ज्योतिषशास्त्र : मन्त्र आरती चालीसा

रुद्राक्ष- जप में प्रयोजन, रुद्राक्ष के प्रकार, गुण व प्रभाव, श्रेष्ठता परीक्षण एवं धारण विधि

Sandeep Pulasttya

6 साल पूर्व

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हिन्दू सनातन एवं वैदिक धर्म संस्कृति अपनी पौराणिकता, प्रभाव, चमत्कारिक गुणवत्ता, पारदर्शिता के कारण अब दूर विदेशों में इसके प्रति आस्था भाव बहुत तेजी गति से प्रसार पा रहा है। जिसके फलस्वरूप धर्म, दर्शन, प्राचीन साहित्य, तन्त्र मन्त्र आदि का प्रचार बढ़ रहा है। इसी प्रकार रुदाक्ष के चमत्कारिक व अचंभित कर देने वाले प्रभावों व प्रवृत्तियों को जानकार इसके प्रति भी आस्था भाव बहुत तेजी गति से प्रचार व प्रसार पा रहा है।

 

रुद्राक्ष

रुद्राक्ष एक फल विशेष का बीज है। पौराणिक मान्यतानुसार इसका जन्म भगवान् शंकर के नेत्रों से हुआ है। रुद्राक्ष अपनी चमत्कारिक गुणवत्ता एवं प्रभावशीलता के लिए सर्वत्र स्वीकार्य है। मन्त्र, यन्त्र, तन्त्र एवं आयुर्वेद विज्ञान के विशेषज्ञों ने रुद्राक्ष के गुण व प्रभाव के अनुभव अनुसार उसकी भरपूर प्रशंसा व अनुशंसा की है। रत्न शास्त्रियों एवं वैज्ञानिकों ने भी इसकी प्रभाव क्षमता का अनुभव करते हुए इसका सूक्ष्म परीक्षण करके घोषित किया है कि इसमें कुछ ऐसी चुम्बकत्व एवं विधुत जैसी अदृश्य शक्ति है जिससे कि वह धारक के मनः संवेगों, विकृतियों, और शारीरिक अवयवों जैसे रक्त शिराओं, ज्ञान तन्तुओं आदि को तुरन्त प्रभावित कर देती है। अपनी इस महिमा के कारण रुद्राक्ष बहुत प्रचलित हो गया है।

रुद्राक्ष की कई प्रजातियां पायी जाती हैं। इसके काली मिर्च के आकार से लेकर आंवले के आकार तक के होते हैं। रुद्राक्ष के वृक्ष मुख्यतः नेपाल, जावा, सुमात्रा, बाली एवं इण्डोनेशिया में पाये जाते है। भारत के कुछ स्थानों जैसे असम, बंगाल, देहरादून, मैसूर में भी इसके वृक्ष पाये जाते हैं।

 

नकली रुद्राक्ष से बचिये

रुद्राक्ष अपनी चमत्कारिक गुणवत्ता एवं प्रभावशीलता के कारण बहुत तीव्र गति से देश विदेश  में भी प्रसार प्राप्त कर रहा है अतः कुछ धन लोलुप जोहरियोँ ने रासायनिक पदार्थों के मिश्रण से नकली रुद्राक्ष प्रयोगशाला में तैयार कर लिया है जो देखने में असली रुद्राक्ष के ही सामान है किन्तु उसकी कीमत बहुत काम है। अतः ऐसे जोहरी इसे असली बताकर बेच देते है व मोटा धन ग्राहक से ऐंठ लेते हैं। नकली रुद्राक्ष, बेर जैसे कई फलों की गुठलियों से बनता है। किन्तु वह सर्वथा प्रभावहीन ही नहीं अपितु हानिकारक भी होता है। विशेषज्ञों का मत है कि रुद्राक्ष के पके फलों से निकला बीज ही उपयागी रुद्राक्ष है, कच्चे अथवा असमय ही सूखकर गिर गये फलों वाला बीज अनुपयोगी होता है। उसे भद्राक्ष कहते हैं। रुद्राक्ष एवं भद्राक्ष में तुलना करना बड़ा ही जटिल है। अतः रुद्राक्ष पर आस्था रखने वाले व्यक्ति को चाहिए कि किसी अनुभवी रत्न विशेषज्ञ से परख  कराकर, अथवा किसी भरोसेमंद जोहरी से ही, रुद्राक्ष खरीदें।

