ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

राहु केतु का कुण्डली के विभिन्न भावों में फलादेश एवं शक्ति परिचय

Sandeep Pulasttya

8 साल पूर्व

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राहु एवं केतु ग्रह पापक व क्रूर ग्रहों की श्रेणी के ज्योतिष शास्त्र के अनुसार समझे जाते हैं। किसी जातक की जन्म कुण्डली में राहु एवं केतु चाहे जिस किसी भी भाव में स्थित हों, सम्बंधित जातक को कुछ न कुछ परेशानी अथवा अशुभ फल अवश्य ही प्रदान करते हैं।

फिर भी कोई कितना भी क्रूर क्यों न हो किन्तु कभी न कभी अथवा कहीं न कहीं कुछ अच्छा भी कर देता है। अपवाद स्वरुप कुण्डली में राहु अथवा केतु ग्रह यदि तृतीय, षष्टम, अथवा एकादश भावों में स्थित होते हैं तो सम्बंधित जातक को शुभ फल व शक्ति प्रदान करते हैं, यही नहीं यदि जन्म कुण्डली में किसी भी भाव में यदि किसी शुभ ग्रह के साथ स्थित होते हैं, तो भी शुभ फल प्रदान करते हैं। जन्म कुण्डली के उक्त वर्णित भावों को छोड़कर यदि ये दोनों ग्रह किसी अन्य भाव में नितांत एकल रूप में स्थित हों अथवा किसी शुभ ग्रह की इन पर पूर्ण दृष्टि भी न पड़ रही हो, तो ऐसी स्थिति में भी सम्बंधित जातक को कुछ न कुछ परेशानी अथवा अशुभ फल अवश्य ही प्रदान करते हैं।

अपने स्वभाव के अनुसार, राहु एवं केतु ग्रह उच्च भाव स्थिति में स्थित होकर सम्बंधित जातक को कितना भी उत्तम फल क्यों न प्रदान कर दें किन्तु, जिस भाव में ये होते हैं उस भाव को चिन्ता मुक्त एवं शान्तिप्रद स्थिति में नहीं रहने देते हैं।

राहु अथवा केतु ग्रह जन्म कुण्डली में यदि केवल चन्द्रमा के साथ ग्रह युति में जिस भी भाव में स्थित होंगे तो उस भाव के सम्बन्ध में एवं चन्द्रमा के स्वामी भाव के सम्बन्ध में मन को अशांतिप्रद एवं चिंतित रखते हैं, किन्तु राहु अथवा केतु ग्रह जिस जिस भाव में कष्ट उत्पन्न करते हैं, उसी को अन्त में शक्ति प्रदान करते हैं।

 

राहु एवं केतु का शक्ति परिचय

किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि तृतीय, षष्टम अथवा एकादश भाव में राहु अथवा केतु ग्रह स्थित हो अथवा केतु धन भाव में स्थित हो, अथवा राहु मिथुन राशि का होकर किसी भी भाव में स्थित हो, अथवा केतु पर पूर्ण दृष्टि पड़ रही हो, किन्तु राहु धनु राशि का न हो एवं केतु मिथुन राशि का न हो, तो उपरोक्त स्थिति में राहु अथवा केतु ग्रह जिस भी भाव में स्थित होंगे उस भाव को शक्ति प्रदान करते हैं, किन्तु उस भाव की प्रगति में कुछ अवरोध एवं चिंता अवश्य उत्पन्न करते हैं।

अंततः राहु अथवा केतु ग्रह जिस भाव में भी उपरोक्त अनुसार स्थित होंगे, उस भाव की विशेष उन्नति अवश्य करते हैं।

 

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