ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

स्त्री जातक की जन्म कुण्डली के विभिन्न भावों में ग्रहों की उपस्थति से उत्पन्न कुछ विशिष्ट योगफलों की विवेचना

Sandeep Pulasttya

8 साल पूर्व

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यदि किसी स्त्री जातक की कुण्डली में मंगल, बुध एवं शुक्र ग्रह बलवान हों एवं लग्न से सम राशि पर स्थित हों, तो ऐसी स्त्री संसार भर में प्रसिद्धि प्राप्त करने वाली, शास्त्र ज्ञान में धनी, ब्रह्म विधा में निपुण एवं ब्रह्मवादिनी होती है।

यदि किसी स्त्री जातक की कुण्डली में चंद्रमा ग्रह वृष राशि, वृश्चिक राशि, सिंह राशि अथवा कन्या राशि; इनमें से किसी भी राशि पर स्थित हो, तो ऐसी स्त्री के पुत्र कम संख्या में होते है।

यदि किसी स्त्री जातक की कुण्डली के सप्तम भाव में मंगल ग्रह हो, तो ऐसी स्त्री जातक बाल विधवा होती है अथवा जिस स्त्री जातक की कुण्डली के सप्तम भाव में शनि ग्रह स्थित हो एवं समस्त पापक ग्रहों की उस पर दृष्टि पड़ रही हो, तो ऐसी स्त्री बिन बिहायी ही रह जाती है एवं यदि विवाह हो भी जाता है तो उसे पति अल्पायु मिलता है एवं सप्तम भाव में शुभ ग्रह कमजोर हों एवं पापक ग्रह भी साथ में स्थित हों, तो ऐसी स्त्री अपने पति को छोड़कर किसी दूसरी स्त्री के पति के साथ काम सम्बन्ध स्थापित करती है।

यदि किसी स्त्री जातक के जन्म समय में लग्न एवं चंद्रमा ग्रह विषम राशि में स्थित हों, तो ऐसी स्त्री पुरूषों के समान डील डोल वाली होती है। यदि उक्त स्थिति के लग्न एवं चंद्रमा पर पापक ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो, तो ऐसी स्त्री पाप एवं दुष्कर्म करने की आसक्त होती है। यदि लग्न एवं चंद्रमा ग्रह विषम राशि में स्थित हों एवं उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो, तो ऐसी स्त्री मध्यम स्वभाव वाली होती है एवं यदि लग्न एवं चंद्रमा ग्रह सम राशि में स्थित हों एवं उन पर पापक ग्रहों की दृष्टि पड रही हो, तो ऐसी स्त्री भी मध्यम स्वभाव वाली ही होती है। सरल शब्दों में स्त्री स्वाभाव के सम्बन्ध में विवेचन किया जाए तो यह समझना चाहिए कि स्त्री जातक की कुण्डली में जो ग्रह अधिक बलशाली हों, उन्हीं ग्रहों के प्रभाव के अनुसार स्त्री का भी स्वभाव होता है।

यदि किसी स्त्री जातक की जन्म कुण्डली सूर्य ग्रह सप्तम भाव में स्थित हो, तो ऐसी स्त्री अपने पति द्वारा त्याग दी जाती है। जिस स्त्री जातक की जन्म कुण्डली के सप्तम भाव में बुध एवं शनि ग्रह स्थित हों, तो ऐसी स्त्री का पति नपुंसक होता है। यदि स्त्री जातक की जन्म कुण्डली के सप्तम भाव में चर राशि हो, तो ऐसी स्त्री का पति सदैव परदेश अथवा अपने निवास स्थान से दूर ही रहता है। यदि स्त्री जातक की जन्म कुण्डली के सप्तम भाव में स्थिर राशि हो, तो ऐसी स्त्री का पति सदैव घर में ही रहता है एवं यदि स्त्री जातक की जन्म कुण्डली के सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि स्थित हो, तो ऐसी स्त्री का पति घर एवं परदेश दोनों ही स्थानों में रहता है।

यदि किसी स्त्री जातक की जन्म कुण्डली में चंद्रमा एवं शुक्र ग्रह दोनों ही लग्न भाव में स्थित हों, तो ऐसी स्त्री स्वभाव से ईर्ष्यालु, दूसरों को कष्ट देकर स्वमं सदैव सुखी रहने वाली होती है।

यदि किसी स्त्री जातक की जन्म कुण्डली में लग्न की राशि एवं चंद्रमा ग्रह की राशि सम हो एवं शुभ ग्रहों से इनकी युति हो अथवा शुभ ग्रहों की दृष्टि उन पर पड रही हो, तो ऐसी स्त्री सुंदर, सुशील, अच्छे पुत्र एवं पति के सुख से युक्त एवं आभूषणों व संपत्ति से युक्त होती है।

यदि किसी स्त्री जातक की जन्म कुण्डली में लग्न की राशि एवं चंद्रमा ग्रह की राशि विषम हो एवं अशुभ ग्रहों से इनकी युति हो अथवा अशुभ ग्रहों की दृष्टि उन पर पड रही हो, तो ऐसी स्त्री कुटिल बुद्धि वाली, बेकाबू, पति के साथ क्रोधपूर्ण व्यवहार करने वाली एवं अविश्वसनीय होती है।

यदि किसी स्त्री जातक की जन्म कुण्डली के अष्टम भाव में कोई पापक अथवा क्रूर ग्रह स्थित हो एवं दूसरे भाव में कोई शुभ ग्रह स्थित हो, तो ऐसी स्त्री सदा सुहागन होती है अर्थात ऐसी स्त्री की मृत्यु उसके पति की मृत्यु से पूर्व ही होती है।              

यदि स्त्री जातक की जन्म कुण्डली के सप्तम भाव में सभी अशुभ एवं पापक ग्रह स्थित होते हैं, तो ऐसी स्त्री अवश्य ही विधवा हो जाती है।

 

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