ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

नव दुर्गा का षष्टम स्वरुप - कात्यायनी

Sandeep Pulasttya

5 साल पूर्व

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माँ दुर्गा जी के छठवें स्वरुप का नाम कात्यायनी  है | प्रसिद्द महृषि कत के पुत्र ऋषि कात्य के गोत्र में महृषि कात्यायन उत्पन्न हुए थे | उन्होंने भगवती पराम्बा की घोर उपसाना की और उनसे अपने घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने का आग्रह किया | कहते हैं महिषासुर का उत्पात बढ़ने पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनो के तेज के अंश  से देवी कात्यायनी महृषि कात्यायन की पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थी | माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं ये ब्रजमण्डल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रितिष्ठित हैं | इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है | इनकी चार भुजाएं हैं इनका दाहिना उप्पर वाला हाथ अभय मुद्रा में है तथा नीचे वाला वर मुद्रा में है | बायें उप्पर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है | इनका वाहन सिंह है | इनकी पूजा के लिए साधक को मन आज्ञा चक्र में स्थित करना चाहिए | माँ का यह रूप साधक को मोक्ष के द्वार की ओर बढ़ाने में सहायक है | सभी कर्म पूर्णता को प्राप्त होते हैं | माँ कात्यायनी चारों पुरषार्थों को प्रदान करने वाली हैं |

नैवैध में माँ को शक्कर, गुड़ व शहद भेंट करना अत्यंत शुभ फलदाई है |

 

ध्यान मन्त्र जप :-

चंद्र हासोज्ज्वल-करा, शार्दूल वर वाहना कात्यायनी-शुभं वाधाटू-देवी दानव धातिनि ||

 

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