7 साल पूर्व
भगवान् विष्णु के एक सहस्त्र नाम हैं। ये समस्त एक सहस्त्र नाम स्वमं में पूर्णता का प्रभाव रखते हैं। प्राचीन काल से विभिन्न ऋषि व मुनियों, सन्त व महात्माओं एवं गृहस्थ साधकों ने अनेकों बार नामजप के प्रभाव का अनुभव किया गया है। अनेक सन्त महात्माओं ने भी अनुभव किया है भगवान् विष्णु मन्त्रों के अतिरिक्त, यदि सहस्त्र नामों का जप किया जाए तो नामजप से साधक को वही प्रभाव व उपलब्धि की प्राप्ति होती है, जो कि विधिवत् मन्त्रानुष्ठान करने से होती है। अतः महर्षियों ने नामजप को भी मन्त्र साधना के बराबर ही प्रमुखता प्रदान की है।
निम्नवत भगवान् विष्णु के ‘गोविन्द’ नाम एवं उसके प्रभाव का विवेचन प्रस्तुत है :
गोकोटि दानं ग्रहणेषु काशी, प्रयाग गंगाऽयुत कल्पवासः।
यज्ञाऽयुतं मेरु सुवर्ण दानम्, ‘गोविन्द’ नाम्ना न कदापि तुल्यम्।।
अर्थात्, भगवान् के ‘गोविन्द’ नाम का जप इतना प्रभावकारी, इतना फलदायक है कि उसके आगे करोड़ गौओं का दान, काशीवास, प्रयाग और गंगातट पर कल्पवास, हजारों यज्ञ, पर्वताकार स्वर्ण पिण्ड का दान भी नगण्य हैं। अतः इस प्रकार कोई साधक केवल ‘गोविन्द-गोविन्द’का जप करके महान् पुण्य एवं भगवत्कृपा अर्जित कर सकता है।
‘गोविन्द’ नाम की महिमा का अनेकों स्थान पर उल्लेख मिलता है -
पापानलस्य दीप्तस्य या कुर्वन्तु भयं नरः।
गोविन्द नाम मेधौधैर्नश्यते नीर बिन्दुभिः।।
अर्थात्, प्रचण्ड पाप अग्नि से भयभीत न होकर ‘गोविन्द’ नाम का जप करना चाहिए। इस नाम का जप उतना ही प्रभावी है, जितना कि मेघ द्वारा जल वर्षा होने से अग्नि का शान्त होना है।
तन्मास्ति कर्मजं लोके वाग्जं मानसमेव वा।
यन्म क्षम्यते पापं कलौ गोविन्द कीर्तनात्।।
अर्थात्, कलियुग में समस्त प्रकार के तन, मन एवं वाणी के माध्यम से किये गये पाप ‘गोविन्द’ नाम का जप करने मात्र से क्षमा हो जाते हैं।
वर्तमान भौतिक युग अर्थात कलियुग में अस्थिरता के कारण मनुष्य गंभीरतपपूर्वक नियमित तप साधना नहीं कर सकता, अतः इसके लिए नामजप की महिमा का वर्णन आर्ष ग्रन्थों में भी मिलता है -
कृते यद् ध्यायते विष्णुं, त्रेतायां यजतो मखैः।
द्वापरे परिचर्यायां कलौ तद् हरिकीर्तनात्।
नाम संकीर्तन कलौ परम उपाय।
कलिजुग केवल नाम अधारा।
भगवान् विष्णु के समस्त नाम समान रूप से शक्ति सम्पन्न एवं महिमामय हैं। इन समस्त नामों में छोटे अथवा बड़े या सबल अथवा दुर्बल होने का भेद किया जाना संभव नहीं है। उच्चारण सुविधा, रुचि, विश्वास, चित्रोपलब्धि अथवा अंतःप्रेरणा अथवा सुविधा के अनुसार जिस किसी नाम पर आस्था हो जाय, उसी का जप करना चाहिए।
ग्रन्थ भी कहते हैं -
सर्वेषां भगवन्नाम्नां समानो महिमापि चेत्।
तथापि स्व प्रियेनाशु स्वार्थ सिद्धिं सुखं भवेत्।।
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