6 साल पूर्व
किसी जातक की जन्म कुण्डली विवेचन में उस कुण्डली में स्थित योग अपना अलग ही महत्व रखते है। योग से तात्पर्य ग्रहों के कुछ विशेष जोड़ है अर्थात् ग्रह जब विशेष परिस्थिति में कुछ खास योग बनाते हैं तो ऐसी स्थिति में शुभ अथवा अशुभ फल प्रदान करते हैं। यहां सरस्वती योग के फलित का विवेचन किया जा रहा है-
सरस्वती योग :
कुंडली में पहचान एवं विवेचना :- किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि बुध, बृहस्पति एवं शुक्र ग्रह लग्न भाव से केन्द्र भाव अर्थात प्रथम भाव, चतुर्थ भाव सप्तम भाव व दशम भाव एवं त्रिकोण भाव अर्थात दूसरे भाव, पंचम भाव व नवम भाव में स्थित हो एवं बृहस्पति ग्रह स्वराशि मित्र राशि अथवा उच्च राशि में बलवान होकर स्थित हो तो ऐसी कुण्डली में सरस्वती योग बनता है।
फलादेश :- जिस किसी जातक की जन्म कुण्डली में सरस्वती योग स्थित होता है तो ऐसा जातक बुद्धिमान, लेखक एवं कवित्व प्रवृत्ति वाला, नाटककार, विद्वान् गणितज्ञ, शास्त्रार्थ में निपुण, कीर्तिवान, चहु ओर विख्यात, स्त्री एवं पुत्र आदि के सुख से युक्त एवं अत्यंत ही भाग्यवान होता हैं।
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