ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

वैदिक कुंडली स्थित स्वक्षेत्रस्थ नवग्रहों का फलादेश

Sandeep Pulasttya

7 साल पूर्व

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किसी जातक की जन्म कुण्डली में जब ग्रह अपने स्वमं के भाव अथवा अपनी ही राशियों में स्थित होते हैं तब सम्बंधित ग्रह को स्वक्षेत्रस्थ ग्रह कहा जाता है। निम्न हम विभिन्न स्वक्षेत्रस्थ नवग्रहों का उनकी स्थिति के अनुसार फलादेश प्रस्तुत कर रहे है –

 

♦   यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में सूर्य स्वक्षेत्री सिंह राशि का होता है, तो ऐसा जातक सुखी, कामी, सुंदर, ऐश्वर्यवान एवं व्यभिचारी प्रवृत्ति का होता है।

♦   यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में चंद्रमा स्वक्षेत्री कर्क राशि का होता है, तो ऐसा जातक  तेजस्वी, सुंदर, धनी एवं भाग्यशाली होता है।

♦   यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में मंगल स्वक्षेत्री मेष राशि का होता है, तो ऐसा जातक   यशस्वी, साहसी, बलवान जमींदार एवं कृषक होता है।

♦   यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में बुध स्वक्षेत्री कन्या अथवा मिथुन राशि का होता है, तो ऐसा जातक बुद्धिमान, शास्त्रों का ज्ञाता, विद्वान, संपादक एवं लेखक होता है।

♦   यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में गुरू स्वक्षेत्री धनु अथवा मीन राशि का होता है, तो ऐसा जातक शास्त्रों का ज्ञाता, चिकित्सक, काव्यप्रेमी एवं सुखी जीवन व्यतीत करने वाला होता है।

♦   यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में शुक्र स्वक्षेत्री वृष अथवा तुला राशि का होता है, तो ऐसा जातक स्वतंत्र प्रकृति का, विचारवान, गुणी, धनी एवं विद्वान होता है।

♦   यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में शनि स्वक्षेत्री मकर अथवा कुंभ राशि का होता है, तो ऐसा जातक कष्ट सहिष्णु, पराक्रमी एवं उग्र स्वभाव वाला होता है।

♦   यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में राहु स्वक्षेत्री कन्या राशि का होता है, तो ऐसा जातक यशस्वी, सुंदर एवं भाग्यशाली होता है।

♦   यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में केतु स्वक्षेत्री मिथुन राशि का होता है, तो ऐसा जातक  धैर्यवान, कर्मठ, चिंताशील, गुप्त युक्तिवाला एवं कष्ट सहिष्णु होता है।

 

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