7 साल पूर्व
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार भूत काल, भविष्य काल एवं वर्तमान काल से सम्बंधित फलित का सटीक आंकलन अवकाश मार्गी, ग्रह गोचरों से ही किया जा सकता है, विशोत्तरी दशाएं एवं अन्तर प्रत्यन्तर दशाओं से सटीक आंकलन प्राप्त नहीं हो पाता है। अतः अभीष्ट समय का सटीक प्रत्यक्ष फलादेश ज्ञात करने हेतु, यह ज्ञात करना आवश्यक है कि उस समय के पंचागों में कौन-कौन से ग्रह, किस किस राशि में चल रहे हैं एवं पंचांग में गुरू, शनि, राहु एवं केतु ग्रह की चाल किन किन वर्षों में उत्तम चलेगी। यह भी देखना आवश्यक है की जन्म लग्न कुण्डली में उक्त चारों ग्रह किस भाव में स्थित हैं एवं इन भावों के अनुसार यह ग्रह कैसा फल प्रदान करेंगे।
पंचांग अनुसार भूत भविष्य एवं वर्तमान का शुभ फलादेश :
अभीष्ट समय का सटीक प्रत्यक्ष एवं शुभ फलादेश हेतु, पंचांग अनुसार यह देखें कि शनि ग्रह की समय वृषभ राशि में, मकर राशि में, कुम्भ राशि में, कर्क राशि में एवं सिंह राशि में आएंगे। शनि ग्रह जब तुला राशि में स्थित होंगे तो, वृष भाव पर अपनी पूर्ण दशम दृष्टि डालेंगे। जब धनु राशि पर होंगे तो लाभ भाव पर तीसरे भाव से अपनी पूर्ण दृष्टि डालेंगे एवं जब मकर राशि में या कुम्भ राशि में स्थित होंगे, तो अपने स्वामी भाव में ही बलवान होंगे, एवं जब सिंह राशि में स्थित होंगे, तो लाभ पर तीसरे भाव से पूर्ण दृष्टि डालेंगे एवं जब मकर राशि में या कुम्भ राशि में होंगे, तो अपने स्थान में ही बलवान होंगे, एवं जब सिंह राशि में होंगे, तो अपने स्वामी भाव में ही बलवान होकर लाभ भाव पर पूर्ण दृष्टि डालेंगे। जब जब शनि ग्रह ऐसी स्थितियों में आएंगे तब-तब धन लाभ, रोजगार एवं मान प्रतिष्ठा में वृद्धि प्रदान करेंगे।
शुक्र ग्रह जब भी मेष राशि, वृष राशि, कर्क राशि, सिंह राशि, तुला राशि, धन राशि, मकर राशि अथवा कुम्भ राशि में स्थित होंगे तब तब धन लाभ एवं वृद्धि प्रदान करेंगे।
बृहस्पति अथवा गुरु ग्रह जब भी मेष राशि, सिंह राशि अथवा धन राशि में स्थित होंगे तब तब भाग्योदय में वृद्धि प्रदान करेंगे।
पंचांग अनुसार भूत भविष्य एवं वर्तमान का अशुभ फलादेश :
अभीष्ट समय का सटीक प्रत्यक्ष एवं अशुभ फलादेश हेतु, पंचांग अनुसार जो ग्रह नीच राशियों में गोचर होंगे अथवा सूर्य से अस्त होंगे, अथवा लग्न भाव से षष्टम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में गोचर होंगे, तो वह सभी ग्रह प्रायः अशुभ ही फल प्रदान करेंगे एवं पंचांग में जो कोई ग्रह वक्री होंगे, वह भी कुछ अशान्तप्रद फल प्रदान करते रहते हैं। इस प्रकार से फलित का विवेचन करते समय ग्रहों की भावगत स्थिति के साथ साथ वे किस भाव पर अपनी पूर्ण दृष्टि डाल रहे एवं उन दृष्टिगत भावों में सम्बंधित ग्रहों की कोई नीच राशि या उच्च राशि या स्वराशि में तो स्थित नहीं है।
यदि किसी भी ग्रह की अपनी नीच राशि पर दृष्टि पड़ रही होगी तो, वह ग्रह उस भाव को कष्टदायाक फल प्रदान करता है।
इसी प्रकार से हर एक ग्रह जो गोचर पंचांग में चल रहे हैं, वह सभी ग्रह जन्म कुण्डली में, कौन-कौन से अच्छे-बुरे भावों में चल रहे हैं एवं कौन-कौन से भावों के वह स्वामी है एवं कौन-कौन से भावों पर उनकी अच्छी बुरी दृष्टियाँ पड़ रही हैं एवं कितने-कितने काल तक वह ग्रह उन भावों में ठहरेंगे इन सभी बातों का विचार करके, फलादेश ज्ञात करना ज्योतिषशास्त्र अनुसार उचित माना गया है।
नोट : अपने जीवन से सम्बंधित जटिल एवं अनसुलझी समस्याओं का सटीक समाधान अथवा परामर्श ज्योतिषशास्त्र के हॉरोस्कोप फॉर्म के माध्यम से अपनी समस्या भेजकर अब आप घर बैठे ही ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं | अधिक जानकारी आप ज्योतिषशास्त्र के FAQ's पेज से प्राप्त कर सकते हैं |
© The content in this article consists copyright, please don't try to copy & paste it.