ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

बसंत पंचमी मनाने का कारण एवं पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व

Sandeep Pulasttya

6 साल पूर्व

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बसंत पंचमी के दिन हम लोग पीले वस्त्र धारण करने, पतंग उड़ाने भर तक ही सीमित रह जाते हैं | घर के बड़े बुजुर्गों से यदि बसंत पंचमी उत्सव मनाने का कारण पूछो तो कुछ इसे होली रखने का दिन बताता है, कुछ सरस्वती पूजा से इसके महत्व को जोड़ देते हैं | आजकल के माता पिता से उनके बच्चे यदि बसंत पंचमी पर पतंग उड़ाने का कारण पूछ लें तो बहुतेरे माता-पिता बगले झाँकने लगते हैं व स्वमं को निरुत्तर पाते हैं | आपकी इस समस्या का समाधान करने हेतु आइये हम आपको इस उपलक्ष के महत्व को विस्तार से समझाते हैं -


बसंत ऋतु

वायुमंडलीय दशाओं में विभिन्नताओं के अनुसार वर्ष को कर्इ ऋतुओं में बॉंटा जाता है। ऋतु वर्ष की वह विशिष्ट अवधि है, जिसमें मौसम की दशाएं लगभग समान रहती हैं। ऋतु के बदलने के साथ मौसम की दशाएँ भी बदल जाती हैं। भूमध्यरेखीय वृत्त के ऊपर सूर्य की किरणें वर्ष भर लगभग लंबवत् पड़ती हैं। अत: इन प्रदेशों मे तापमान सारे वर्ष एक समान रहता है। इस कारण भूमध्यरेखीय प्रदेशों में कोर्इ ऋतु नहीं होती.। तटीय भागों में समुद्र का प्रभाव ऋतुओं की भिन्नता को कम कर देता है। धु्रवीय प्रदेशों में केवल दो ऋतुएं होती हैं- लंबी शीत ऋतु और छोटी ग्रीष्म ऋतु । 

शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में तीन-तीन माह की अवधि की चार ऋतुएं मानी गयी हैं।- इनके नाम हैं - बसंत , ग्रीष्म, पतझड़, और शीत। हमारे देश में तीन प्रमुख ऋतुएं -शीत , ग्रीष्म और वर्षा है। हमारे भारत देश में परम्परागत रूप में 6 ऋतुएं मानी जाती हैं-

बसंत ऋतु (चैत्र-बैशाख या मार्च-अप्रैल)
ग्रीष्म ऋतु (ज्येष्ठ-आषाढ़ या मर्इ-जून)
वर्षा ऋतु (श्रावण-भाद्रपद या जुलार्इ-अगस्त)
शरद ऋतु (आश्विन- कार्तिक या सितम्बर-अक्टूबर)
हेंमत ऋतु (अगहन-पौष या नवम्बर-दिसम्बर)
शिशिर ऋतु (माघ-फाल्गुन या जनवरी-फरवरी)

श्रावण की पनपी हरियाली, शरद के बाद हेमन्त एवं शिशिर में वृद्धा के समान हो जाती है, तब बसंत उसका सौन्दर्य लौटा देता है। नवगात, नवपल्लव, नवकुसुम के साथ नवगंध का उपहार देकर विलक्षण बना देता है। बसंत पंचमी का उत्सव हिन्दू तिथि के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि में मनाया जाता है। इस ऋतु को ऋतुराज की संज्ञा दी गयी है। धरती का सौंदर्य इस प्राकृतिक आनंद के स्रोत में बढ़ जाता है। रंगों का त्यौहार होली बसंत ऋतु की शोभा को दुगना कर देता है। हमारा जीवन चारों ओर के मोहक वातावरण को देखकर मुस्करा उठता है। इस समय पंचतत्त्व- जल, वायु, धरती, आकाश एवं अग्नि अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं एवं अपना मोहक रूप दिखाते हैं। 

प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का सोना चमकने लगता, जौ एवं गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता व हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह बसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्य ग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।

वसंत पंचमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं।

 


बसन्त पंचमी कथा :

सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा जी ने जीवों की रचना करते समय जब मनुष्य योनि की रचना की तो उसके पश्चात वे अपनी इस रचना से संतुष्ट नहीं हुए व उन्हें सदैव यही अनुभूति होती रहती कि कहीं न कहीं कुछ कमी अवश्य ही रह गई है क्यूंकि, इतनी सुन्दर रचना के बाद भी चहु ओर कोई हर्षोउल्लास नहीं दिखाई देता था | विष्णु की ने जब ब्रह्मा जी से उनकी इस उदासी का कारण पूछा तब ब्रह्मा जी ने अपने भीतर की असंतुष्टि से उन्हें अवगत कराया | तब विष्णु जी ने उपाय बताते हुए ब्रह्मा जी को देवी सरस्वती की रचना करने के लिए सुझाव दिया, जो मनुष्य व जीवों को वाणी प्रदान कर सकें | यह सुनकर ब्रह्मा जी बड़े ही प्रसन्न हुए व विष्णु जी की आज्ञा लेकर उन्होंने अपने कमण्डल से धरती पर अभिमंत्रित जल छिड़का, धरती पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। तत्पश्चात परिणाम स्वरुप वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा वादन करने का अनुरोध किया। ब्रह्मा जी की आज्ञा से जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद करना प्रारम्भ किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। जलधारा बहने से कोलाहल उत्पन्न हो गया। तब ब्रह्मा जी ने उस देवी का नामकरण किया क्यूंकि इनके द्वारा सभी जीव जंतुओं को वाणी मिले इस कारण इनको वाणी की देवी "सरस्वती" नाम दिया। देवी सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से जाना व पूजा जाता है। ये विद्या एवं बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसंत पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। 

पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी एवं इस प्रकार बसंत पंचमी के दिन से देवी सरस्वती की भी पूजा होनी प्रारम्भ हो गई | 

 


बसंतोत्सव पर प्रसाद एवं भोजन :

बसंत पंचमी के दिन वाग्देवी सरस्वती जी को पीला भोग लगाया जाता है और घरों में भोजन भी पीला ही बनाया जाता है। इस दिन विशेषकर मीठा चावल बनाया जाता है। जिसमें बादाम, किशमिश, काजू आदि डालकर खीर आदि विशेष व्यंजन बनाये जाते हैं। इसे दोपहर में परोसा जाता है। घर के सदस्यों व आगंतुकों में पीली बर्फी बांटी जाती है। केसरयुक्त खीर सभी को प्रिय लगती है। गायन, पतंगबाजी आदि के विशेष कार्यक्रमों से इस त्योहार का आनन्द और व्यापक हो जाता है।

 


पौराणिक महत्व :

त्रेता युग में रावण द्वारा माता जानकी ( सीता जी ) हरण के पश्चात श्री रामचंद्र जी जब उनकी खोज में दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते बढ़ते वे दंडकारण्य नामक स्थान पर पहुंचे, तो वह दिन बसंत पंचमी का ही था | दंडकारण्य नामक स्थान पर शबरी नामक भीलनी रहती थी। यह वही शबरी है  जिसका वर्णन रामायण जी में श्री रामचंद्र जी को अपने झूंठे बेर खिलाने से है | दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम व मंदिर आज भी है। यहां के वासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में किदवंती है कि श्री रामचंद्र जी आकर यहीं बैठे थे।

 


ऐतिहासिक महत्व :

बसंत पंचमी का दिवस हमें राजपूतों में महावीर, शिरोमणि महाराजा पृथ्वीराज चौहान जी की वीरता से सम्बंधित एक महत्वपूर्ण गाथा की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी लुटेरे व आक्रांता मोहम्मद गौरी को सोलह बार युद्ध पराजित किया किन्तु प्रत्येक बार राजपूती उदारता का परिचय देते हुए हुए उसे जीवित छोड़ लौट जाने दिया दिया, किन्तु जब सत्रहवीं बार छल वश वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं।

महाराजा पृथ्वीराज चौहान जी शब्दभेदी बाण चला कर लक्ष्य भेदने की कला में निपुण थे | अतः मृत्युदंड देने से पूर्व मोहम्मद गौरी ने उनके शब्दभेदी बाण का जौहर देखने की इच्छा रखी व इसके चलते उनकी इस कला का प्रदर्शन रखा गया | पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर मोहम्मद गौरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया-

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥

पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट एवं चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह मोहम्मद गौरी के सीने में जा धंसा जिससे मोहम्मद गौरी की मृत्यु हो गई। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। (1192 ई) की यह घटना भी बसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।

ऐतिहासिक महत्व रखने वाली एक अन्य घटना का भी बसंत पंचमी से गहरा संबंध है | लाहौर शहर जो आजकल पाकिस्तान में स्थित है का निवासी एक हिन्दू बालक वीर हकीकत राय, एक दिन जब विद्यालय में पढ़ रहा था तब वहाँ के मौलाना किसी आवश्यक कार्य हेतु विद्यालय छोड़कर चला गया, मौलाना के जाते ही सभी छात्र पढ़ाई छोड़ खेलने लगे, किन्तु वीर हकीकत पढ़ता रहा। इस पर जब विद्यालय के अन्य मुस्लिम बालकों ने उसे छेड़ा, तो उसने उन बालकों को दुर्गा मां की सौगंध दी। किन्तु उन मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां का उपहास उड़ाया। ऐसा होते देख वीर हकीकत ने उन मुस्लिम बालकों को समझाते हुए कहा कि यदि में तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा?

बस फिर क्या था, मौलाना के विद्यालय में वापिस आते ही उन शरारती मुस्लिम छात्रों ने उससे वीर हकीकत की शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। यह बात बढ़ते बढ़ते शहर काजी तक जा पहुंची। मुस्लिम काजी ने वीर हकीकत में माता पिता को बुलवा भेजा व उनको दंडस्वरूप आदेश देते हुए कहा हो गया कि या तो हकीकत मुसलमान बन जाये, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा। वीर हकीकत के माता पिता ने पुत्र मोह में अपने पुत्र को इस्लाम कबूल करने के लिए प्रेरित किया किन्तु  वीर हकीकत ने यह स्वीकार नहीं किया। परिणाम स्वरुप उसे शहर के बीच चौराहे पर तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया।

इतिहास के पन्नो में दर्ज है कि उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ कांप गए व उसके हाथ से तलवार छूटकर नीचे गिर गयी। किन्तु वीर हकीकत ने तलवार उठाकर वापिस उस जल्लाद के हाथ में दी और कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने अपना कलेजा मजबूत कर वीर हकीकत राय कि गर्दन पर तलवार चला दी, किन्तु वीर हकीकत का शीश धरती पर न गिरते हुए आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग लोक चला गया। 

यह घटना बसंत पंचमी के दिन दिनांक (23.02.1734) को ही घटित हुई थी। पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश है, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहां बसंत पंचमी पर आज भी पतंगें उड़ाई जाती है। वीर हकीकत राय लाहौर का निवासी था। अत: पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है। पतंगबाज़ी का बसंत ऋतू से कोई सीधा संबंध नहीं है। पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों वर्ष पूर्व चीन में शुरू हुआ तत्पश्चात कोरिया व जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुँचा। 

 

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