ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

महाशिवरात्रि व्रत की पुराण अनुसार प्राचीन वैदिक पूजन विधि एवं महिमा

Sandeep Pulasttya

5 साल पूर्व

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महाशिवरात्रि का व्रत भोग एवं मोक्ष की प्राप्ति कराने वाला है | वेद - पुराणों में शिवरात्रि के व्रत को व्रतों का राजा बताया गया है | शिवरात्रि का व्रत एक दिव्य व्रत है | इस व्रत की तुलना में अन्य कोई व्रत, दान, यज्ञ, तप, जप मानव जीवन के लिए हितकारक नहीं है | यह व्रत सर्वजन हेतु धर्म का उत्तम साधन है | निष्काम अथवा सकाम भाव रखने वाले किसी भी मानव द्वारा इस व्रत का अनुष्ठान करने मात्र से भगवान् शिव भक्त पर प्रसन्न होकर उसे मन वांछित फल प्रदान करते हैं | वेदों -पुराणों में कहा गया है की अनजाने में भी इस व्रत का पालन करने मात्र से भगवान् शिव प्रसन्न हो जाते हैं व बिना मांगे ही भक्त को भोग व मोक्ष प्रदान करते हैं | शिवरात्रि व्रत का अनुष्ठान करने से प्राप्त होने वाले फलों का वर्णन शब्दों के माध्यम से करना संभव ही नहीं है क्यूंकि शब्द कम पड़ जायेंगे किन्तु इस व्रत की अपरम्पार महिमा समाप्त नहीं होगी |

 

महाशिवरात्रि व्रत अनुष्ठान की विधि :-

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में त्रियोदशी तिथि का विशेष महत्व है | जिस दिन आधी रात्रि के समय यह तिथि विधमान हो उसी दिन उसे व्रत ( प्रदोष व्रत ) के लिए ग्रहण करना उत्तम माना गया है | हालाँकि वैष्णव संप्रदाय में सूर्योदय कालीन तिथि को ही उस दिन की  तिथि के रूप में माना जाता है एवं सूर्योदय कालीन तिथि तब तक नहीं बदलती जब तक अगले दिन का सूर्योदय न हो जाए अथवा अगले दिन सूर्योदय के समय तिथि दूसरी न हो |

प्रातःकाल सोकर उठने के पश्चात आनंद के साथ स्नान आदि से निवृत होकर संभव हो तो शिवालय में जाकर शिवलिंग का विधिवत पूजन करने के पश्चात शिव जी को नमस्कार करें | तत्पश्चात उत्तम मन से संकल्प करें -

देवदेव महादेव नीलकंठ नमोस्तु ते |

कर्तुमिच्छाम्यहं  देव शिवरात्रिव्रतं तव ||

तव प्रभावाद्देवेश निर्विघ्ननें भवेदिति |

कामाद्याः शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि ||

अर्थात- "देव देव महादेव नीलकंठ आपको नमस्कार है | देव मैं आपके शिवरात्रि व्रत का अनुष्ठान करना चाहता हूँ | देवेश्वर आपके प्रभाव से यह व्रत बिना किसी विघ्न - बाधा के पूर्ण हो और काम आदि शत्रु मुझे पीड़ा न दें" |

ऐसा संकल्प कर पूजन सामग्री का संग्रह करें एवं जिस स्थान पर शास्त्रप्रसिद्ध शिवलिंग स्थित हो वहां रात्रि में स्नान एवं स्वच्छ वस्त्र धारण कर जाएँ व स्वमं विधि विधान का सम्पादन करते हुए शिवजी के निकटवर्ती दक्षिण अथवा पश्चिम भाग के स्थान पर पूजन सामग्री को रख दें |

