6 साल पूर्व
किसी भी भूखण्ड के वास्तु सम्मत होने या न होने में वास्तुविद कई तथ्यों का विश्लेषण करते हैं। किसी भूखण्ड का वास्तु सम्मत होना इस तथ्य पर भी निर्भर करता है की मार्ग उस भूखण्ड के किस दिशा में स्थित है।
यदि किसी भूखण्ड के पूर्व एवं पश्चिम दोनों ही दिशाओं में मार्ग स्थित हों तो ऐसा भूखण्ड निवास हेतु उत्तम कहा गया है। ऐसे भूखण्ड में मुख्य द्वार पूर्व दिशा में रखना उचित होता हैं।
यदि किसी भूखण्ड के उत्तर एवं दक्षिण दोनों दिशाओं में मार्ग हों तो ऐसा भूखण्ड भी वास्तु अनुसार श्रेष्ठ कहा गया है। ऐसे भूखण्ड में मुख्य द्वार उत्तर दिशा में रखना उचित होता हैं।
ऐसे भूखण्डों में कभी भी मुख्य द्वार का निर्माण दोनों मार्गों पर न करें, ऐसा करने पर गृह स्वामी को आय स्वरुप जो धन की प्राप्ति होगी वह तत्काल व्यय भी हो जाय करेगी।
जिस भूखण्ड के दक्षिण एवं पश्चिम दोनों ही दिशाओं में मार्ग हो, तो ऐसे भूखण्ड में मुख्य द्वार पश्चिम दिशा में बनाना उचित रहता है।
जिस भूखण्ड के उत्तर एवं पूर्व दिशा में मार्ग स्थित होता है, तो ऐसा भूखण्ड वास्तु अनुसार अति उत्तम माना गया है। ऐसे भूखण्ड में मुख्य द्वार का निर्माण पूर्व अथवा उत्तर में से किसी भी एक दिशा में कराया जा सकता है।
ऐसा भूखण्ड जिसके पूर्व दिशा एवं दक्षिण दिशा में मार्ग स्थित हो तो ऐसे भूखण्ड पर मुख्य द्वार पूर्व दिशा में स्थित मार्ग पर ही बनाना उचित रहता है। ऐसे भूखण्ड की दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार का निर्माण नहीं करना चाहिए ।
ऐसा भूखण्ड, जिसकी पूर्व दिशा में मार्ग स्थित हो, वास्तुशास्त्र अनुसार निवास के प्रयोजन हेतु अत्यन्त ही उत्तम माना जाता है। ऐसा भूखण्ड भी निवास के प्रयोजन हेतु श्रेष्ठ कहा गया है जिसकी उत्तर दिशा में मार्ग स्थित हो। उक्त दोनों प्रकार के मार्गों से युक्त भूखण्ड वास्तुशास्त्र अनुसार सर्वसुखदायक माने गए हैं।
ऐसा भूखण्ड जिसकी पश्चिम दिशा में मार्ग स्थित होता है वास्तु अनुसार उपयोगी होता है। किन्तु तुलनात्मक दृष्टि स्वरुप पश्चिम दिशा मार्गी भूखण्ड पूर्व दिशा मार्गी अथवा उत्तर दिशा मार्गी भूखण्ड जितना उत्तम नहीं माना गया है। दक्षिण मुखी अथवा दक्षिण दिशा मार्गी भूखण्ड आमतौर पर शुभ फलदायक नहीं माना जाता, किन्तु कुछ वास्तुविद् इसे व्यवसाय प्रयोजन हेतु उत्तम मानते हैं।
ऐसा भूखण्ड, व्यवसाय प्रयोजन हेतु उपयुक्त माना गया है जिसके चारों ओर मार्ग स्थित हों।
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