8 साल पूर्व
आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने जपक्रिया पर शोध कर इस वैदिक मान्यता पर अपनी मोहर लगाईं कि जप करने से व्यक्ति की आयु में वृद्धि होती है।
विशेषज्ञों ने विभिन्न यान्त्रिक उपकरणों के माध्यम से जपक्रिया का परीक्षण करके निष्कर्ष निकाला है कि एक स्वस्थ मनुष्य दिन व रात अर्थात् एक सूर्योदय से लेकर दूसरे सूर्योदय तक लगभग 22600 बार सांस लेता है। यदि प्रति मिनट का गणित निकाला जाए तो एक स्वस्थ व्यक्ति प्रति मिनट लगभग 15 बार सांस लेता है। यदि सांस लेने की इस प्रक्रिया में प्रति मिनट 5 सांस की कमी हो सके, तो उतनी ही सांसें बढ़ जायेंगी। यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन 50 सांसें काम ले तो अवश्य ही बची हुई सांसें उसकी जीवन अवधि को बढ़ा देंगी। साँसों की संख्या कम करने के लिए प्राणायाम क्रिया जो की एक प्रकार की योग साधना है, को प्रमुख व सर्वश्रेष्ठ माना गया है। जप करने से भी श्वास नियमन होता है। जप करने से स्वाभाविक रूप से ही सांसों की संख्या में ह्रास हो जाता है। जहाँ सामान्य व्यक्ति प्रति मिनट 15 सांसें लेता है, वहीं जपकर्ता, मन्त्रोच्चारण करते समय केवल 8-10 सांस ही ले पाता है। इस प्रकार 5-7 सांसें प्रति मिनट कम ली जाएँ तो इस प्रकार ऐसे व्यक्ति की 20-25 वर्ष के जपोपरान्त आयु कई दिन बढ़ जायेगी।
जप के प्रभाव से साधक की धारणाशक्ति, मनोबल और आत्म विश्वास में वृद्धि हो जाती है। इसका प्रभाव यह होता है कि वह भय, भ्रम, कुण्ठा और चिन्ता से मुक्त होकर उत्साही एवं सहिष्णु हो जाता है। मंत्रोच्चारण के प्रभाव से साधक व्यक्ति पर आयी भौतिक आपदायें स्वतः ही टल जाती हैं, क्योंकि मन्त्रों की दिव्यशक्ति से टकराने पर उन आपदाओं की शक्ति क्षीण हो जाती है। साधारण व्यक्ति मन्त्र शक्ति के इस प्रभाव को चमत्कार, जादू अथवा अलौकिकता कहने लगते है; पर वस्तुतः यह विज्ञान सम्मत प्रतिक्रियाएँ हैं, जो कि मन्त्र जप के प्रभाव से उत्पन्न होती है।
अनेक जपकर्ताओं का अनुभव है कि जैसे ही कोई जपकर्ता नियमानुसार शुद्ध व एकाग्र चित्त होकर मन्त्र जप क्रिया प्रारम्भ करता है, तो उसके अन्तःकरण में एक प्रकार की हलचल जैसी उत्पन्न हो जाती है। वस्तुतः यह हलचल जपकर्ता की सद् एवं असद् आदतों के परस्पर टकराव का ही परिणाम होती है। जैसे जैसे जप क्रिया बढ़ती जाती है, वैसे वैसे जपकर्ता के असद् भावों एवं दुर्विचार में ह्रास होना प्रारम्भ होने लगता है एवं सात्विक भावों का उदय जपकर्ता में सत्य, दया, क्षमा, प्रेम, उदारता, संयम, शांति और शुचिता आदि गुणों को विकसित करना प्रारम्भ कर देता है। यह तो एक सर्वस्वीकृत तथ्य है कि जिस व्यक्ति में उपर्युक्त गुणों का आविर्भाव हो जाता है, वह सामान्य संसारी जनों से बहुत ऊँचे उठकर उस स्तर को छूने लगता है जहाँ से देवत्व की सीमा प्रारम्भ होती है। इस प्रकार, जप क्रिया मानव को देवत्व के आसन तक पहुँचाने का सोपान है।
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