8 साल पूर्व
सिर के हर हिस्से का उभार उस हिस्से के माध्यम से निर्दिष्ट गुण को बढ़ाता है। कपाल के ऊपर के हिस्से हिस्से के कारण मानव निर्दिष्टियों के जो लक्षणों के संकेत मिलते हैं उनकी व्याख्या निम्न की गई है।
निर्दिष्ट क्षमताओं का क्षेत्र - यह सिर के ऊपर के हिस्से में होता है।
⇒ परोपकारिता :-
मानव कपाल के इस भाग का सही अथवा पूर्ण विकास सम्बंधित मानव में परिष्कृत, सहृदय एवं सहानुभूतिपूर्ण प्रवृत्ति उत्पन्न करता है। किन्तु यदि कपाल के इस भाग का अत्यधिक विकास हो जाए तो यही विकास सम्बंधित मानव में दूसरों के प्रति सहानुभूति की कमी का कारण बनता है। यदि मानव कपाल का यह भाग अविकसित रह जाए तो ऐसा मानव स्वार्थी प्रकृति का होता है।
⇒ रोमांटिक प्रकृति :-
मानव की कपाल के इस भाग का विकास सम्बंधित मानव में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण के भावों को बल प्रदान करता है। कपाल के इस भाग का अत्यधिक विकास सम्बंधित मानव में प्रेम रोग वह भी पागलपन की सीमा तक के लक्षण उत्पन्न करता है। किन्तु इस भाग के विकास में कमी सम्बंधित मानव में समाज के प्रति अनाकर्षण के भाव उत्पन्न करता है।
⇒ सच्चा प्रेम :-
मानव की कपाल के इस भाग का सही रूप में विकास सम्बंधित मानव में सच्चे प्रेम व अनुरक्ति के भाव उत्पन्न करता है। इस भाग का अनावश्यक विकास मानव में प्रेम में कुढ़न की भावना जागृत करता है। किन्तु इस भाग का अविकसित रह जाना मानव के चरित्र में अस्थिरता उत्पन्न करता है।
⇒ पैतृक प्रेम :-
मानव कपाल के इस भाग का पूर्ण विकास सम्बंधित मानव में पैतृक प्रेम तथा पुत्रानुरूप अनुराग के भाव उत्पन्न करने हेतु उत्तरदायी होता है। किन्तु कपाल के इस भाग का अनावश्यक विकास मानव में पारिवारिक क्षेत्र के बाहर दिलचस्पी की कमी के भाव उत्पन्न करता है। कपाल का यही भाग यदि अविकसित रह जाए तो पारिवारिक सम्बन्धों की टूटन का उत्तरदायी होता है।
⇒ मैत्री :-
मानव कपाल के इस भाग का सही रूप में विकसित होना उस मानव को सामाजिक एवं मैत्री के लिए उत्सुक बनता है। किन्तु कपाल के इस भाग का अत्यधिक विकास बुरे मित्रों से दोस्ती का कारण भी बनता है। कपाल का यह भाग यदि अविकासित रह जाए तो ऐसा मानव मित्र बनाने में अयोग्य सिद्ध होता है।
⇒ घर के प्रति प्रेम :-
मानव कपाल के इस भाग का सही रूप में विकसित होना उस मानव को घर के प्रति अत्यधिक अनुरागी का कारण बनता है, किन्तु यदि कपाल के इस भाग का अत्यधिक विकास होने से सम्बंधित मानव को निरन्तर घर की याद सताती रहती है। कपाल का यही भाग यदि अविकसित रहा जाए तो मानव को आवारागर्दी एवं घूमने के शौक को प्रेरित करता है।
⇒ एकाग्रता :-
मानव कपाल के इस भाग का सही रूप में विकसित होना उस मानव में विचारों की एकता एवं प्रवाह का सूचक हे। किन्तु कपाल के इस भाग का अत्यधिक विकास गायब दिमाग एवं एक ही मार्ग पर एकग्र मन होने का कारण बनता है। कपाल का यह भाग यदि अविकासित रह जाए तो ऐसा मानव हाथ में लिए कार्य को करने के अयोग्य होगा।
⇒ बीमारियों के प्रति अवरोध :-
मानव कपाल के इस भाग का सही रूप में विकसित होना उस मानव में बीमारियों के प्रति स्वाभाविक अवरोध उत्पन्न होने का कारण बनता है। किन्तु कपाल के इस भाग का अत्यधिक विकास बीमारी के प्रति चिंता एवं भविष्य की चिन्ता का सूचक है। कपाल का यह भाग यदि अविकासित रह जाए तो ऐसा मानव बीमार एवं बलहीन होता है।
⇒ साहसी प्रकृति :-
मानव कपाल के इस भाग का सही रूप में विकसित होना उस मानव में साहसी एवं उधोगी होने की प्रवृत्ति उत्पन्न करता है। किन्तु कपाल के इस भाग का अत्यधिक विकास मानव में स्पर्धा विरोधी प्रकृति का सूचक है। कपाल का यह भाग यदि अविकासित रह जाए तो ऐसा मानव डरपोक एवं भयभीत मनोवृत्ति वाला होता है।
⇒ निष्ठुरता :-
मानव कपाल के इस भाग का सही रूप में विकसित होना उस मानव में निष्ठुर और विध्वसंक प्रवृत्ति उत्पन्न करता है। किन्तु कपाल के इस भाग का अत्यधिक विकास मानव में दुर्भावना एवं प्रतिहिंसा का सूचक है। कपाल का यह भाग यदि अविकासित रह जाए तो ऐसा मानव घर परिवार एवं व्यापार के मसलों पर नियन्त्रण रख पाने में असमर्थ होता है।
⇒ भोजन का प्रशंसक :-
मानव कपाल के इस भाग का सही रूप में विकसित होना उस मानव में भोजन के प्रशंसक एवं व्यंजन प्रेमी होने का सूचक है। किन्तु कपाल के इस भाग का अत्यधिक विकास मानव में पेटूपन की प्रवृत्ति उत्पन्न कर देता है। कपाल का यह भाग यदि अविकासित रह जाए तो ऐसा मानव परिष्कृत भोजन खाने वाला होता है।
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