8 साल पूर्व
ज्योतिष से सम्बंधित यूँ तो कई बड़े बड़े ज्योतिषाचार्यों एवं ऋषि मुनियों ने के ग्रन्थ व पुस्तक लिखी हैं जिनसे कई विवाद एवं विरोधाभास जुड़े है। किन्तु इन सबमें एक प्रमुख एवं सर्वमान्य ग्रन्थ ‘वृहत्संहिता’है जो आचार्य वराहमिहिर द्वारा रचित है। इस ग्रन्थ में आचार्य वराहमिहिर ने पौराणिक विवरण को आधार बनाकर रत्नों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विवेचना की है।
प्रसिद्ध दैत्यराज बलि, जिसे छलने के लिए भगवान विष्णु ने ‘बामन’ रूप धारण किया था, की अस्थियों से कुछ रत्नों की तथा असुरराज वृत्रासुर के आतंक से देवताओं को मुक्ति दिलाने हेतु अपनी अस्थियाँ दान करने वाले महर्षि दधीचि की अस्थियों से भी अनेक रत्नों की उत्पत्ति हुई है। आचार्य वराहमिहिर ने इस प्रसंग की विस्तृत विवेचना अपने ग्रन्थ ‘वृहत्संहिता’ में की है। उक्त ग्रन्थ के रत्नाध्याय में उन्होंने विभिन्न रत्नों की उत्पत्ति इस प्रकार बतायी है-
हीरा- इस रत्न की उत्पत्ति राजा बलि के कपाल-खण्डों से हुई है।
मोती- मोती रत्न का जन्म राजा बलि के मनस्तत्व से हुआ है।
माणिक्य- माणिक्य रत्न की उत्पत्ति राजा बलि के रुधिर से हुई है।
पन्ना- पन्ना रत्न की उत्पत्ति में राजा बलि के पित्त से हुई।
प्रबाल- प्रबाल रत्न की उत्पत्ति राजा बलि के समुद्र में गिरे हुए रक्त से हुई।
पुखराज- पुखराज रत्न की उत्पत्ति बलि के माँस से हुई है।
नीलम- नीलम रत्न की राजा बलि के नेत्रों की पुतलियों से हुई है।
चन्द्रकान्त मणि- इस मणि की उत्पत्ति राजा बलि की आँखों से हुई है।
गोमेद- गोमेद रत्न की उत्पत्ति राजा बलि के मेद से हुई है।
फीरोजा- फिरोजा रत्न की उत्पत्ति राजा बलि की नसों हुई है।
लहसुनिया- इस रत्न की उत्पत्ति राजा बलि के यज्ञोपवीत से उस समय हुई जब देवताओं ने यज्ञोपवीत को छिन्न कर दिया।
भीमपाषाण- इस रत्न की उत्पत्ति में राजा बलि के वीर्य का योगदान रहा है।
मासर मणि- इस मणि की उत्पत्ति राजा बलि के मल व मेद से हुई।
लाजावर्त- इस रत्न की उत्पत्ति राजा बलि के केशों से हुई है।
उलूक मणि- इस मणि की उत्पत्ति में राजा बलि की जीभ प्रमुख कारक है।
पारस- राजा बलि का वक्ष फट जाने पर उनका हृदय भूमि पर गिरा तत्पश्चात उस हृदय से पारस पत्थर का जन्म हुआ।
स्फटिक मणि- राजा बलि के स्वेद का यह दूसरा रूप है।
उपलक मणि- यह रत्न राजा बलि के कफ से उत्पन्न हुआ है।
भीष्मक- राजा बलि का सिर कट जाने पर उनके मस्तक से यह रत्न उत्पन्न हुआ था।
तैल मणि- राजा बलि के त्वचा भाग से इस मणि की उत्पत्ति हुई।
घृत मणि- यह रत्न राजा बलि के कुक्षि भाग से उत्पन्न हुआ था। इसे करकौतुक भी कहते है।
आचार्य वराहमिहिर के ग्रन्थ ‘वृहत्संहिता’ के मतानुसार उक्तवर्णित 21 रत्नों की उत्पत्ति का मूल आधार राजा बलि का शरीर है। जब वे आहात होकर धराशायी हुए तब उन्ही के अंग प्रत्यंग से इन रत्नों का प्रादुर्भाव हुआ। भले ही यह कथा अप्रमाणिक, अविश्वसनीय और यथार्थ से नितान्त परे हो; किन्तु यह अटल सत्य है कि रत्नों में कुछ न कुछ अलौकिकता अवश्य होती है। प्रत्येक रत्नधारक ने इसका अनुभव भी किया है।
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