8 साल पूर्व
किसी जातक की जन्म कुण्डली विवेचन में उस कुण्डली में स्थित योग अपना अलग ही महत्व रखते है। योग से तात्पर्य ग्रहों के कुछ विशेष जोड़ है अर्थात् ग्रह जब विशेष परिस्थिति में कुछ खास योग बनाते हैं तो ऐसी स्थिति में शुभ अथवा अशुभ फल प्रदान करते हैं। यहां सर्वनाशक ज्वालामुखी योग के फलित का विवेचन किया जा रहा है-
सर्वनाशक ज्वालामुखी योग :
ज्योतिष शास्त्र की मान्यता अनुसार कुछ विशेष तिथियों एवं नक्षत्रों के परस्पर मिलने पर कुछ अशुभ एवं कष्टदायी योग बताये गये हैं। इन योगों में जो सबसे ज्यादा सर्वनाशक योग हैं, उन्हें ज्वालामुखी योग कहा गया है। ज्योतिष शास्त्रियों के मतानुसार ज्वालामुखी योगों में किए गये कार्य नाश करने वाले समझे गए हैं।
ज्योतिष शास्त्र की मान्यता अनुसार ज्वालामुखी योग पांच प्रकार के माने गए हैं :-
1. प्रतिपदा तिथि को मूल नक्षत्र होने पर।
2. पंचमी तिथि को भरणी नक्षत्र होने पर।
3. अष्टमी तिथि को कृत्तिका नक्षत्र होने पर।
4. नवमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र होने पर।
5. दशमी तिथि को श्लेषा नक्षत्र होने पर।
ऐसी मान्यता है कि उक्त वर्णित समस्त पाँचों कुयोगों में जो कार्य क्रियान्वित किया जाता है वह निष्फल रहता है।
इस विषय में ज्योतिष शास्त्र में निम्नलिखित पंक्तियाँ प्रसिद्ध है-
प्रतिपद में तज मूल को पंचमी भरणी भार।
अष्टमी, कृत्तिका रोहिणी नवमी तिथि विचार।।
दशमी श्लेषा की तेजी कहता हूँ मैं साँच।
बुरे तिथि नक्षत्र ये ज्वालामुखी है पांच।।
जन्मे से जीवे नहीं बसे तो उजड़ होय।
नारी पहे चूडि़याँ निज पति को खोय।।
बोए तो काटे नहीं कुँए न उपजे नीर।
ये ज्योतिष की सूक्तियाँ धरों हृदय में धीर।।
यह केवल इन योगों का फलित है जो केवल इन योगों पर ही आधारित है। वस्तुतः कुछ अज्ञानी ज्योतिषाचार्य केवल ज्वालामुखी जैसे कुयोगों का विचार करके शेष कुण्डली का विवेचन किये बिना ही अशुभ फलादेश कर देते हैं, यह सर्वथा सही नहीं है। क्यूंकि तिथि एवं नक्षत्रों के फलित को कुण्डली में स्थित ग्रह व राशियाँ आदि भी प्रभावित करते हैं।
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