8 साल पूर्व
संसार भर में पाये जाने वाले समस्त रत्न अपने में भिन्न भिन्न रंग लिए होते हैं या यूँ कहें कि सभी रत्न भिन्न रंग के होते हैं। प्रत्येक रत्न से एक उसके रंग से सम्बंधित आभा अथवा किरणे विकिरित होती हैं। किरण चिकित्सा पधति के अनुसार इस रत्नों से उत्सर्जित अथवा विकिरित किरणे विभिन्न प्रकार के रोगों के उपचार एवं निवारण में अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाती हैं।
मानव देह की उत्पत्ति के उपरान्त ही उसमें रोगों की उत्पत्ति भी प्रारम्भ हो गई थी आयुर्वेदाचार्योँ एवं अनुभवी रत्नशास्त्रियों के मतानुसार जब किसी ग्रह विशेष की किरणें मानव देह पर उचित परिमाण में नहीं पड़ती तब इन किरणों के अभाव में मानव देह विभिन्न रोगों से ग्रस्त हो जाती है। तब विशेषज्ञ सम्बंधित ग्रह का रत्न धारण कराकर उस रंग की किरणों की आपूर्ति पूरी कराते हैं। प्राचीन काल के चिकित्सा विशेषज्ञ अथवा आयुर्वेदाचार्य इसी पधति से अभीष्ट एवं असाध्य रोगों का भी निवारण व निदान किया करते थे। आजकल ऐलोपैथी चिकित्सा पधति का सर्वत्र एवं प्रचुर मात्रा में उपयोग विभिन्न रोगों के निदान अथवा निवारण हेतु किया जा रहा है किन्तु आज भी ऐसे ऐसे आयुर्वेदाचार्य व मनीषी उपलब्ध हैं जो रत्नों के माध्यम से चिकित्सा करके मानव देह में जनित रोगों का निवारण एवं निदान कर रहे हैं।
रत्नों से विकिरित अथवा उत्सर्जित हुई किरणें विभिन्न प्रकार से रोगोपचार करती हैं। विशेषज्ञ सम्बंधित ग्रह के उपचार हेतु कुछ व्यक्तियों को रत्न धारण की सलाह देते हैं एवं कुछ को उसी रत्न से उत्सर्जित हुई किरणों से प्रभावित ओषधि का सेवन करने का परामर्श देते है अथवा कुछ व्यक्तियों को रत्न प्रक्षालित जल पिला कर उसके रोग का निदान किया जाता है अथवा कुछ पीड़ित व्यक्तियों को रत्न सम्पर्कित तेल का प्रयोग करा उसके रोग का उपचार किया जाता है जाता है एवं गम्भीर रोगों से पीड़ित व्यक्तियों को सम्बंधित रत्न की भस्म का सेवन करने का परामर्श एवं अनिवार्यता बताई जाती है। तात्पर्य यह है कि चिकित्सा जगत् में रत्नों की उपयोगिता अतिमत्वपूर्ण एवं विश्वसनीय है। नवग्रहों से सम्बन्धित रत्नों एवं उनसे उत्सर्जित किरणों के माध्यम से निवारित एवं शमित होने वाले रोगों का विवरण निम्न प्रकार से है :
ग्रहों के रत्न एवं सम्बन्धित रोग :
ग्रह - शनि, रत्न - नीलम :-
शनि ग्रह एवं नीलम रत्न दोनों बैंगनी रंग का प्रतिनिधित्व करते हैं एवं ये होते भी बैंगनी रंग के हैं। इनसे उत्सर्जित अथवा विकिरित होने वाले प्रकाश अथवा किरणों में बैंगनी रंग ही सघन प्रधान है। मानव देह में बैंगनी रंग का प्रकाश यदि अल्प मात्रा में पड़ता है तो इस कारणवर्ष मानव देह में इस रंग के प्रभाव से रक्त में उत्पन्न होने वाले तत्व विशेष की कमी होने पर इससे सम्बंधित विभिन्न रोग जैसे - स्त्री व पुरुष में जननेन्द्रिय सम्बन्धी रोग अथवा गुदा सम्बंधित रोग, वायु विकार, विष की प्रभावशीलता बढ़ जाना, वात रोग, उन्माद, मूर्छा एवं मिर्गी आदि जनित रोग हो जाते हैं।
