8 साल पूर्व
वैदिक जन्म कुण्डली में बारह भाव अथवा बारह घर स्थित होते हैं। इन बारह भावों अथवा घरों के सात ग्रह स्वामी सूर्य, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, चन्द्र एवं शनि ग्रह होते हैं। यह सातों ग्रह जब अपने भाव अथवा घर से किसी दूसरे गृह स्वामी के घर में स्थित हो जाते हैं तो ऐसी स्थिति में वह ग्रह जहाँ कहीं जिस स्थान पर स्थित होता है, दोनों तरफ के स्थानों का समिश्रित फल प्रदान करता है। जन्म कुंडली में अलग अलग ग्रहों के स्थानापन्न से धन वृद्धि के योग या तो घट जाते हैं अथवा बढ़ जाते हैं। निम्न जन्म कुण्डली में बनने वाले कुछ धन वृद्धि योगों की पहचान व उनकी विवेचना प्रस्तुत है-
♦ किसी जातक की जन्म कुण्डली में धन भाव का स्वामी ग्रह यदि पांचवे भाव में स्थित हो, तो ऐसे जातक की धन वृद्धि बुद्धि के समुचित उपयोग से होती हैं।
♦ किसी जातक की जन्म कुण्डली में धन भाव का स्वामी ग्रह लग्न से सातवें भाव अथवा घर में स्थित हो तो ऐसे जातक की धन की वृद्धि दैनिक रोजगार एवं स्त्री के भाग्य से होती है।
♦ किसी जातक की जन्म कुण्डली में धन भाव का स्वामी ग्रह नवम भाव अथवा घर में स्थित हो जाए तो सम्बंधित जातक के भाग्य एवं धर्म में वृद्धि का योग बनाता है।
♦ किसी जातक की जन्म कुण्डली में धन भाव का स्वामी ग्रह यदि दशम भाव अथवा घर में स्थित हो तो ऐसे जातक की धन में वृद्धि व्यापार, पिता कर्म अथवा किसी सर्वशक्तिमान व नितांत धनी व्यक्ति के माध्यम से होती है।
♦ किसी जातक की जन्म कुण्डली में धन भाव का स्वामी ग्रह यदि ग्यारहवें भाव अथवा घर में स्थित हो तो ऐसे जातक को बार-बार लाभ प्राप्ति के मार्गों से धन प्राप्त होता रहता है
♦ किसी जातक की जन्म कुण्डली में धन भाव का स्वामी ग्रह यदि पहले भाव में अथवा लग्न से तीसरे भाव अर्थात धनेश में स्थित हो तो ऐसे जातक को देह के परिश्रम एवं प्रभाव के फलस्वरूप धन प्राप्त होता रहता है।
♦ किसी जातक की जन्म कुण्डली में धन भाव का स्वामी ग्रह यदि लग्न से छठे अथवा आठवें भाव में धनेश बैठा हो तो ऐसे जातक को धन की प्राप्ति बाधाओं एवं परेशानियों के साथ होती रहती है।
♦ किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि धनेश लग्न से बारहवें भाव में स्थित हो तो, ऐसे जातक को मकान, भूमि आदि के माध्यम से अथवा घर बैठे ही धन प्राप्ति के साधन बनते रहते हैं।
♦ किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि धनेश धन स्थान में ही स्थित हो तो ऐसे जातक के धन की संग्रह शक्ति से ही धन की वृद्धि होती रहती है
♦ किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि एक-एक ग्रह दो-दो घरों तक का स्वामी होता है एवं तीन-तीन भावों तक उसकी दृष्टियाँ भी पड़ती हैं एवं उच्च, नीच, मित्र क्षेत्री, शत्रु क्षेत्री, सामान्य क्षेत्री, सभी प्रकार से स्थित होते हैं, अतः हर एक ग्रह का फलादेश भिन्न-भिन्न लग्नों एवं भिन्न-भिन्न भावों में स्थित होकर किस-किस विषय में क्या-क्या देता है यह विशाल भृगु संहिता पद्धति में विधमान है।
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