ज्योतिषशास्त्र : रत्न शास्त्र

हीरा रत्न का सम्पूर्ण विवरण धारण विधि एवं उपरत्न

Sandeep Pulasttya

7 साल पूर्व

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नवरत्नों में रत्न सम्राट की उपाधि प्राप्त रत्न हीरा राजसिक गुणों से सम्पन् एवं अति प्रभावशाली और मूल्यवान खनिज पत्थर की श्रेणी में क्रमबद्ध है। अपनी अदभुद आभा कठोरता एवं सौन्दर्य बोध के कारणवर्ष यह रत्न विश्व प्रसिद्द है। सौभाग्य समृद्धि एवं अपने ओज व तेज से भरपूर हीरा रत्न जहाँ भी अथवा जिस भी स्थान पर रहता है एक प्रकार की अलौकिकता का वातावरण उत्पन्न कर देता है। कदाचित् इसी कारण यह रत्न हर किसी के पास टिकता नहीं है एवं  किसी न किसी कारणवर्ष हाथ से निकल ही जाता है। विरले भाग्यवान् ही इसे सँजो पाते हैं एवं यह सबके लिए शुभ प्रभाव प्रदाता भी नहीं होता है। सामान्य व्यक्ति तो इसे पाते ही किसी न कसी उपद्रव से ग्रस्त हो जाता है। धनी मानीं और राजसिक गुणों से युक्त सौभाग्यशाली व्यक्तिगण ही इसे धारण कर सकने में सक्षम हो पाते हैं।

रासायनिक विश्लेषणानुसार हीरा रत्न वस्तुतः ठोस कार्बन है कार्बन के क्रिस्टल रूप में यह अष्टकोण अथवा षट्कोण रूप में उत्पन्न होता है। यह रत्न पारदर्शी एवं अति कठोर होता है। अपनी कठोरता के गुण के कारण ही हीरा रत्न वज्र नाम से भी सन्दर्भित किया गया है।

रासायनिक प्रक्रिया के उपरान्त जब कोयले का कार्बनिक रूप पारदर्शी रूप प्राप्त कर लेता है तब उसकी कठोरता चरम सीमा पर पहुँच जाती है कोयले के इस रूप को ही हीरा कहते हैं। किन्तु जब भी यदि भूगर्भीय रासायनिक प्रक्रिया में कहीं कोई अड़चन आ जाती है तो वह कार्बन क्रिस्टल पारदर्शी रूप नहीं ले पाता फलस्वरूप उसमें कठोरता भी नहीं आ पाती।

हीरे रत्न को संस्कृत भाषा में कुलिश, वज्र, हीकर एवं मणिवर आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है। बंगला भाषा में इसे हीरक पुकारते है व मराठी भाषा में हीनरा व कन्नड़ भाषा में बज्र तथा अरबी में अलमास एवं अंग्रेजी भाषा में डायमण्ड नाम से सम्बोधित किया जाता है।

सामान्यतः हीरा रत्न श्वेत वर्ण का होता है, जिससे हलकी नीली आभा विकिरित होती रहती है। वैसे हरी पीली नीली एवं लाल रंग की भी कुछ हीरक मणियाँ पायी जाती हैं, पर सर्वश्रेष्ठ वही होती है जो सफेद रंग की पारदर्शक हल्की नीली आभायुक्त होती है एवं जिसके पहुलओं से सतरंगी इन्द्रधनुषी किरणें निकलती हों।

रंग और आकार के आधार पर हीरे का भी वर्गीकरण किया गया है। अन्य रत्नों की भाँति, भारतीय ज्योतिष शास्त्र में हीरे को भी चार वर्ण ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य एवं शूद्र में विभक्त करके प्रत्येक वर्ण के व्यक्ति को अपने ही वर्ण का हीरा रत्न धारणीय एवं ग्रहणीय बताया गया है।

ज्योतिष एवं रत्न शास्त्रियों के मतानुसार श्रेष्ठ हीरा वही माना जाता है जो स्वच्छ व निर्मल षट्भुजी तथा अथवा अष्टभुजी आकार युक्त एवं पारदर्शी व इन्द्रधनुषी किरणों का उत्सर्जक एवं स्वयं में मौलिक रूप से प्रकाश पुँज जैसा प्रतीत होता है। इसके विपरीत दूषित हीरे अनेक प्रकार के अशुभ चिन्हों से युक्त होते हैं। पीला, दरार या छिद्र वाला, तेल जैसी चिकनी चमक से युक्त, आभाहीन, खुरदरा, विकृत, लाल बिन्दुओं से युक्त, धूमिल, टूटा या कटा हुआ, विच्छिन्न, भूरे रंग का, किसी प्रकार की छाया वाला हीरा त्याज्य माना गया है। इन अवगुणो एवं दोषों से युक्त हीरा रत्न धन धान्य व मान प्रतिष्ठा एवं जीवन का विनाशक होता है।

