Blue )

(4)  हरा  ( Green )

(5)  पीला  ( Yellow )

(6)  नारंगी  ( Orange )

(7)  लाल  ( Red )

इस प्रकार सूर्य गृह की रश्मियों से दृश्यमान सात रंगों के प्रथमाक्षरों को एक से सात तक क्रमिक रूप से जोड़कर सांकेतिक शब्द VIBGYOR बनाया गया है।

 

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