इस प्रकार के रोग व विकार मानव देह में उत्पन्न होने पर ज्योतिषशास्त्री जन्म कुंडली का विश्लेषण कर शनि ग्रह की प्रतिकूलता इसका प्रमुख कारण बताते हैं जिसका सीधा सीधा अर्थ यह निकलता है कि बैंगनी रंग की शनि ग्रह प्रदत्त किरणें रोगी मानव की देह पर पर्याप्त मात्रा में नहीं आ पा रहे है एवं तब इस रिक्तता की पूर्ति हेतु ज्योतिषशास्त्री सम्बंधित मानव को नीलम धारण करने का परामर्श देते है।
आयुर्वेदाचार्य ऐसे रोगी को नीलम रत्न से निर्मित भस्म अथवा अन्य औषधि का सेवन करने का परामर्श देते है नीलम रत्न से विकिरित बैंगनी रंग की किरणों से रोगी का उपचार करते हैं। तात्पर्य यह है कि नीलम तत्व का प्रवेश कराकर रोगी की देह को बैंगनी किरणों से युक्त किया जाता है। यही शनि दोष निवारण हैं।
ग्रह - शुक्र, रत्न - हीरा :-
शुक्र ग्रह का प्रतिनिधि रत्न हीरा है एवं शुक्र ग्रह व हीरा रत्न से उत्सर्जित अथवा विकिरित होने वाले प्रकाश अथवा किरणों में नीला रंग ही सघन प्रधान होता है। यदि किसी व्यक्ति की देह पर नीले रंग के प्रकाश पुंज का अभाव है तो उस व्यक्ति में शुक्र ग्रह से सम्बंधित अनेकों रोग आक्रान्त हो जाते हैं जैसे- कुष्ठ रोग, मुख रोग, पौरुषहीनता, वीर्य विकार, जलघात, शीघ्रपतन आदि। अतः शुक्र ग्रह जनित किरणों की अल्पता की मात्रा को पूरी करने हेतु ज्योतिषशास्त्री हीरा रत्न धारण का परामर्श देते है जो की सर्वश्रेष्ठ माना गया है। हीरा रत्न अतिमूल्यवान् रत्न है अतः आम जन की पहुँच से दूर है। किन्तु यह प्रायोगिक सत्य है कि इसके उपयोग से चमत्कारिक रूप से लाभ प्राप्त किया जा सकता हैं।
ग्रह - बृहस्पति, रत्न - पुखराज :-
बृहस्पति अथवा गुरु ग्रह आसमानी रंग का प्रतिनिधित्व करता है एवं उसकी सम्पूर्ति हेतु प्रकृति ने पुखराज रत्न का निर्माण किया है। मानव देह पर यदि गुरु अथवा बृहस्पति ग्रह की ज्योति रश्मियों का अभाव है तो ऐसे मानव को चर्बी, स्थूलता, स्वप्नदोष, यकृत दोष, पैरों में विकृति अथवा शिथिलता आदि रोगों से ग्रस्त होना पड़ता है। बृहस्पति गृह से उत्सर्जित प्रकाश किरणों की अल्पता से जनित उक्त वर्णित रोगों के उपचार में पुखराज रत्न का उपयोग प्रायोगिक रूप से लाभकारी सिद्ध हुआ है।
ग्रह - बुध, रत्न - पन्ना :-
बुध ग्रह हरे रंग का प्रतिनिधित्व करता है। यह रंग पन्ना रत्न का भी होता है। अतः स्पष्ट है कि मानव देह पर यदि बुध गृह की किरणें अथवा रश्मियाँ अल्प मात्र में पड़ रही हैं तो इस अभाव के निवारण एवं पूर्ती हेतु पन्ना रत्न धारण ज्योतिष अनुसार उत्तम उपाय है।
बुध ग्रह से उत्सर्जित हरी रश्मियों के आभाव से मानव देह में श्वास तंत्र, कफ प्रकृति, आन्त्रशोथ, उदर विकार, चर्म विकार, स्वर भंग, जिव्हा् एवं कण्ठ तंत्र संबंधी रोग, स्वर यन्त्र एवं वाक्शक्ति हानि आदि रोग स्थान बना लेते हैं। ज्योतिषविद ऐसे रोगों के निवारण हेतु पन्ना रत्न धारण का परामर्श देते है एवं आयुर्वेदशास्त्री पन्ना रत्न से निर्मित भस्म अथवा इसके संयोग से निर्मित एवं प्रभावित ओषधियों के माध्यम से हरे रंग की किरणों की मात्रा पूर्ण कर उक्त रोगों एवं विकारों का उपचार एवं निवारण करते हैं।
