8 साल पूर्व
रत्नो की मुख्यतः तीन श्रेणियाँ हैं - पारदर्शी एवं अल्पपारदर्शी तथा अपारदर्शी।
इन तीनो में पारदर्शी रत्नों को सर्वश्रेष्ठ श्रेणी का कहा जाता है। पारदर्शी रत्नों को भी दो भागों में विभक्त किया गया है - रंगीन रत्न व सादे रत्न
रंगीन रत्न
रंगीन रत्न के गुण के अनुसार जब इस प्रकार का रत्न हल्के रंग का होता है तो उसकी पारदर्शिता सुरक्षित रहती है जबकि रंगीन रत्न का गहरा रंग पारदर्शिता को हल्के रंग की अपेक्षा बहुत घटा देता है, इस कारणवर्ष रत्न का मूल्य ह्रास हो जाता है। रंगीन रत्न की विशेषता इसी में हे कि वह हल्के रंग का चमकदार व स्पष्ट तथा स्वच्छ एवं पूर्णतया पारदर्शी हो।
सादे रत्न
(1) अपारदर्शी - सादे रत्नों में भी कुछ रत्न अपारदर्शी होते है। इसका कारण सम्बंधित रत्न के घनत्व में कछ ऐसे तत्वों की उपस्थिति है जो उस रत्न की पारदर्शिता में ह्रस कर देते हैं बल्कि समाप्त तक कर देते हैं। जो रत्न सादा श्रेणी के होते हैं मुख्यतः पारदर्शी ही होते है। ऐसे रत्नो की गुणवत्ता एवं शोभा उनकी बनावट पर निर्भर करती है। रत्न का आभा युक्त होना तो प्राथमिक गुण है ही।
(2) अल्पपारदर्शी - अल्पपारदर्शी रत्न श्रेष्ठता के अनुसार दूसरी श्रेणी में रखे जाते हैं। ऐसे रत्न पूर्ण रूप से पारदर्शी न होकर कुछ धुँधले होते हैं। इस प्रकार के रत्न भी कई रंगों में मिलते हैं एवं गहरे व हलके रंगों के आधारानुसार इनकी पारदर्शिता भी परस्पर कम अथवा ज्यादा मिलती है।
अपारदर्शी रत्न सामान्य स्टोन की तरह ही होते हैं। पारदर्शिता होने का उनमें कोई गुण नहीं मिलता। सामान्य पत्थर से उनकी भिन्नता, उनके सुलभता एवं भारी वजन व खुरदरेपन एवं आकार व प्रकार में अनिश्चित तथा आभाहीन होने के गुण के आधारानुसार होती है। जबकि अपारदर्शी रत्न उससे सर्वथा भिन्न श्रेणी का स्टोन होता है। वह दुर्लभ एवं आकार में छोटा व चिकनापन युक्त एवं सुनिश्चित व विशिष्ट आकार एवं प्रकार युक्त तथा प्रभायुक्त रूप में प्राप्त होता है। चमक एवं कठोरता का गुण उसमें अवश्य ही होता है। अपारदर्शी रत्नों में फीरोजा सबसे प्रमुख रत्न है।
(3) पारदर्शी - पारदर्शी रत्नों में सर्वोच्च स्थान हीरा रत्न को प्राप्त है। वस्तुतः नीलम एवं पुखराज रत्न भी पारदर्शी होते हैं।
स्थायित्व
पारदर्शिता की परख के पश्चात रत्नों का मूल्यांकन उनकी कठोरता अथवा दृढ़ता के गुण के आधारानुसार होता है। जो रत्न जितने अधिक कठोर एवं ढ़ृड हैं वे उतने ही दीर्घजीवी व श्रेष्ठ रत्न माने गए हैं। जिन रत्नो पर कोई बाह्य प्रक्रिया अथवा वातावरण प्रभाव न डाल सके, प्रत्येक जलवायु, ऋतु, तापमान, देश स्थिति में जो रत्न सदा एक समान रहे, उसकी प्रभा, उसकी रूपाकृति में कोई परिवर्तन न हो, वही रत्न उत्तम श्रेणी का माना जाता है। उस पर रासायनिक प्रयोग करने पर भी प्रभावित नहीं होता। दृढ़ता के कारण वह टूट फूट और खरोंच से बचा रहता है। अधिकतम संघर्ष सहन कर सकने वाले रत्न का मूल्य भी अधिकतम होता है। हीरा, पन्ना, पुखराज तथा मूँगा आदि रत्न अपनी दृढ़ता व कठोरता एवं दीर्घजीवन के लिए विश्व विख्यात हैं।
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