7 साल पूर्व
प्रायः देखने में आता है कि लोग घर अथवा कार्यालय में शौचालय का निर्माण जहां तहाँ तो करवा लेते हैं परन्तु उसके उपरान्त जीवन पर्यन्त नाकारात्मक ऊर्जा व उसके प्रभावों से आक्रांत रहते हैं | दुष्प्रभावों से बचाव हेतु वास्तुशास्त्र में शौचालय के निर्माण हेतु नियम दिए गए हैं जिनकी विवेचना हम निम्नवत कर रहे हैं :
♦ वास्तु शास्त्र की धारणा अनुसार शौचालय के निर्माण हेतु सर्वोत्तम स्थान नै़र्ऋत्य कोण अर्थात दक्षिण-पश्चिम दिशा तथा दक्षिण के बीच में माना गया है।
♦ यदि उक्त वर्णित दिशा में शौचालय बनाना संभव न हो तो दक्षिण दिशा अथवा पश्चिम दिशा भी उपयुक्त रहती हैं। यदि इन दिशाओं में भी शौचालय बनाना सम्भव न हो तो इसे उत्तर- पश्चिम दिशा में बनाया जा सकता है।
♦ ईशान कोण अर्थात उत्तर-पूर्व दिशा, दक्षिण- पश्चिम दिशा एवं घर के केंद्र में शौचालय बनाना वास्तु सम्मत नहीं है। इन दिशाओं में शौचालय बनाने से परिवार के सदस्यों में स्वास्थ्य सम्बन्धी संकट उत्पन्न होते हैं।
♦ वास्तु शास्त्र की धारणा अनुसार शौचालय में कमोड पर उत्तर-पूर्व दिशा अथवा उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठने से कब्ज, गैस आदि की बीमारी नहीं होती। जबकि कमोड पर दक्षिण या पश्चिम की तरफ मुँह करके बैठना स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं को जन्म देता है।
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