8 साल पूर्व
कपाल का पिछला भाग अथवा हिस्सा मानव की प्रवृत्तियों को निर्दिष्ट करने का क्षेत्र होता है। पिछले हिस्से के कारण मानव प्रवृत्तियों के जो लक्षणों के संकेत मिलते हैं उनकी व्याख्या निम्न की गई है :
प्रवृत्तियों का क्षेत्र - यह सिर के पिछले हिस्से में नीचे की ओर होता है।
अत्यधिक धन :-
मानव कपाल का यह भाग जब पूर्ण रूप से विकसित होता है, ऐसे मानव को धन प्राप्ति होती है। यदि कपाल के इस भाग का विकास अनावश्यक रूप से हो जाता है तो यह उस मानव में कंजूसी के लक्षण उभारता है। किन्तु इस भाग में उभार की कमी मानव को अपव्ययी बनाती है।
विवेक और व्यवहार कुशलता :-
मानव कपाल के इस भाग का सही विकास सम्बंधित मानव में विवेक व्यवहारकुशलता, निपुणता एवं कुशाग्रबुद्धि के लक्षणों को बल देता है। किन्तु यदि इस भाग का अत्यधिक विकास हो जाए तो यही विकास सम्बंधित मानव में बेईमानी एवं धोखेबाजी के लक्षण उन्नत करता है। यदि मानव कपाल यह भाग विकासहीन रह जाए तो ऐसा मानव अविवेकी एवं बातूनी स्वभाव वाला होता है।
सतर्कता और सावधानी :-
मानव की कपाल के इस भाग का यदि सही रूप से विकास हो जाए तो ऐसा मानव चैकन्ने एवं सतर्क स्वभाव वाला होता है। ऐसा मानव किसी भी प्रकार का जोखिम उठाने से बचता है। कपाल के इस भाग पर अनावश्यक उभार सम्बंधित मानव को योजनाओं के निर्माण में अनिश्चितता एवं स्थगन तथा भय के लक्षण पैदा कर देता है। किन्तु यदि मानव कपाल के इस भाग का विकास काम हुआ हो तो इस कारण मानव दुःसाहसी प्रवृति का हो जाता है।
विजय की इच्छा :-
मानव की कपाल का यह भाग जब विकसित रूप में होता है तो ऐसा मानव दृढ़ संकल्प एवं विश्व विजय की इच्छा रखने वाला होता है। इस भाग का अनावश्यक विकास सम्बंधित मानव के भीतर आत्म प्रशंसा, अहंकार एवं अहम का भाव जागृत करता है। किन्तु यदि इस मानव कपाल के इस भाग के विकास में कमी रह जाए तब सम्बंधित मानव अक्खड़ एवं लापरवाह प्रवृत्ति वाला होता है।
आत्मसम्मान :-
सिर के ऊपर का भाग आत्मसम्मान का सूचक है। यदि मानव कपाल में इस भाग का विकास सही रूप से हुआ हो तो यह सम्बंधित मानव में नेतृत्व की क्षमता जागृत करता है। कपाल के इस भाग में विकास की कमी सम्बंधित मानव को अपनी योग्यता भी पहचानने नहीं देती।
स्थिर प्रकृति :-
मानव की कपाल का यह भाग यदि विकसित हो, तो यह सम्बंधित मानव में उद्देश्य, दृढ़ता एवं सामर्थ्य तथा प्राकृतिक गुणों में सन्तुलन की प्रवृत्ति का जनन करता है। कपाल के इस भाग का अत्यधिक विकास मानव की मानसिकता में स्वेच्छा एवं हठ उत्पन्न करता है। किन्तु कपाल के इस भाग का अविकसित रह जाना मानव में अस्थिर व्यक्तित्व एवं चंचल स्वभाव की प्रवृत्ति विकसित करता है।
चेतना :-
मानव की कपाल के इस भाग सही विकास सम्बंधित मानव में सही एवं गलत में भेद करने की क्षमता और चेतना की प्रवृत्ति विकसित करता है। इस भाग का अनावश्यक विकास मानव में आत्महीनता का जनन करता है। किन्तु यदि कपाल के इस भाग के विकास में कमी रह जाय अथवा यह भाग अविकसित रह जाए तो इसके प्रभाव से मानव अपनी गलती पर विचार करने के लिए बाध्य होता है।
आशावाद :-
जिस मानव की कपाल के इस भाग का पूर्ण विकास हो जाता है वह मानव आशावादी एवं आनन्दमय प्रवृत्ति वाला होता है। किन्तु इस भाग का अनावश्यक विकास मानव में निराशावादी स्वप्न एवं कल्पनालोक में रहने की प्रवृत्ति विकसित करता है। कपाल का यदि यही भाग अविकसित रह जाए तो उदासी और निराशा के भाव उत्पन्न करता है।
आध्यात्मिकता :-
मानव कपाल के इस भाग का सही व पूर्ण विकास सम्बंधित मानव में आध्यात्मिक और अन्र्तबोध प्रकृति एवं रहस्यमय चरित्र की प्रवृत्ति उत्पन्न करता हे। किन्तु इसी भाग का अनावश्यक विकास मानव में उन्माद एवं अन्ध विश्वास की प्रवृत्ति का जनन करता है।
प्राचीनता के प्रति मोह :-
मानव कपाल के इस भाग का सही एवं पूर्ण विकास सम्बंधित मानव में रीति रिवाज एवं परम्परा के प्रति प्रेम की प्रवृत्ति का विकास करता है। किन्तु इस भाग का अनावश्यक विकास मानव में प्राचीन उच्च आदर्शों के प्रति सम्मोहन की प्रवृत्ति का विकास करता है। यदि मानव कपाल का यह भाग अविकसित रह जाए तो सम्बंधित मानव दार्शनिक प्रव्रृत्ति का होता है।
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