8 साल पूर्व
गायत्री मन्त्र में मूलतः 24 अक्षर हैं। प्रत्येक अक्षर एक देवता की शक्ति का संक्षिप्त रूप है। इस प्रकार 24 अक्षरों से निर्मित गायत्री मन्त्र, वस्तुतः 24 देवताओं की सामूहिक शक्ति का पुंजीभूत रूप है। भगवान् के 24 अवतारों की शक्ति भी इसमें समाहित है।
महर्षियों ने सामान्य साधकों की सुविधा के लिए प्रत्येक देवता की तुष्टि हेतु मन्त्र को पृथक्-पृथक् रूपों में व्यक्त करके यह सुविधा प्रदान कर दी है, साधक किसी विशेष लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सम्बन्धित देवता को प्रसन्न कर सकता है। इस व्यवस्था में उन्होंने समस्त देवताओं (24) के लिए मन्त्रोच्चार के भिन्न भिन्न शब्द निर्धारित कर दिये हैं।
चौबीसों देवताओं के लिए, उनके गुण प्रभावसहित, गायत्री मन्त्र के चौबीसों रूप प्रस्तुत हैं। इन्हें सामान्य रूप से प्रतिदिन जपकर लाभ उठाया जा सकता है-
(1) गणेश - गायत्री मन्त्र
ओइम् एक दंष्ट्राय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो बुद्धिः प्रचोदयात्।
प्रभाव :- विघ्नों का निवारण एवं जटिल कार्यों में सरलता।
(2) हनुमान - गायत्री मन्त्र
ओइम् अंजनी सुताय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नोमारुतिः प्रचोदयात्।
प्रभाव :- कर्मनिष्ठा, कर्तव्यपरायणता की पुष्टि।
(3) शिव - गायत्री मन्त्र
ओइम् पंचवक्त्राय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र प्रचोदयात्।
प्रभाव :- उपद्रवों का शमन, शान्ति, कल्याण।
(4) लक्ष्मी - गायत्री मन्त्र
ओइम् महालक्ष्म्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि तन्नो लक्ष्मीःप्रचोदयात्।
प्रभाव :- धन संपत्ति, ऐश्वर्य, यश, पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि।
(5) राम - गायत्री मन्त्र
ओइम् दाशरथये विद्महे सीताबल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात्।
प्रभाव :- मर्यादा सम्मान में वृद्धि व सुरक्षा।
(6) कृष्ण - गायत्री मन्त्र
ओइम् देवकी नन्दनाय विद्मये वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्णः प्रचोदयात्।
प्रभाव :- कर्मक्षेत्र की सफलता; क्रियाशीलता में वृद्धि।
(7) तुलसी - गायत्री मन्त्र
ओइम् श्री तुलस्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।
प्रभाव :- परमार्थ भावना और सेवावृत्ति का विकास।
(8) विष्णु - गायत्री मन्त्र
ओइम् नारायण विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।
प्रभाव :- परिवार पालन की क्षमता में वृद्धि।
(9) सूर्य - गायत्री मन्त्र
ओइम् भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्।
प्रभाव :- रोग मुक्ति।
(10) चन्द्र - गायत्री मन्त्र
ओइम् क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्तवाय धीमहि तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्।
प्रभाव :- मानसिक क्लेश, चिन्ता, अवसाद, निराशा से मुक्ति।
(11) यम - गायत्री मन्त्र
ओइम् सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नो यमः प्रचोदयात्।
प्रभाव :- मृत्यु भय से मुक्ति।
(12) वरुण - गायत्री मन्त्र
ओइम् जलबिम्बाय विद्महे नील पुरुषाय धीमहि तन्नो वरुणः प्रचोदयात्।
प्रभाव :- स्नेह-भावना, प्रणय-माधुर्य की वृद्धि।
(13) नारायण - गायत्री मन्त्र
ओइम् नारायण विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो नारायणः प्रचोदयात्।
प्रभाव :- प्रशासनिक प्रभाव में वृद्धि। अधिकार क्षमता।
(14) नृसिंह - गायत्री मन्त्र
ओइम् उग्रनृसिंहाय विद्महे बज्रनखाय धीमहि तन्नो नृसिंह प्रचोदयात्।
प्रभाव :- पराक्रमवृद्धि, पुरुषार्थपुष्टि में वृद्धि।
(15) दुर्गा - गायत्री मन्त्र
ओइम् गिरिजायै विद्महे शिवप्रियायै धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।
प्रभाव :- विघ्नों पर विजय, शत्रुनाश, दुःख-दलन की क्षमता।
(16) ब्रह्म - गायत्री मन्त्र
ओइम् चतुर्मुखाय विद्महे हंसारूढ़ाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात्।
प्रभाव :- उत्पादन क्षमता में वृद्धि।
(17) राधा - गायत्री मन्त्र
ओइम् वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात्।
प्रभाव :- जीवन में प्रेमभाव की पूर्णता।
(18) सरस्वती - गायत्री मन्त्र
ओइम् सरस्वत्यै विद्महे ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्।
प्रभाव :- स्मरण शक्ति, मेघा, ज्ञान की वृद्धि।
(19) सीता - गायत्री मन्त्र
ओइम् जनकनंदिन्यै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि तन्नो सीता प्रचोदयात्।
प्रभाव :- तपःशक्ति में वृद्धि।
(20) अग्नि - गायत्री मन्त्र
ओइम् महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्नो अग्निः प्रचोदयात्।
प्रभाव :- तन, मन, प्राण, समस्त इन्द्रियों में तेजस्विता।
(21) पृथ्वी - गायत्री मन्त्र
ओइम् पृथ्वी दैव्र्य विद्महे सहस्रमूत्यै धीमहि तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात्।
प्रभाव :- दृढ़ता, धैर्य, सहिष्णुता की वृद्धि।
(22) हंस - गायत्री मन्त्र
ओइम् परमहंसाय विद्महे महाहंसाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात्।
प्रभाव :- विवेक शक्ति का उद्भव एवं विकास।
(23) हयग्रीव - गायत्री मन्त्र
ओइम् वाणीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हयग्रीवः प्रचोदयात्।
प्रभाव :- भयनाश, परीक्षा में सफलता, मानसिक शक्ति में वृद्धि।
(24) इन्द्र - गायत्री मन्त्र
ओइम् सहस्रनेत्राय विद्महे ब्रघ्रहस्ताय धीमहि तन्नो इन्द्रः प्रचोदयात्।
प्रभाव :- आक्रमण की स्थिति में रक्षा।
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