ज्योतिषशास्त्र : लाल किताब

आपका दाम्पत्य जीवन सुखी होगा अथवा नहीं? लाल किताब अनुसार जाने !

Sandeep Pulasttya

8 साल पूर्व

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सभी दम्पतियों के नोक झोंक के किस्से प्रायः देखने सुनने को मिलते रहते है। ये नोक झोंक एवं रूठना मनाना कभी कभी का हो एवं अल्प समय तक ही अस्तित्व में रहे तो परस्पर प्रेम में वृद्धि का कारक होता है किन्तु यदि यही नोक झोंक आये दिन लगी रहे व लड़ाई झगड़ों में बदल कर विकराल रूप धारण कर लिया करे तो यह सब कुण्डली स्थित ग्रह दोष एवं योगों के कारण होता है। प्रायः वर एवं कन्या की कुण्डली मिलान के समय पंडित अथवा ज्योतिषी गृह मैत्री के अंकों को देखकर ही कुण्डली मिलान का फलित बता देते हैं जो की हर दशा में सही नहीं होता है। वर एवं कन्या की कुण्डली मिलान में ग्रहों का भी विशेष योगदान होता है। निम्नवत कुछ विशेष ग्रह योग एवं लक्षणों के सम्बन्ध में विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्हे पढ़कर साधारण दंपत्ति भी अपनी कुण्डली में स्थित दाम्पत्य के फलित का आंकलन कर सकते हैं।

 

♦   जन्म कुण्डली में जब बुध ग्रह एवं शुक्र ग्रह पर शत्रु ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो तो दंपत्ति के मध्य भारी मतभेद अथवा पूर्ण सम्बन्ध विच्छेद अर्थात तलाक होता है।

♦   जन्म कुण्डली में जब बुध ग्रह एवं शुक्र ग्रह दोनों उच्च स्थिति में हों एवं शनि की दृष्टि सूर्य पर पड़ रही हो तो ऐसी स्थिति में दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है।

♦   जन्म कुण्डली में जब बुध ग्रह प्रथम अथवा अष्टम भाव में हो एवं शुक्र ग्रह अशुभ न हो तो ऐसी स्थिति में दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है।

♦   जन्म कुण्डली में जब बुध ग्रह पंचम अथवा अष्टम भाव में हो एवं अशुभ अथवा पापी हो, शुक्र ग्रह चतुर्थ अथवा सप्तम भाव में हो, गुरु ग्रह नीच व अशुभ का होकर दशम भाव में हो एवं सूर्य पंचम भाव में स्थित हो तो ऐसी स्थिति में विवाहोपरांत पत्नी की मृत्यु होती है।

♦   जन्म कुण्डली में जब सूर्य ग्रह अथवा केतु ग्रह की दृष्टि बुध ग्रह पर पड़ती हो तो ऐसी स्थित में विवाहोपरांत पत्नी अपने पति की मृत्यु का कारण बनती है अथवा ऐसे पति को पत्नी के कारण मृत्यु तुल्य कष्ट प्राप्त करता है।

♦   जन्म कुण्डली में जब शुक्र ग्रह के अगले अथवा पिछले भाव में पापक ग्रह स्थित होते हैं एवं शुक्र के भाव से चौथे अथवा आठवें भाव में सूर्य, मंगल अथवा शनि ग्रह में से कोई एक ग्रह स्थित हो, अथवा तीनो एकसाथ युति में स्थित हों तो ऐसे जातक की पत्नी की मृत्यु जलने के कारण होती है।

♦   जन्म कुण्डली में शुक्र ग्रह जब शत्रु ग्रहों से पीड़ित होता है तो ऐसी स्थिति में जातक की एक से अधिक पत्नियां होती हैं किन्तु इसके उपरान्त भी जातक का दाम्पत्य जीवन सुखी नहीं होता है।

♦   जन्म कुण्डली में शुक्र एवं शनि ग्रह एक साथ युति में स्थित हो अथवा शनि ग्रह की दृष्टि सूर्य ग्रह पर पड़ रही हो एवं कुण्डली में कोई नर ग्रह शत्रु ग्रह के साथ युति में न स्थित हो तो ऐसी स्थिति में दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है।

♦   विवाहोपरांत बुध एवं शुक्र ग्रह के साथ सूर्य का किसी भी रूप अथवा प्रकार से सम्बन्ध दाम्पत्य सुख एवं परस्पर प्रेम का कारक होता है।

♦   विवाहोपरांत बुध एवं शुक्र ग्रह के साथ चन्द्रमा का किसी भी रूप अथवा प्रकार से सम्बन्ध दाम्पत्य सुख शान्ति, धन एवं लम्बी आयु का कारक होता है।

♦   विवाहोपरांत बुध एवं शुक्र ग्रह के साथ मंगल का किसी भी रूप अथवा प्रकार से सम्बन्ध संतान के सुख एवं दुःख का कारक होता है।

♦   विवाहोपरांत बुध एवं शुक्र ग्रह के साथ गुरु का किसी भी रूप अथवा प्रकार से सम्बन्ध दाम्पत्य सुख एवं प्रेम का कारक होता है।

♦   विवाहोपरांत बुध एवं शुक्र ग्रह के साथ शनि का किसी भी रूप अथवा प्रकार से सम्बन्ध दंपत्ति के मकान एवं संपत्ति का कारक होता है।

♦   विवाहोपरांत बुध एवं शुक्र ग्रह के साथ राहु का किसी भी रूप अथवा प्रकार से सम्बन्ध दंपत्ति की शत्रुता एवं मृत्यु का कारक होता है।

♦   विवाहोपरांत बुध एवं शुक्र ग्रह के साथ केतु का किसी भी रूप अथवा प्रकार से सम्बन्ध दंपत्ति के सांसारिक सुख का कारक होता है।

 

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