ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

पांच सरल कर्म जिनके नित्य पालन से सौभाग्य, निरोगी काया, क्रोध पर विजय, सुख शान्ति, उच्च चरित्र, धन लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं

Sandeep Pulasttya

7 साल पूर्व

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शास्त्रों व पुराणों में सभी मनुष्यों को नित्य प्रातः काल के समय पांच अनिवार्य कर्म करने की संस्तुति की गई है जिनके करने से कोई भी मनुष्य निरोगी काया, क्रोध पर विजय, परिवार में सुख शान्ति व प्रेमभाव, उच्च चरित्र, धन लाभ, सौभाग्य आदि की प्राप्ति कर सकता है | प्रायः मनुष्यों को यह कहते सुना व देखा गया है की हम यह सब प्राप्त तो करना चाहते हैं परन्तु हमारे पास समय अथवा धन अथवा दोनों का ही आभाव है, इसके लिए आपको स्पष्ट कर दूँ की इन पांच कर्मो के क्रियान्वयन में समय अथवा धन भी खर्च नहीं करना पड़ता है |

सर्वप्रथम नित्य ब्रह्ममहूर्त में बिस्तर का त्याग कर दें | ब्रह्ममहूर्त से तात्पर्य है रात्रि का चौथा प्रहार अर्थात सूर्योदय से लगभग दो से तीन घंटे पूर्व का समय | उठकर सीधे धरती पर अपने पैर न रखें क्यूंकि सुबह के समय धरती का तापमान ठंडा होता है जबकि हमारे शरीर का तापमान शिथिल अवस्था में पड़े रहने के कारण गर्म रहता है | तुरंत ही बिस्तर से उठकर धरती पर पैर टेकने से स्वास्थय हानि होगी | अतः सोकर उठने के पश्चात बिस्तर पर कुछ देर बैठकर सर्व प्रथम अपनी दोनों हथेलियों के दर्शन करें | आपकी हथेली व उँगलियों में बारह देवताओं का वास है इनके दर्शन मात्र से आप बारह देवताओं के दर्शन कर लेते हैं |

इसके पश्चात अपने दाहिने हाथ कि बीच कि तीन उँगलियों से धरती माता को छूकर नमन करें | इसमें कनिष्ठा अंगुली एवं अंगूठा धरती को न छूने दें, नमन करते समय इन्हे मोड़कर रखें | धरती माता को नए दिन का सूर्य दर्शन लाभ कराने के लिए धन्यवाद करें, क्यूंकि यदि धरती नहीं होती तो मनुष्य नहीं होता | पीने के लिए जल खाने के लिए अन्न, सांस लेने के लिए हवा आदि सब हमें धरती से ही मिलता है | धरती नमन के पश्चात अपना दाहिना पैर धरती माता पर रखें फिर बाहिना पैर धरती माता पर रख खड़े हो जाएँ |

अब सर्व प्रथम शयनकक्ष में अथवा घर में कहीं भी रखे दर्पण में कुछ देर अपना चेहरा देखें | अक्सर यह कहते पूछते सुना गया है कि प्रातः उठकर सर्वप्रथम किसका चेहरा देखना चाहिए | इसका समाधान हमारे धर्म ग्रंथों में बड़ा ही स्पष्ट रूप से दिया गया है | प्रातः सर्वप्रथम अपना स्वमं का चेहरा दर्पण में देखने से मनुष्य का क्रोध, अहंकार, लोभ, काम, दुर्भावना आदि का ह्रास होता है, यह सब स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं | इसके पश्चात आपने यदि कोई स्वर्ण कि अंगूठी धारण कि हुई है तो उसको प्रसन्न चित्त से निहारें |

इसके पश्चात नित्य क्रिया से निवृत्त हों मंजन करें व स्नान करें | यह ध्यान रखें कि मंजन यदि ऊँगली से करें तो मध्यमा ऊँगली से ही करें, तर्जनी ऊँगली का प्रयोग दांत साफ़ करने हेतु कदापि न करें | दांत ब्रश अथवा दातुन से साफ़ करते हैं तो इसमें ऊँगली कि आवश्यकता ही नहीं पड़ती है | दिन में यदि आप भोजन के बाद कुल्ला करते है व फिर मुँह में ऊँगली डालकर दांत भी साफ़ करते है, तब इस समय भी तर्जनी ऊँगली का उपयोग दांत साफ़ करने में न करें, सदैव मध्यमा ऊँगली का ही प्रयोग दाँतों कि साफ़ सफाई करने में करना चाहिए | तर्जनी ऊँगली का प्रयोग किसी को कुछ संकेत के द्वारा दिखाने, किसी दूसरे मुनष्य कि तरफ इशारा करने आदि में भी नहीं करना चाहिए | यदि संकेत कर किसी अन्य को बताना ही पड़े तो इसमें मध्यमा ऊँगली का ही प्रयोग करें |

अब स्नान के पश्चात माता - पिता, घर के बुजुर्गों के चरण स्पर्श करें व उनका आशीर्वाद प्राप्त करें | इससे आपके घर में प्रेम भाव, आदर - सत्कार, एकता, शान्ति मर्यादा सदैव बनी रहेगी | यदि आप अपने माता - पिता के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं तो, आपकी संतान भी आपके साथ ऐसा ही व्यवहार करेगी क्यूंकि, माता - पिता के लक्षण उनकी सन्तानो में अवश्य ही स्थानांतरित होते हैं |

इसके पश्चात सूर्य को अर्घ दें | ( सूर्य को अर्घ देने कि प्राचीन वैदिक विधि अन्य आर्टिकल में पढ़ें ) |

यह सब कर्म करने के पश्चात घर के मंदिर में अथवा बाहर मंदिर में जाकर आप पूजा पाठ कर सकते हैं | उक्त वर्णित पांच कर्म का नित्य पालन करने से आपके द्वारा कि गई पूजा - अर्चना का पूर्ण फल भी आपको अवश्य ही प्राप्त होगा | इसमें कोई संदेह नहीं है |

 

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