ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

केमद्रुम योग की कुंडली में पहचान, प्रभाव एवं फलादेश

Sandeep Pulasttya

6 साल पूर्व

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किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि चन्द्रमा किसी भी भाव में अकेला स्थित हो एवं चन्द्रमा के अगले पिछले भावों में भी यदि कोई ग्रह स्थित नहीं हो एवं चन्द्रमा पर किसी भी ग्रह की दृष्टि भी न पड़ रही हो एवं चन्द्रमा अपने स्वामी भाव में भी न स्थित हो, तो केमद्रुम योग बनता है।  केमद्रुम योग में जन्मे जातक को अपने मन में कुछ सदैव खिन्नता, उदासीनता एवं अशान्ति के भाव बने रहते हैं। इस योग में जन्मे जातक के मन में उदारता की बड़े पैमाने पर कमी सदैव रहती है।

यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में चन्द्रमा ग्रह अपने स्वामी भाव में स्थित हो एवं किन्ही दूसरे ग्रहों की दृष्टि उस पर पड़ रही हो एवं चन्द्रमा किसी भी भाव में नितांत एकल स्थित हो एवं चन्द्रमा के अगले पिछले भावों में भी यदि कोई ग्रह स्थित नहीं हो, तो ऐसी स्थिति में केमद्रुम फल का प्रभाव बुरा प्राप्त नहीं होता है।

यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली मे चन्द्रमा ग्रह किसी भी भाव में नितांत एकल स्थित हो एवं चन्द्रमा के अगले पिछले भावों में भी यदि कोई ग्रह स्थित नहीं हो एवं चन्द्रमा पर किसी भी अन्य ग्रह की दृष्टि भी न पड़ रही हो। तब यदि ऐसी स्थिति में चन्द्रमा के साथ राहु अथवा केतु ग्रह में से कोई एक ग्रह युग्म में स्थित हो अथवा चन्द्रमा अपनी नीच राशि अर्थात वृश्चिक राशि में स्थित हो तो इस निकृष्ट केमद्रुम योग के प्रभाव से उस मनुष्य के मन में सदैव अशान्ति, परेशानी तथा धन के कारणों से कष्ट का अनुभव होता रहता है।

 

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