8 साल पूर्व
पौराणिक ऋषि मुनियों ने मन्त्र साधना का प्रभाव क्षेत्र देखते हुए, दस प्रकार के कर्म निर्धारित किये हैं। अर्थात् मन्त्रों द्वारा दस प्रकार के कार्य सिद्ध किये जा सकते हैं। इन दस कर्मों के अन्तर्गत समस्त मानव जीवन समाहित है। मानव की समस्त आवश्यकतायें इन दस वर्गों के भीतर आ जाती हैं।
जिस प्रकार विभिन्न कार्यों के लिए विभिन्न मन्त्रों की रचना की गयी है, उसी प्रकार उन मन्त्रों का प्रयोगकाल भी निश्चित कर दिया गया है। कोई भी, कभी भी सिद्ध कर लिया जाय, ऐसा नहीं होता; सबके लिए एक विशेष समय निर्धारित किया गया है। मन्त्र जप प्रारम्भ करने से पूर्व तदनुकूल ऋतु, तिथि और दिन का विचार कर लेना चाहिए। विरुद्ध समय में की गयी साधना फलवती नहीं हो पाती। किसी भी कार्यसिद्धि हेतु, उससे सम्बन्धित मन्त्र किसी योग्य गुरु से प्राप्त करना चाहिए।
मन्त्रों के माध्यम से सम्पादित किये जाने वाले दस कर्म इस प्रकार वर्गीकृत किये गये है-
(1) शान्ति कर्म
वह मन्त्र जप जिस के माध्यम से मानव को शारीरिक क्लेश, रोग, ग्रहपीड़ा, भय, भ्रम, भौतिकबाधा आदि से मुक्ति मिलती है, उसे शान्ति कर्म कहते हैं। सर्वथा निस्पृह भाव से किया गया मन्त्र जप जिसमें कोई कामना या समस्या समाहित नहीं होती, वह विशुद्ध शान्ति कर्म कहलाता है। इस प्रकार का जप ऋषि मुनियों द्वारा किया जाता है।
(2) वशीकरण कर्म
मन्त्रों की शक्ति के माध्यम से किसी को अपने वशीभूत अथवा वश में करने की क्रिया, वशीकरण अथवा वश्य कर्म कहलाती है।
(3) स्तम्भन कार्य कर्म
वह मन्त्र जिसके जप के माध्यम से साधक किसी व्यक्ति, पशु, पक्षी अथवा अन्य प्राणी की गति को स्थिर कर देता है, उसकी त्वरा और चंचलता को अचल स्थिति में पहुँचा देता है, उसे स्तम्भन कर्म कहते हैं।
(4) उच्चाटन कर्म
जब मन्त्र प्रयोग से किसी व्यक्ति अथवा प्राणी में मानसिक अस्थिरता, भय, भ्रम, अशान्ति अथवा स्वयं के प्रति अविश्वास की भावना उत्पन्न हो जाय, वह अर्धविक्षिप्तों जैसा आचरण करने लगे, तो उस प्रयोग को उच्चाटन क्रिया कहा जाता है।
(5) पौष्टिक कर्म
साधक द्वारा मन्त्र बल का अवलम्ब लेकर धन, धान्य, यश, सम्मान, कीर्ति, वैभव आदि की वृद्धि करना पौष्टिक कर्म कहा जाता है।
(6) आकर्षण कर्म
दूर स्थित मनुष्य अथवा किसी ज्ञात प्राणी के प्रति ऐसा मन्त्र प्रयोग करना कि वह स्वयं ही आकर्षित होकर साधक के समीप आ जाय, आकर्षण कर्म कहलाता है।
(7) विद्वेषण कर्म
किन्हीं सम्बन्धियों मित्र अथवा परिवारजन के बीच विरोध की मनःस्थिति उत्पन्न करने वाली मान्त्रिक क्रिया विद्वेषण कहलाती है।
(8) मोहन कर्म
मन्त्रों का वह प्रयोग, जिसके प्रभाव से अभीष्ट पुरुष, स्त्री, पशु पक्षी साधक के प्रति आकर्षित हो जाय, उस पर मुग्ध हो जाय, मोहन क्रिया कहा जाता है। आधुनिक युग का हिप्नोटिज्म अथवा मेस्मरिज्म इसी सम्मोहन विधा का एक अंग है।
(9) जृंभण कर्म
साधक जब मन्त्र शक्ति से प्रभावित प्राणी के माध्यम से अपने मनोनुकूल आचरण, व्यवहार कर्म कराता है, तो उसे जृंभण क्रिया कहते हैं।
(10) मारण कर्म
मन्त्र शक्ति के माध्यम से किसी प्राणी का प्राणान्त कर देना ही मारण कर्म है।
नोट : अपने जीवन से सम्बंधित जटिल एवं अनसुलझी समस्याओं का सटीक समाधान अथवा परामर्श ज्योतिषशास्त्र हॉरोस्कोप फॉर्म के माध्यम से अपनी समस्या भेजकर अब आप घर बैठे ही ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं |
© The content in this article consists copyright, please don't try to copy & paste it.