9 साल पूर्व
जीवन में उतार चडाव तो आते जाते रहते हैं परन्तु कभी कभी ऐसा समय आता है कि कुण्डली में सबकुछ ठीक होने के उपरान्त भी व्यक्ति आकस्मिक रूप से संकटग्रस्त हो जाता है। यह संकट दैहिक, दैविक या भौतिक कुछ भी हो सकता है। अतः उस संकटपूर्ण समय एवं परिस्थिति से बचाव एवं आकस्मिक उत्पन्न हुई समस्या के समाधान हेतु कुछ विशेष रत्नों के प्रयोगों की आवश्यकता जनित हुए। अतः मनीषीजनो ने खोज बीन कर त्वरित समाधान हेतु रत्नो की उपयोगिता एवं महत्तव पर प्रकाश डाला एवं अपनी खोज को आमजन हेतु उपलब्ध भी कराया। उदाहरणस्वरूप कुछ रोग एवं उनके समाधान व कारक रत्नों के नाम प्रस्तुत कर रहे हैं-
हृदय रोग
हृदय रोग अथवा दिल की बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति यदि माणिक्य रत्न पहने तो लाभान्वित होगा।
मिर्गी रोग
मूर्छा, मिरगी, हिस्टीरिया, भ्रम एवं उन्माद जैसे रोगों से ग्रस्त व्यक्ति यदि मोती रत्न धारण करे तो इसके प्रभाव से अनुकूल परिणाम प्राप्त कर सकता है।
रक्ताल्पता
देह में रक्त की कमी एवं उससे उत्पन्न दुर्बलता, शक्तिक्षीणता जैसे विकारों से ग्रस्त व्यक्ति मूँगा रत्न का प्रयोग कर अनुकूल परिणाम प्राप्त कर सकता है।
श्वास रोग
दमा अर्थात् श्वास रोग के उपचार में औषधियां तो लेनी ही चाहिए; यदि साथ में पन्ना रत्न भी धारण कर लिया जाए तो औषधीय प्रभाव में और भी अधिक वृद्धि हो जाती है।
यकृत दोष
पाचन संस्थान सम्बंधित रोग, यकृत अथवा लीवर विकार के उपचार एवं निवारण हेतु पुखराज रत्न धारण अनुकूल व प्रभावी परिणाम देता है।
वीर्य विकार
वीर्यदोष अथवा इससे सम्बंधित एवं जनित रोगों के निदान में हीरा रत्न सर्वाधिक शक्तिशाली सिद्ध हुआ है।
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