ग्रह - मंगल, रत्न - मूँगा :-
मंगल ग्रह पीले रंग का प्रतिनिधित्व करता है एवं मूंगा रत्न मंगल गृह का प्रतिनिधि रत्न है। यदि किसी मानव की देह पर मंगल ग्रह से उत्सर्जित अथवा जनित पीले रंग की प्रकाश रश्मियाँ अल्प अथवा न्यून मात्र में समाहित हो रही हैं तो इस अवस्था में मानव देह में मांसपेशियों, अण्डकोष, मज्जा, अस्थि संरचना, शिरोपीड़ा, उन्माद, स्मृति दोष सम्बंधित विकार जन्म ले लेते हैं। अतः उक्त वर्णित विकारों एवं रोगों से निदान हेतु यदि ज्योतिषाचार्य एवं आयुर्वेदाचार्य मूँगे रत्न एवं उससे सम्बंधित औषधियों के प्रयोग का परामर्श देते हैं ताकि मंगल ग्रह का प्रकोप शांत किया जा सके।
ग्रह - चन्द्रमा; रत्न - मोती :-
चन्द्रमा ग्रह नारंगी रंग का प्रतिनिधित्व करता है एवं इसका प्रतिनिधि रत्न मोती है। चन्द्रमा ग्रह वस्तुतः नारंगी प्रकाश रश्मियाँ उत्सर्जित करता हैं। अतः मोती रत्न भी इसी रंग की किरणें विकिरित करता है। अतः इसी कारण चन्द्रमा ग्रह की प्रभापूर्ति में मोती रत्न का स्थान प्रमुख है।
चन्द्रमा ग्रह से उत्सर्जित रश्मियाँ मानव देह को सर्वाधिक प्रभावित करती है। इन रश्मियों के मानव देह के सम्पर्क में आने के पश्चात विभिन्न अंगों को ओज प्राप्त होता है। जब किसी मानव देह में चन्द्र रश्मियों का प्रभाव क्षीण अथवा न्यून होता है, तब उसे रक्त विकार, दुर्बलता, नेत्र विकार, दृष्टि दोष, वक्षपीड़ा, स्त्री रोग, उदर विकार, शिथिलता, विकृति, वक्रदृष्टि आदि व्याधियां एवं कष्ट आक्रांत कर लेते हैं।
विशेषज्ञ मोती रत्न को विविध विकारों एवं रोगों के निवारण एवं शमन हेतु उपयोग करते हैं। जहाँ मोती धारणा करने से चन्द्र ग्रह सम्बन्धी दोष निवारण होते है, वही मोती के अन्य ओषधीय उपयोग विभिन्न रोगों के निदान में चमत्कारी प्रभाव दिखाते हैं।
ग्रह - सूर्य, रत्न - माणिक्य :-
नवग्रहों में सूर्य ग्रह को समस्त ग्रहों का स्वामित्व प्राप्त है। सूर्य गृह लाल रंग का प्रतिनिधित्व करता है। सूर्य गृह प्रत्यक्ष रूप में भी बड़ा तेजस्वी, ज्वलन्त, प्रकाशमान एवं शक्ति सम्पन्न है। वास्तव में सूर्य विभिन्न प्रकार की प्रज्जवलित गैसों का समूह है। अपनी उष्णता के गुण के आधार पर इसे ऊर्जा का अक्षय अनन्त भण्डार भी कहा गया है।
सूर्य गृह की लाल रंग की रश्मियों की अल्पता अथवा न्यूनता की स्थिति में मानव देह में हृदय दोर्बल्य, दृष्टि दोष एवं अस्थि पीड़ा आदि व्याधियां एवं विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
इस प्रकार यह एक विज्ञान सम्मत तथ्य है कि प्रत्येक रत्न एक ग्रह विशेष की किरणों का संचय स्वयं में करता है। मानव जब सम्बंधित रत्न धारण करता है तब उस रत्न के माध्यम से संचति ग्रह रश्मियाँ मानव की देह में स्वभावतः प्रविष्ट होती रहती हैं। इस प्रकार उस ग्रह की किरणों से उत्पन्न दोष विकार शान्त एवं निवारित हो जाते हैं।
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