रात्रि का प्रथम प्रहार प्रारम्भ होने पर शिवजी के सम्मुख बैठ जाएँ व तीन बार आचमन कर पूजन आरम्भ कर दें | यदि जातक पूजन हेतु पार्थिवलिंग ( मिट्टी से निर्मित  शिवलिंग बनाकर उन्हें स्थापित करें, रात्रि के चार प्रहरों में अलग-अलग चार शिवलिंग बनाएं व उन्हें प्रत्येक प्रहर में स्थापित करें ) शिवजी का पूजन करे तो उत्तम फलदायक होता है ऐसा न करने पर मंदिर स्थित शास्त्रप्रसिद्ध शिवलिंग का पूजन करना चाहिए |  सर्व प्रथम पार्थिवलिंग पर गंगा जल समर्पित करें समर्पण करते हुए "ॐ गंगाजलम समर्पयामि" मन्त्र का उच्चारण करें अब गंध ( गुलाब का इत्र ) समर्पित करें समर्पण करते हुए "ॐ इत्रं समर्पयामि" मन्त्र का उच्चारण करें, अब गंगा जल समर्पण करते हुए पंचाक्षर मन्त्र "नमः शिवाय" का 108 बार जप करते हुए द्रव्य को उतारें | अब काले तिल शिवजी को समर्पित करें, समर्पण करते हुए "ॐ तिलम समर्पयामि" मन्त्र का उच्चारण करें, तत्पश्चात चन्दन समर्पण करते हुए "ॐ चन्दनं समर्पयामि" मन्त्र का उच्चारण करें, अब अक्षत ( अखंड चावल ) समर्पण करते हुए "ॐ अक्षतं समर्पयामि" मन्त्र का उच्चारण करें, तत्पश्चात पुष्प समर्पण करें ( कमल अथवा कनेर के पुष्प शिवजी को अधिक प्रिय हैं ) आठ नामों द्वारा शिवजी को पुष्प समर्पित करें | आठ नाम इस प्रकार हैं - भव, शर्व, रूद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम एवं ईशान | इन नामों के आरम्भ में श्री  व अंत में नमः जोड़ें जैसे श्री भवाय नमः, श्री शर्वाय नमः, श्री ........ नमः इस प्रकार प्रत्येक नाम के मन्त्र के साथ ही पुष्प समर्पित करें | पुष्प समर्पित करने के पश्चात धूप दीप नैवेध ( पकवान ) निवेदन करें, समर्पण करते हुए "ॐ धूपं समर्पयामि", "ॐ दीपं समर्पयामि", "ॐ नैवेद्यं समर्पयामि" मन्त्र का उच्चारण करें, व श्रीफल युक्त विशेष अर्घ देकर ताम्बूल समर्पित करें | अब धन समर्पित करें | अब ध्यान करते हुए शिवजी को नमस्कार करें व पंचाक्षर मन्त्र "नमः शिवाय" का 108  बार जप कर भगवान् शिवजी को संतुष्ट करें | शिवरात्रि व्रत के माहात्म्य का पाठ करें तत्पश्चात शिवजी को हाथ जोड़कर नमस्कार करते हुए पार्थिवलिंग का विसर्जन उत्सव के रूप में करें |

 

 

 

प्रार्थना एवं विसर्जन :-

नियमो यो महादेव कृतश्चैव त्वदाज्ञया |

वस्रज्यते मया स्वामिनमं व्रतं जातममनुत्तमम ||

व्रतेनानेन देवेश यथाशक्तिकृतेन च |

सन्तुष्टो भाव शर्वाद्य कृपां कुरु ममोपरि ||

अर्थात- महादेव आपकी आज्ञा से मैंने जो व्रत ग्रहण किया था, स्वामी वह परम उत्तम व्रत पूर्ण हो गया | अतः अब उसका विसर्जन करता हूँ | देवेश्वर शर्व ! यथाशक्ति किये गए इस व्रत से आप आज मुझपर कृपा करके संतुष्ट हों |

इस प्रकार प्रार्थना करते हुए शिव को पुष्पांजलि समर्पित करके धन व सामर्थ्य अनुसार एक अथवा पांच ब्राह्मणो को दक्षिणा सहित भोजन कराने का संकल्प लें व रात्रि का प्रथम प्रहर समाप्त होने पर संकल्प अनुसार दक्षिणा के साथ ब्राह्मण को भोजन कराएं |

शिवजी के पूजन - विसर्जन व दान धर्म  की यह प्रक्रिया उपासक को रात्रि के प्रत्येक प्रहर ( चारों प्रहर ) में रात्रि जागरण करते हुए करनी चाहिए | इस प्रकार विधि विधान से  उपासना करने से  तो शिव जी उस उपासक पर प्रसन्न हो उठते हैं व उससे कभी दूर नहीं रहते | इस व्रत के फल का वर्णन संभव नहीं है |