रुद्राक्ष के दाने पर संतरे की फांकों जैसी धरियां स्थित होती है। इन धारियों को मुख कहते हैं। दाने पर जितनी संख्या में धारियां स्थित होंगी, वह उतने मुखी रुद्राक्ष कहा जाता है। रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर इक्कीस मुखी तक के प्राप्त होते हैं, परन्तु ये सभी उपलब्ध नहीं हैं। एक मुखी से चौदह मुखी तक के रुद्राक्ष उपलब्ध हैं। इनमें एक मुखी रुद्राक्ष दुर्लभ है एवं पांच मुखी अति सुलभ है। वैसे चैदहमुखी तक के रुद्राक्ष प्रयास करने पर सुलभ हैं किन्तु पन्द्रह से इक्कीस मुखी वाले रुद्राक्ष कदाचित् ही कहीं दीख पड़ें। जिनके पास ऐसे रुद्राक्ष हैं भी, वे उन्हें सम्पदा की भांति संजो कर सुरक्षित रखे हुए हैं। बड़े सन्त महात्माओं, महन्तों, ज्योतिषाचार्यों आदि के पास कदाचित ऐसे रुद्राक्ष देखने को मिल जाते हैं।

 

श्रेष्ठ रुद्राक्ष की पहचान

रुद्राक्ष तभी प्रभावशाली माना जाता है, जब वह शुद्ध हो, कहीं टूटा फूटा अथवा घुना न हो। रुद्राक्ष विकृत भी नहीं होना चाहिए। पके हुए फल से प्राप्त, सुन्दर, सुडौल, कांटेदार, चिकना, प्राकृतिक छिद्रयुक्त एवं दृढ़ बीज ही श्रेष्ठ रुद्राक्ष होता है। रुद्राक्ष प्रायः चार रंगों बादामी, पीला, लाल एवं काला, में उपलब्ध होता है।

रुद्राक्ष की शुद्धता एवं सत्यता प्रमाणित करने हेतु इसकी कई विधियों से जांच बड़ी सरलता से की जानी संभव है। इसके लिए किसी अनुभव अथवा किसी विशेषज्ञ अथवा किसी प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं है। नीचे हम रुद्राक्ष की परख हेतु सरल विधि दे रहे हैं -

तैरना जांच :-  रुद्राक्ष को पानी की उप्परी सतह पर रखने से यदि वह डूब जाता है तो रुद्राक्ष असली है किन्तु यदि तैरता रहता है तो रुद्राक्ष नकली है। 

ताम्बा जांच :-  असली रुद्राक्ष बहुत उष्म होता है एवं अपने अंदर स्थित विद्युत चुम्बकीय गन के कारण यह ताम्बे को अपनी ओर आकर्षित करता है। यदि रुद्राक्ष के दानो को धागे में लटकाकर ताम्बे के चादर के छोटे से टुकड़े के उप्पर लटका दिया जाए तो रुद्राक्ष के दाने लगातार गोल गोल घूमने लगेंगे।  यदि रुद्राक्ष के इन दानो की घूमने की दिशा घडी की सुइयों की घूमने की दिशा के सामान है तो रुद्राक्ष असली है।

दूध जांच :-  एक कप दूध के अंदर रुद्राक्ष को डाल दें एवं इसे पूरे दिन तक रखिये। यदि दूध खराब नहीं होता है तो रुद्राक्ष असली है किंतु यदि दूध खराब हो जाता है तो रुद्राक्ष नकली है।

 

