7 साल पूर्व
किसी जातक की जन्म कुण्डली विवेचन में उस कुण्डली में स्थित योग अपना अलग ही महत्व रखते है। योग से तात्पर्य ग्रहों के कुछ विशेष जोड़ है अर्थात् ग्रह जब विशेष परिस्थिति में कुछ खास योग बनाते हैं तो ऐसी स्थिति में शुभ अथवा अशुभ फल प्रदान करते हैं।
यहाँ वाणी योग का विवेचन किया जा रहा है :-
♦ यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में शनि ग्रह दूसरे भाव में स्थित हो, तो ऐसा जातक अशिष्ट भाषा बोलने वाला होता है एवं उसकी वाणी भी स्पष्ट नहीं होती है।
♦ यदि किसी जातक की जन्म कुंडली के दूसरे भाव में बृहस्पति अथवा केतु ग्रह स्थित हो, तो ऐसे जातक की वाणी चतुर होती हैं एवं वह बोलने में प्रवीण होता है।
♦ यदि किसी जातक की जन्म कुंडली के दूसरे भाव में सूर्य अथवा मंगल ग्रह स्थित हो, तो ऐसे जातक की वाणी में प्रतिकूलता के भाव प्रदर्शित होते हैं एवं ऐसा जातक दूसरे व्यक्तियों की बात काट कर अपनी बात कहने वाला होता है।
♦ यदि किसी जातक की जन्म कुंडली के दूसरे भाव में चन्द्रमा ग्रह स्थित हो, तो ऐसा जातक अत्यंत ही बातूनी होता है।
♦ यदि किसी जातक की जन्म कुंडली के दूसरे भाव में बुध ग्रह स्थित हो, तो ऐसे जातक की भाषा शैली युक्ति एवं चातुर्यपूर्ण होती है।
♦ यदि किसी जातक की जन्म कुंडली के दूसरे भाव में राहु ग्रह स्थित हो, तो ऐसे जातक की वाणी में दीनता के भाव झलकते हैं।
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