ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

नव दुर्गा का सप्तम स्वरुप - कालरात्रि

Sandeep Pulasttya

5 साल पूर्व

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माँ दुर्गा जी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है | इनके शरीर का रंग घने अन्धकार की तरह एकदम काला है | सर के बाल बिखरे हुए हैं | गले में विधुत की तरह चमकने वाली माला है | इनके तीन नेत्र हैं | ये तीनो नेत्र ब्रह्माण्ड के सद्रश गोल हैं इनसे विधुत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं | इनकी नासिका के श्वास से भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं | इनका वाहन गर्दभ है | उप्पर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं | दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है | बायें तरफ के उप्पर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खडग ( कटार ) है | माँ कालरात्रि का स्वरुप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं | इसी कारण इनका नाम शुंभकरी भी है | दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है | उसके लिए ब्रह्माण्ड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है | माँ कालरात्रि शरणार्थ को ग्रहबाधा, शत्रु से मुक्ति व शोकमुक्त कर मनोवांछित फल प्रदान करती हैं | पूजा में तेल का दीपक जलाएं व नैवैध में माँ को चावल, चिवड़ा व गुड़ भेंट करने चाहिए |

 

ध्यान मन्त्र जप :-

एक वेणी जपा-कर्ण-पूरा नग्ना वरा स्थिता |

लम्बोष्ठि कर्णिका कर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणि ||

 

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