ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

हिंदी तिथियों का वर्गीकरण, तिथियों के स्वामी, संज्ञाएं, नाम एवं संकेतक अंक

Sandeep Pulasttya

8 साल पूर्व

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सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ज्योतिष की गणनाएं सूर्य एवं चन्द्रमा की चाल दिशा एवं दशा पर आधारित है। ज्योतिष गण तिथि पक्ष नक्षत्र आदि की गणना सूर्य एवं चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार ही करते हैं एवं इन गणनाओं की स्पष्टता व सटीकता को सम्पूर्ण श्रष्टि पर निर्विवाद मान्यता भी प्राप्त है। ब्रह्माण्ड ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा की एक कला को तिथि कहा गया है। तिथि का भोग काल एक ही चन्द्र दिन होता है। इसका मान चन्द्रमा एवं सूर्य के अन्तरालों से गणित किया जाता है। प्रतिदिन सूर्य एवं चन्द्रमा की चाल में 12 अंशों का अंतर पड़ता है। यह बारह अंशों का अन्तर ही तिथि कहलाता है। इस प्रकार जब पूर्णिमा का अंत होता है तब चन्द्रमा की स्थिति सूर्य से ठीक 180 अंश आगे होती है, एवं अमावस्या के अंत में चन्द्रमा सूर्य से 360 अंश आगे हो जाता है।

जब सूर्य उदय होता है व उसका प्रकाश प्रतिपादित होता है तो इसे दिन कहा जाता है एवं जब सूर्य अस्त होता है व चन्द्रमा अपनी शीतल लालिमा युक्त चांदनी के साथ उदित होता है तो इस समय को रात्रि कहते हैं।

हिंदी तिथि के अनुसार 15 दिन को पक्ष एवं 30 अथवा 31 दिन को मास बताया गया है एवं बाहर मास अथवा महीने का वर्ष निर्धारित किया गया है।

मास अथवा महीने के मध्य भाग को अमावस्या तथा पूर्ण महीने के दिन को पूर्णिमा कहते हैं।

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में तिथियों की गणना शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होती है। इसके अंतर्गत अमावस्या के बाद की प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियाँ शुक्ल पक्ष की मानी गई हैं एवं पूर्णिमा के बाद की प्रतिपदा से अमावस्या तक की तिथियाँ कृष्णपक्ष की मानी गई है।

 

हिंदी तिथियों के नाम व संकेतक अंक :-

हिंदी तिथियों के नाम व संकेतक अंक अग्र प्रकार से हैं : 

प्रतिपदा को (1) एक अंक से तथा क्रमशः चतुर्दशी को 14 अंक से व अमावस्या को 15 अंक से एवं पूर्णिमा को 16 अंक के द्धारा संकेत किया जाता हैं।

 

प्रतिपदा   9 नवमी
2 द्वितीया 10 दशमी
3 तृतीया 11 एकादशी
4 चतुर्थी 12 द्वादशी
5 पंचमी 13 त्रयोदशी
6 षष्ठी 14 चतुर्दशी
7 सप्तमी 15 अमावस्या
अष्टमी 16 पूर्णिमा

 

 

 

हिंदी तिथि अनुसार अमावस्या के तीन भेद बताये गए हैं :-

1. सिनीवाली

2. दर्श

3. कुहू।

 

1. सिनीवाली-  प्रातः काल से लेकर रात्रि तक रहने वाली अमावस्या को सिनीवाली अमावस्या कहा जाता है।

2. दर्श-  चतुर्दशी से युक्त अमावस्या को दर्श अमावस्या कहा जाता है।

3. कुहू-  प्रतिपदा से युक्त अमावस्या को कुहू अमावस्या कहते हैं।

 

 

तिथियों की संज्ञाएं :-

1, 6, 12 तिथियों को नन्दा तिथि कहते हैं।

2 7 11 तिथियों को भद्रा तिथि कहते हैं।

3, 8, 14 को जया तिथि कहते हैं।

4, 9, 14 को रिक्ता तिथि कहते हैं।

5, 20, 15 को पूर्ण तिथि कहते हैं।

 

 

तिथियों के स्वामी :-

तिथियों के शुभाशुभत्य के लिए उसके स्वामी का भी विचार किया जाता है। एवं अलग अलग तिथियों हेतु उनके अलग अलग स्वामी निर्धारित किये गए है। 

निम्नवत प्रस्तुत सारणी अनुसार सरलता पूर्वक तिथियों के सम्बंधित स्वामी ज्ञात किये जा सकते हैं :

 

    तिथियों के नाम      तिथियों के स्वामी      तिथियों के नाम      तिथियों के स्वामी
प्रतिपदा अग्नि नवमी दुर्गा
द्वितीया ब्रह्मा दशमी काल
तृतीया पार्वती एकादशी विश्वदेव
चतुर्थी गणपति द्वादशी विष्णु
पंचमी सर्प त्रयोदशी कामदेव
षष्ठी कार्तिकेय चतुर्दशी शंकर
सप्तमी सूर्य पूर्णिमा चन्द्रमा
अष्टमी शिव अमावस्या पितृ

 

 

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