8 साल पूर्व
शास्त्रीय मन्त्र कई प्रकार के होते है। अक्सर देखने सुनने को मिलता रहता है कि फलां साधु अथवा फकीर, ने एक मन्त्र पढ़ा और रोगी का रोग दूर हो गया। यह कोई जादू नहीं बल्कि शास्त्रीय मन्त्रों का प्रभाव है जिससे साधु अथवा फकीर आमजन को चमत्कृत एवं उपकृत करते रहते हैं। इन मन्त्रों को कोई भी व्यक्ति जप साधना से सिद्ध कर सकता है। ये अपना प्रभाव सिद्ध होने के पश्चात ही दिखाते हैं। जो व्यक्ति इन्हे सिद्ध कर लेता है वही व्यक्ति इन्हे क्रियाशील कर सकता है। शास्त्रीय मन्त्रों की जप साधना अपेक्षाकृत सरल है एवं इनका प्रभाव प्रबल व अचूक है। यहाँ हम शास्त्रीय मन्त्रों के सम्मोहन मन्त्र एवं कुदृष्टिनाशक मन्त्र, उनकी प्रयोग विधि सहित प्रस्तुत कर रहे हैं-
कुदृष्टिनाशक मन्त्र :
यह मन्त्र कुदृष्टिनाश हेतु परम प्रभावकारी है। बहुत से ईर्ष्यालु, दुष्ट हृदय, पापी और राक्षसी मनोवृत्ति वाले व्यक्तियों की दृष्टि पड़ने से बड़े बड़े अनर्थ हो जाते हैं, होते हुए काम रुक जाते हैं, छोटे व स्वस्थ बच्चे बीमार पड़ जाते हैं, दुधारू गाय भैंस बकरी का दूध घट जाता है अथवा फटने लगता है अथवा जानवर दुहने ही नहीं देता यहां तक की स्वस्थ पशु बीमार हो जाता है। भोजन सामग्री विषैली, रोगकारी अथवा नष्ट तक हो जाती है। यह सब कुदृष्टि के परिणाम स्वरुप ही होता है ।
‘ओइम् नमो भगवते श्री पाश्र्वनाथाय ह्रीं धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय
आत्मचक्षु प्रेतचक्षु पिशाचचक्षु सर्वग्रह नाशाय ह्रीं श्रीं पाश्र्वनाथाय स्वाहा।’
सिद्धिकरण विधि :
दीपावली की रात को उक्त मन्त्र की एक माला जपकर तत्पश्चात दशांश हवन करने से यह मन्त्र सिद्ध व प्रभावित हो जाता है। तत्पश्चात जब कभी किसी पर भी कुदृष्टि का असर प्रतीत हो तो, गिलास में जल लेकर सिद्ध मन्त्र से सात बार अभिमन्त्रित करके, रोगी को पिलाने अथवा वृक्ष, वस्तु, स्थान पर छिड़कने से कुदृष्टि दोष का निवारण हो जाता है।
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