ज्योतिषशास्त्र : रत्न शास्त्र

नवग्रहों के मूलरत्न व उनके उपरत्न

Sandeep Pulasttya

8 साल पूर्व

gem-stones-substitutes-nine-planets-grah-ratan-upratan-astrology-jyotishshastra-hd-image

सर्वविदित है कि प्राचीन काल से रत्नों के विषय में भी यह बात दीघर है कि जिस प्रकार उपग्रहों के रत्न अथवा नवरत्न निर्धारित हैं ठीक उसी प्रकार नवरत्नों के उपरत्नों की भी व्यवस्था की गई है। यह व्यवस्था निर्धारित करने हेतु कारण स्पष्ट है, यदि शुद्ध रत्न प्राप्त नहीं हो रहा तब  पूर्ण लाभ न सही उपरत्न के माध्यम से अपितु थोड़ा कम लाभ ही सही, प्रभाव तो होगा ही। यह भी सर्वविदित सत्य है कि उपरत्न अपने मूल रत्न की समानता नहीं कर सकते, किन्तु जहाँ मूल रत्न के आभाव में कुछ न हो वहाँ यह कुछ तो करते ही हैं। एक उक्ति है - ‘कुछ नहीं’ की अपेक्षा ‘थोड़ा’ ही मिल जाना ठीक रहता है’ ।

इस दृष्टिकोण को रखते हुए रत्नों के स्थनापन्न व पूरक उपरत्नों की परिकल्पना की गई एवं विशेषज्ञों के परीक्षण में उपरत्न सफल भी सिद्ध हुए। अतः जिस जातक को धारण हेतु मूलरत्न उपलब्ध नहीं हो पा रहा हो तो जातक को सम्बंधित रत्न के स्थान पर उसके उपरत्न से ही काम चला लेना चाहिए। उपरत्न कोई भावनात्मक प्रतीक नहीं हैं बल्कि ठोस सत्य पर आधारित होते हैं।

 

ग्रहों से सम्बंधित रत्न एवं उनके उपरत्नों का विवरण निम्न वर्णित है :-

 

ग्रह

रत्न

उपरत्न

सूर्य

माणिक्य

लालड़ी, सूर्यमणि, लाल (जर्द), ताम्रमणि (तामड़ा) मैसूरी, माणक (सींगली)।

चन्द्रमा

मोती

ओपल, चन्द्रकान्त (मूनस्टोन), मुक्ताशुक्ति, निमरू, चन्द्रमणि (श्वेत पुखराज, नीलसंग, गोरी संग) गोदन्ता।

मंगल

मूँगा

विद्रुम (प्रवालमूल), राता (लाल अकीक)।

बुध

पन्ना

बैरुज (एक्वामैरीन), मरगज, जबरजद (हरितमणि), पन्नी।

गुरु (बृहस्पति)

पुखराज

सुनेहला, धुनेला, केरू, सोनल, केसरी, स्फटिक, टाटरी (इसे लोग धारणीय नहीं मानते), घीया।

शुक्र

हीरा

दाँतला, काँसला, उदाऊ, तर्कु, सिम्मा, कुरंगी, विक्रान्त (कुछ लोग तर्कु अर्थात् तुरमली को विक्रान्त कहते हैं। यह कई रंगों में प्राप्त होता है)। हीरे का सर्वश्रेष्ठ उपरत्न विक्रान्त है जो इसी नाम से जौहरियों के पास मिलता है।

शनि

नीलम

जमुनिया] लीलिया (नीली), कटेला (कुछ लोग लाजवर्त और फीरोजा को भी नीलम का उपरत्न मानते हैं)

राहु

गोमेद

तुरसावा, जरकन

केतु

लहसुनिया

अलेक्जेण्डर (अलक्षेन्द्र), श्योनाक्ष, व्याघ्राक्ष, कर्केटक (क्राइसोलाइ- हेम वैदूर्य)।

 

उक्तवर्णित प्रमुख नौ रत्नों के अतिरिक्त अन्य बहुत से रत्न अथवा मूल्यवान् पत्थर धारणीय होते हैं परन्तु उनके उपरत्नों की व्यवस्था नहीं की गयी है। वे अपने मौलिक रूप में ही धारण किये जाने पर ही फलदायक होते हैं।

 

नोट : अपने जीवन से सम्बंधित जटिल एवं अनसुलझी समस्याओं का सटीक समाधान अथवा परामर्श ज्योतिषशास्त्र  हॉरोस्कोप फॉर्म के माध्यम से अपनी समस्या भेजकर अब आप घर बैठे ही ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं |

 

© The content in this article consists copyright, please don't try to copy & paste it.

सम्बंधित शास्त्र
हिट स्पॉट
राइजिंग स्पॉट
हॉट स्पॉट