ज्योतिषशास्त्र : मन्त्र आरती चालीसा

श्री गायत्री चालीसा

Sandeep Pulasttya

7 साल पूर्व

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ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचण्ड ॥

शान्ति कान्ति जागृत प्रगति रचना शक्ति अखण्ड ॥ १॥

जगत जननी मङ्गल करनि गायत्री सुखधाम ।

प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन काम ॥ २॥

 

भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी । गायत्री नित कलिमल दहनी ॥॥

अक्षर चौविस परम पुनीता । इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता ॥॥

शाश्वत सतोगुणी सत रूपा । सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥॥

हंसारूढ सितंबर धारी । स्वर्ण कान्ति शुचि गगन- बिहारी ॥॥

पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला । शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥॥

ध्यान धरत पुलकित हित होई । सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई ॥॥

कामधेनु तुम सुर तरु छाया । निराकार की अद्भुत माया ॥॥

तुम्हरी शरण गहै जो कोई । तरै सकल संकट सों सोई ॥॥

सरस्वती लक्ष्मी तुम काली । दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥॥

तुम्हरी महिमा पार न पावैं । जो शारद शत मुख गुन गावैं ॥॥

चार वेद की मात पुनीता । तुम ब्रह्माणी गौरी सीता ॥॥

महामन्त्र जितने जग माहीं । कोउ गायत्री सम नाहीं ॥॥

सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै । आलस पाप अविद्या नासै ॥॥

सृष्टि बीज जग जननि भवानी । कालरात्रि वरदा कल्याणी ॥॥

ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते । तुम सों पावें सुरता तेते ॥॥

तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे । जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥॥

महिमा अपरम्पार तुम्हारी । जय जय जय त्रिपदा भयहारी ॥॥

पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना । तुम सम अधिक न जगमे आना ॥॥

तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा । तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेसा ॥॥

जानत तुमहिं तुमहिं व्है जाई । पारस परसि कुधातु सुहाई ॥॥

तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई । माता तुम सब ठौर समाई ॥॥

ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे । सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥॥

सकल सृष्टि की प्राण विधाता । पालक पोषक नाशक त्राता ॥॥

मातेश्वरी दया व्रत धारी । तुम सन तरे पातकी भारी ॥॥

जापर कृपा तुम्हारी होई । तापर कृपा करें सब कोई ॥॥

मंद बुद्धि ते बुधि बल पावें । रोगी रोग रहित हो जावें ॥॥

दरिद्र मिटै कटै सब पीरा । नाशै दुःख हरै भव भीरा ॥॥

गृह क्लेश चित चिन्ता भारी । नासै गायत्री भय हारी ॥॥

सन्तति हीन सुसन्तति पावें । सुख संपति युत मोद मनावें ॥॥

भूत पिशाच सबै भय खावें । यम के दूत निकट नहिं आवें ॥॥

जो सधवा सुमिरें चित लाई । अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥॥

घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी । विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥॥

जयति जयति जगदंब भवानी । तुम सम ओर दयालु न दानी ॥॥

जो सतगुरु सो दीक्षा पावे । सो साधन को सफल बनावे ॥॥

सुमिरन करे सुरूचि बडभागी । लहै मनोरथ गृही विरागी ॥॥

अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता । सब समर्थ गायत्री माता ॥॥

ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी । आरत अर्थी चिन्तित भोगी ॥॥

जो जो शरण तुम्हारी आवें । सो सो मन वांछित फल पावें ॥॥

बल बुधि विद्या शील स्वभाउ । धन वैभव यश तेज उछाउ ॥॥

सकल बढें उपजें सुख नाना । जे यह पाठ करै धरि ध्याना ॥

 

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