रात्रि का दूसरा प्रहर आरम्भ होने पर पुनः पूजन हेतु संकल्प लें अथवा एक ही समय चारों प्रहरों के लिए संकल्प कर पूर्व बताई गई विधि की भाँति पूजन - विसर्जन व दान धर्म  की यह प्रक्रिया करें | दूसरे प्रहर के पूजन में अक्षत के स्थान पर जौ समर्पित करें व बिजौरा निम्बू के साथ अर्घ्य देकर खीर का नैवेध समर्पित करें | प्रथम प्रहर में जापे मन्त्रों की अपेक्षा दोगुने मन्त्रों का जाप करें |

तीसरे प्रहर के आगमन पर पूजन - विसर्जन दान धर्म तो पूर्व की ही भाँति करें किन्तु जौ के स्थान पर गेहूं समर्पित करें व आक के पुष्प समर्पित करें | धूप दीप दिखाकर, अनार के फल के साथ अर्घ्य देकर पूए का नैवेध समर्पित करें व साथ साथ भाँति - भाँति के शाक भी अर्पित करें | पार्थिवलिंग की आरती कपूर से करें | दूसरे प्रहर की अपेक्षा दोगुना मन्त्र जप करें |

चर्तुथ प्रहर के आगमन पर तीसरे प्रहर की पूजा का विसर्जन पूर्व बताई विधि अनुसार करें व पुनः पूजन, दान, धर्म पूर्व की ही भाँति करें | कँगनी, उड़द, मूंग, सप्तधान्य, शंखपुष्पी तथा बेलपत्रों से भगवान् शिवजी का पूजन करें | इस प्रहर में भाँति - भाँति के मिष्ठानो का नैवेध समर्पित करें अथवा उड़द के बड़े बनाकर सदाशिव को समर्पित करें | केले के फल अथवा अन्य विविध फलों के साथ अर्घ्य दें | तीसरे प्रहर में जापे मन्त्रों की अपेक्षा दोगुने मन्त्रों का जाप करें |

सूर्योदय होने तक शिवजी के भजनो गीत नाच गान आदि के माध्यम से समय व्यतीत करें | सूर्योदय होने पर पुनः नित्यकर्म - स्नान आदि से निवृत होकर शिवजी का भाँति भाँति से पूजन अर्चन करें | तत्पश्चात ब्राह्मण से अपना अभिषेक कराएं तथा ब्राह्मणो को दान - दक्षिणा देकर भिन्न्न भिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों से भोजन कराएं व उन्हें प्रसन्न व संतुष्ट करें | तत्पश्चात शिवजी को नमस्कार कर निम्न प्रार्थना करें -

सुखदायक कृपानिधान शिव ! मैं आपका हूँ | मेरे प्राण आप में ही लगे हैं और मेरा चित्त सदा आपका ही चिंतन करता है | यह जानकार आप जैसा उचित समझें वैसा करें | भूतनाथ, मैंने जानकार अथवा अनजाने में जो जप और पूजन आदि किया है, उसे समझकर दयासागर होने के नाते ही आप मुझ पर प्रसन्न हों | उस उपवास व्रत से जो फल हुआ हो, उसी से सुखदायक भगवान् शंकर मुझपर प्रसन्न हों | महादेव, मेरे कुल में सदा आपका भजन होता रहे | जहां आप इष्ट देवता न हों, उस कुल में मेरा कभी जन्म न हो |

इस प्रकार प्रार्थना करने के पश्चात शिवजी को पुष्पांजलि समर्पित करें व ब्राह्मणो से तिलक एवं आशीर्वाद ग्रहण करें | तदन्तर शिवशम्भु का विसर्जन करें |

 

जो उपासक स्वमं को चार प्रहर का शिवजी का पूजन - विसर्जन करने में असमर्थ पाते हैं वे चारों पार्थिवलिंग एक बार रात्रि के प्रथम प्रहर में ही बना कर, प्रथम प्रहर की विधि अनुसार पूजन करें, उपासक चाहे तो प्रथम प्रहर अथवा चारों प्रहर की पूजा में प्रयुक्त पूजन सामग्री के साथ विधि - विधान से पूजन अर्चन कर अपनी सामर्थ्य एवं संकल्प अनुसार दक्षिणा के साथ ब्राह्मण को भोजन कराएं | तदन्तर चारों पार्थिवलिंगो का अगले दिन सूर्योदय होने पर, एक साथ विसर्जन कर सकते हैं |

 

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