6 साल पूर्व
किसी जातक की जन्म कुण्डली विवेचन में उस कुण्डली में स्थित योग अपना अलग ही महत्व रखते है। योग से तात्पर्य ग्रहों के कुछ विशेष जोड़ है अर्थात् ग्रह जब विशेष परिस्थिति में कुछ खास योग बनाते हैं तो ऐसी स्थिति में शुभ अथवा अशुभ फल प्रदान करते हैं। यहां सम्बंधित विशिष्ट योगों के फलित का विवेचन किया जा रहा है-
अमावस्या व चतुर्दशी तिथि योग:-
यदि किसी जातक का जन्म कृष्णपक्ष की चतुर्दशी व अमावस्या में हो तो अशुभ व अरिष्ट कारक माना जाता है। यदि जातक का जन्म अमावस्या में हो तो उस जातक को भविष्य में स्त्री, पुत्र, कुल, धन आदि सम्बन्धी हानि उठानी पड़ती है। यदि जन्म कुण्डली में कृष्ण चतुर्दशी का मान 60 घड़ी हो तो कृष्ण चतुर्दशी के सारे मान तिथि व योग को 6 से भाग कर 6 बराबर भागों में बाँट लें जिसके अनुसार 10 घड़ी का एक भाग होगा।
यदि किसी जातक का जन्म पहले भाग में हुआ हो तो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुभ माना गया है। अर्थात् कृष्ण चतुर्दशी के पहले भाग अर्थात पहली 10 घडि़यों में जन्म हो तो शुभ माना गया है। शेष सभी पांचों भागों में जन्मे जातक को भविष्य में क्रमशः- पिता, माता, मामा, कुल व धन का नाश उठाना पड़ता है।
जन्म समय के कुछ अन्य अशुभ योग:-
♦ जातक का, क्षय तिथि अर्थात जिस दिन तिथि का क्षय अथवा घटना हुआ हो, में जन्म होने पर महा अशुभ कुल नाशक योग बनता है।
♦ यदि किसी जातक का जन्म भद्रा करण में हुआ हो तो जन्म कष्टप्रद होता है।
♦ यदि किसी जातक का जन्म क्षय मास में हुआ हो तो अशुभ होता है।
♦ जातक का जन्म यदि संक्रान्ति के दिन, सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण के समय हुआ है तो ऐसा जातक कुल के लिए बहुत अशुभ फल करने वाला होता है।
सभी प्रकार के गण्ड योगों में जन्म होने पर शास्त्र अनुसार किसी ज्ञानी व योग्य पूजा विशेषज्ञ से पूजा विधान करा लेना उचित रहता है। इस प्रकार उचित समय व विधि विधान पूर्वक कराये गए पूजन से गण्ड दोष शान्ति हो जाते है।
शास्त्रों में भी वर्णित है -
यथा सर्पविश्चैव मन्त्रश्रवनाद् विलीयते।
तथैव गण्डदोषोडपि विधानेन विलीयते।।
नोट : अपने जीवन से सम्बंधित जटिल एवं अनसुलझी समस्याओं का सटीक समाधान अथवा परामर्श ज्योतिषशास्त्र हॉरोस्कोप फॉर्म के माध्यम से अपनी समस्या भेजकर अब आप घर बैठे ही ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं |
© The content in this article consists copyright, please don't try to copy & paste it.