ज्योतिषशास्त्र : रत्न शास्त्र

प्राकृतिक तथा बनावटी रत्नों में भेद

Sandeep Pulasttya

8 साल पूर्व

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आजकल आधुनिक समय में रत्नों का व्यापार क्षेत्र काफी बढ़ गया है अतः बहुत से धन के लालची व्यक्तियों ने नकली रत्नो का निर्माण भी प्रारम्भ कर दिया हैं। सौंदर्य प्रसाधन के अतिरिक्त इन नकली रत्नों से कोई अन्य अतिरिक्त लाभ इनके धारणकर्ता को नहीं प्राप्त होता। अपितु इनके धारण से हानि होने की संभावना भी बनी रहती है। अतः यह बात ध्यान देने योग्य है की रत्न जब भी धारण किया जाए असली एवं निर्दोष हो।

 

प्राकृतिक तथा बनावटी रत्नों में भेद

प्रायः तीन प्रकार के रत्न आधुनिक समय में प्राप्त होते है-

(1) प्राकृतिक, (2) इमीटेशन, तथा (3) संश्लिष्ट रत्न।

 

(1) प्राकृतिक रत्न :-

ये वस्तुतः प्रकृति मुख्यतः पृथ्वी से ही प्राप्त होते हैं। वैसे कुछ थोड़े से रत्नों के अतिरिक्त शेष खनिज ही हैं। रत्नो के भौतिक परीक्षण से सर्वविज्ञ है कि सभी प्राकृतिक रत्न प्रायः एक जैसे ही रासायनिक संगठन के आधार पर बने होते हैं। इनमें कुछ अति मूल्यवान तथा कुछ कम मूल्य के होते हैं।

 

(2) इमीटेशन रत्न :-

इस प्रकार के रत्न काँच अथवा प्लास्टिक से बनाये जाते हैं। इनकी बनावट इतनी कुशलता से की जाती है की  कभी कभी अपनी चमक एवं रूप रंग से ये भी प्राकृतिक रत्न जैसे ही दिखाई पड़ते हैं, परन्तु ये टिकाऊ एवं प्रभावी अथवा गुणी नहीं होते।

 

(3) संश्लिष्ट रत्न :-

इन्हें प्राकृतिक रत्नों के तत्वों का मिश्रण बनाकर तैयार किया जाता है। देखने में ये भी असली जैसे ही लगते हैं, परन्तु टिकाऊपन में ये उनके समान नहीं होते। परन्तु इमीटेशन रत्नो की अपेक्षा ये अधिक टिकाऊ होते हैं।

 

इनके अतिरिक्त, असली एवं नकली, दो रत्नों को जोड़कर भी रत्न बनाये जाते हैं, जिन्हें युग्म रत्न कहते हैं।

प्राकृतिक तथा कृत्रिम रत्नों में स्थित कुछ भेदों का वर्णन निम्नवत दिया गया हैं। शुद्ध रत्न की पहचान वैसे तो पारखीजन ही कर सकते हैं, फिर भी इन तथ्यों के आधार पर आमजन उनमें भेद स्पष्ट रूप से देख सकते है-

♦   प्राकृतिक रत्नों के कण एक-समान न होकर विभिन्न आकारों में तथा अनियमित रूप में होते हैं जबकि कृत्रिम रत्नों ये वक्र रूप में दिखायी देते हैं।

♦   कृत्रिम रत्न का रंग एक जैसा होता है जबकि प्राकृतिक में यह विभिन्न भागों में भिन्न दिखायी देता है।

♦   रेशम (प्रकाशीय प्रभाव) केवल प्राकृतिक रत्नों से ही दिखायी देता है तथा कृत्रिम रत्नों में यह दिखायी नहीं देता।

♦   प्राकृतिक तथा कृत्रिम रत्नों को मिथायलीन आयोडाइड के घोल में डालने पर कृत्रिम रत्न तैरने लगता है।

♦   कृत्रिम रत्नों में आन्तरिक धारियाँ वक्र रूप में होती हैं जबकि प्राकृतिक रत्नों में सीधी होती है।

 

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