ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

नव दुर्गा का चतुर्थ स्वरुप - कूष्माण्डा

Sandeep Pulasttya

5 साल पूर्व

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माँ दुर्गा जी के चौथे स्वरुप का नाम कूष्माण्डा है | अपनी मंद हलकी हंसी द्वारा अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हे कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है | जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था चारों ओर अंधकार ही अंधकार परिव्याप्त था तब इन्ही देवी ने अपने ईषत हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी | अतः यही सृष्टि आदि की स्वरूपा आदि शक्ति है | इनका निवास सूर्यमण्डल के भीतर लोक में है | इनकी आठ भुजाएं हैं | अतः इस कारण से अष्टभुजा देवी के नाम से विख्यात है | इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अभूतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है | आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जयमाला है | इनका वाहन सिंह है | नवरात्र पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरुप की ही उपासना की जाती है | इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में अवस्थित होता है | अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरुप को ध्यान में रखकर पूजा उपसाना के कार्य में लगना चाहिए | साधना करने से माँ तेज प्रदान करती हैं, सृजन शक्तिवका विकास होता है, माँ सभी विघ्न नाश कर सुख समृद्धि प्रदान करती हैं |

नैवैध में माँ  कूष्माण्डा को मक्खन, शहद और मालपुए चढ़ाना चाहिए |

 

ध्यान मन्त्र जप :-

सुरा-सम्पूर्ण-कलशं रुधिरा प्लुतमेव च दधाना हस्त पक्षाभ्यां, कूष्माडा शुभ दास्तु में ||

 

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