ज्योतिष शास्त्रियों के मतानुसार हीरा रत्न शुक्र ग्रह का प्रतिनिधि रत्न है। जिस किसी भी जातक की कुंडली में शुक्र गृह दुर्बल अथवा नीच स्थिति में होता है तो ऐसा जातक, हीरा रत्न धारण करके शुक्र गृह जनित दुर्भाग्य को सौभाग्य एवं प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदल सकता है। गुप्तेन्द्रिय विकार व मर्मस्थल दोष एवं नपुंसकता आदि से मुक्ति पाने हेतु हीरा रत्न धारण करना हितकारी होता है। सम्मोहन अथवा वशीकरण एवं भूत प्रेत बाधा निवारण हेतु भी हीरा रत्न सर्वश्रेष्ठ रत्न माना गया है। स्त्री पुरुष दोनों के ही गुप्त रोगों के निदान में हीरा रत्न को सर्वाधिक प्रसिद्धि प्राप्त है।

 

हीरा रत्न धारण विधि

हीरा शुक्र गृह का प्रतिनिधि रत्न है एवं यह जितना मूल्यवान व शुभफलदायक है विसंगति में उतना ही मारकेश भी हो जाता है। अतः जिस किसी व्यक्ति को हीरा रत्न धारण करने की इच्छा है तो वह इसे धारण पूर्व किसी अनुभवी ज्योतिषाचार्य से कुंडली का परीक्षण अवश्य ही करा ले। हीरा रत्न धारण से श्रेष्ठ फल प्राप्ति हेतु यह आवश्यक है कि उसे किसी श्रेष्ठ एवं उत्तम महूर्त में धारण किया जाए। शुक्र ग्रह का यह प्रतिनिधि रत्न यदि वृष अथवा तुला अथवा मीन राशि में शुक्र की स्थिति में अथवा शुक्रवार के दिन भरणी अथवा पूर्वाफाल्गुनी या पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र हो उस दिन हीरे को चाँदी अथवा प्लैटिनम की अंगूठी में जड्वाकर शुक्रवार के दिन, सूर्य उदय होने के पश्चात् इसकी प्राण प्रतिष्ठा करें | अंगूठी के शुद्धिकरण एवं प्राण प्रतिष्ठा करने हेतु सबसे पहले अंगूठी को पंचामृत अर्थात दूध, गंगाजल, शहद, घी और शक्कर के घोल में डाल दें, फिर पांच अगरबत्ती शुक्रदेव के नाम जलाये और प्रार्थना करे कि हे शुक्र देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न, हीरा धारण कर रहा हूँ, कृपया करके मुझे आशीर्वाद प्रदान करे | तत्पश्चात अंगूठी को पंचामृत से निकाल कर "ॐ शं शुक्राय नम:" मंत्र के 108 जप करते हुए अंगूठी को अगरबत्ती के उप्पर से 108 बार घुमाए व अंगूठी को लक्ष्मीजी के चरणों से लगाकर कनिष्टिका या मध्यमा ऊँगली में धारण करें | हीरा अपना प्रभाव 25 दिन में देना आरम्भ कर देता है|

 

हीरे के उपरत्न

चूंकि हीरा रत्न एक अत्यधिक मूल्यवान रत्न है अतः आमजन से कोसों दूर है इस कारण जो व्यक्ति हीरा रत्न नहीं खरीद सकते उनके लिए हीरे के स्थानापन्न उपरत्न ज्योतिषाचार्यों ने निश्चित किये हैं। जो लोग हीरा रत्न खरीदने में सक्षम हैं को भी हीरा रत्न खरीदते समय उसका अनुभवी रत्न विशेषज्ञ से भली प्रकार से परीक्षण करा लेनी चाहिए क्योंकि रत्नों में विशेषकर हीरा एवं पुखराज में बहुत छल कपट का प्रयोग होता है। हीरे के अभाव में उसके स्थानापन्न निम्न लिखित रत्न बताये गये है-

(1) उदाऊ, (2) दाँतला, (3) कासला, (4) विक्रान्त, (5) कुरंगी, (6) सिम्मा।

इनमें विक्रान्त अथवा तुरुमली सर्वश्रेष्ठ होता है। दाँतला एवं कुरंगी सुलभ पत्थर हैं। जोहरियों के यहाँ से सरलता पूर्वक प्राप्त हो जाते हैं।

आयुर्वेद में हीरे की भस्म का उल्लेख भी मिलता है। उदर विकार में शहद के साथ हीरा रत्न की भस्म का सेवन करने से सम्बंधित सभी रोगों का निवारण हो जाते हैं।

देह दुर्बलता अथवा वीर्य दोष व शीघ्रपतन एवं पुसंत्व का अभाव आदि रोगों के निदान हेतु हीरे की भस्म अति हितकारी होती है। दम्पति को सन्तानोत्पति हेतु सक्षम बनाने में यह भस्म निर्विवाद रूप से प्रसिद्ध है।

 

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