अपने वर्ण का रुद्राक्ष ही धारण करें

पौराणिक ग्रंथो ने रुद्राक्ष का वर्णभेद भी मानव जाति के वर्ण भेद के अनुसार ही कर दिया है। किसी व्यक्ति की जाति व वर्णानुसार ही रुद्राक्ष को भी वर्ण अथवा रंग के अनुसार धारणीय बताया गया है। वस्तुतः रुद्राक्ष प्रभु का आशिर्वाद स्वरुप है एवं प्रभु अपनी कृपा, जाति वर्ण देखकर प्रदान नहीं करते। अतः रुद्राक्ष किसी भी रंग का क्यों न हो, यदि वह निर्दोष है तो निश्चय ही कल्याणकारी होगा।

 

रुद्राक्ष धारण विधि

पौराणिक महृषियों ने अपने अनुभवानुसार मानव हित में रुद्राक्ष धारण का विधान निर्धारित किया है। शुभ एवं अभीष्ट फल प्राप्ति हेतु रुद्राक्ष को अथवा रुद्राक्ष से निर्मित माला को किसी शुभ दिन व मुहूर्त में, गंगा या अन्य किसी नदी के जल से स्नान कराएं। यदि गंगाजी अथवा नदी का जल उपलब्ध नहीं है तो शुद्ध कूप के जल से भी रुद्राक्ष को स्नान कराये जाने का विधान है। अब रुद्राक्ष को केसर, गोरोचन जैसी पवित्र वस्तुओं के घोल से भी स्नान कराएं। तत्पश्चात धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य से उसका पूजन अर्चन कर हवन करना चाहिए। हवन के उपरान्त धारक को सर्वप्रथम हवनकुण्ड से भस्म लेकर अपने मस्तक पर लगानी चाहिए एवं हवन के धुएं में रुद्राक्ष अथवा उसकी माला को शोधित करने का विधान है, इसके पश्चात रुद्राक्ष माला को शिव प्रतिमा से स्पर्श कराकर स्वयं धारण करे। रुद्राक्ष धारण के इस समस्त विधि विधान में धारक का मुंह पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए तथा स्नानोपरान्त, पूजास्थल पर आने से लेकर रुद्राक्ष धारण तक, अबाध रूप में उसे शिवमन्त्र ‘ओम् नमः शिवाय’ का जप करते रहना चाहिए। रुद्राक्ष को सम्पूर्ण विधि विधान से धारण के लिए उत्तम यह रहेगा की यह कार्य किसी अनुभवी एवं विशेषज्ञ पंडित, आचार्य, साधू अथवा पुरोहित के निर्देशन में संपन्न किया जाए।

रुद्राक्ष को लाल रंग के धागे में अथवा चांदी के तार में पिरोकर, विधिवत शुद्धिकरण करने के पश्चात, कण्ठ अथवा बाहु में धारण किये जाने की प्रथा है। विधिपूर्वक शुद्ध करके धारण किया गया रुद्राक्ष दैहिक, दैविक एवं भौतिक, सभी प्रकार के क्लेशों में निवारक सिद्ध होता है। रुद्राक्ष की प्रभाव क्षमता रत्नों से भी अधिक स्वीकार की गयी है। अपने भीतर चुम्बकत्व, स्पर्श शक्ति एवं विकिरण प्रभाव प्रकर्तिक रूप से स्थित होने के कारण यह अदभुद चमत्कार दिखाता है। भौतिक विघ्नों, शारीरिक क्लेश एवं मानसिक अशान्ति के निवारण में इसकी क्षमता अतुलनीय है जिस कारण अनेक विदेशी विद्वानों एवं घोर नास्तिक प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों को भी अभिभूत कर दिया है। यधपि छोटे आकार का रुद्राक्ष विशेष प्रभावशाली माना गया है, तथापि यदि रुद्राक्ष असली है, तो चाहे जिस आकार का हो, शुभ फल अवश्य प्रदान करता है।

 

प्रत्येक रुद्राक्ष अपनी धारियों की संख्या के आधार पर भिन्न भिन्न प्रभाव उत्पन्न करता है, इसका प्रामाणिक अनुभव करने के बाद महृषियों व विद्धान मनीषियों ने बताया है-

♦   एकमुखी :-  रुद्राक्ष दुर्लभ किन्तु सर्वश्रष्ठ है। यह सर्वबाधा प्रशामक, समृद्धिदाता और आध्यात्मिक भावना का पोषक होता है।

♦   दोमुखी :-  रुद्राक्ष भूत बाधा निवारक, कामनापूरक ओर वशीकरण प्रभावयुक्त होता है। मूर्छा, दुःस्वप्न को दूर करके यह स्त्रियों के लिए गर्भरक्षक और सुखदायी सिद्ध हुआ है।

♦   तीनमुखी :-  रुद्राक्ष तिजारी ज्वर को दूर करता है। यह कार्य-सिद्धि, विद्यालाभ तथा अनुकूल साधनों का दाता माना गया है।

♦   चारमुखी :-  रुद्राक्ष पापनाशक, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का प्रदाता और ब्रह्मा का स्वरूप होता है। इसका धारण, स्पर्श और दर्शन सभी अति प्रभावकारी होता है।

♦   पंचमुखी :-  रुद्राक्ष आसानी से मिलता है। अधिकांश उत्पत्ति इसी जाति के दाने की होती है। इसके कम से कम तीन दाने पहनने का विधान है, जबकि अन्य किसी का केवल एक दाना धारण कर लेना ही पर्याप्त है। इसे धार्मिक मान्यतानुसार कालाग्नि रूप कहते हैं। यह भी मोक्ष और कामनापूर्ति में साधक होता है।

♦   छःमुखी :-  रुद्राक्ष को कुमार कार्तिकेय का अंश माना जाता है। यह ज्ञानवर्द्धन की अदभुद क्षमता रखता है। पापनाशन एवं प्रतिभासंवर्धन में यह विशेष रूप से समर्थ होता है।

♦   सप्तमुखी :-  रुद्राक्ष साक्षात् कामरूप होता है। दारिद्रयनाश, समृद्धि प्राप्ति एवं रोग मुक्ति के लिए इसको धारण करना चाहिए।

♦   अष्टमुखी :-  रुद्राक्ष को भैरव माना जाता है। मिथ्याभाषण के पाप से मुक्त करके यह धारक को दीर्घायु बनाता है और मृत्यु के उपरान्त उसे शिवलोक पहुँचाने में सहायक होता है।

♦   नवमुखी :-  रुद्राक्ष को दुर्गाजी का शक्तिपुंज मानकर असीम वैभव, समृ़िद्ध और सुख का प्रदाता घोषित किया गया है।

♦   दशमुखी :-  रुद्राक्ष भगवान् विष्णु के दशावतारों की शक्ति से सम्पन्न होने के कारण समस्त कामनाओं का पूर्तिकर्ता, रोग शोक विनाशक एवं भूतबाधा निवारक कहा जाता है। इसे धारण करने वाला व्यक्ति भगवान् विष्णु का विशेष कृपापात्र होता है।

♦   ग्यारहमुखी :-  रुद्राक्ष में भगवान् शंकर का वास होता है। यह सर्वजयी, सर्वमोहक एवं वैभव वृद्धिकारी माना जाता है।

♦   बारहमुखी :-  रुद्राक्ष का धारक सूर्यदेव का कृपापात्र होता है।

♦   तेरहमुखी :-  रुद्राक्ष दाने में भी सुख सौभाग्य, अभीष्टपूर्ति की प्रबल शक्ति होती है।

♦   चौदहमुखी :-  रुद्राक्ष भी शिव का रूप है। यह पापनाशक, मुक्तिदाता और सद्मार्ग का प्रेरक होता है।

इस प्रकार एक से लेकर चौदहमुख तक वाले सभी रुद्राक्ष परम पवित्र, अलौकिक शक्ति सम्पन्न एवं कल्याणकारी होते है।

 

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