ज्योतिषशास्त्र : वैदिक पाराशर

कुंडली के केन्द्र व त्रिकोण स्थल एवं वक्री मार्गी ग्रहों का फलादेश

Sandeep Pulasttya

7 साल पूर्व

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जन्म कुण्डली के केन्द्र स्थल एवं त्रिकोण स्थल में स्थित ग्रहों का फलादेश :

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुण्डली में लग्न भाव अर्थात प्रथम भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव एवं दशम भाव को कुण्डली का केन्द्र स्थल कहा जाता है एवं पंचम भाव व नवम भाव को कुंडली में त्रिकोण स्थल कहा जाता है।

किसी जन्म कुण्डली के केन्द्र भाव में स्थित ग्रह, कार्य में सफलता शीघ्र प्रदान करता है एवं कुण्डली के त्रिकोण भाव में स्थित ग्रह, जातक के किसी भी कार्य को सतोगुण व शांति से उन्नति पर पहुँचता है। यदि कुण्डली के चारों केन्द्र भावों में ग्रह होते हैं, तो ऐसा जातक भाग्यवान होता है एवं प्रसिद्धि प्राप्त करता है। यदि कुण्डली स्थित चारों केन्द्र भाव ग्रह शून्य होते है तो ऐसा जातक सामान्य जीवन यापन करता है।

 

ग्रहों का वक्री मार्गी फलादेश :

किसी जातक की जन्म कुण्डली में उस जातक के जन्म के समय जो ग्रह वक्री होता है, तो ऐसा वक्री ग्रह अपने भाव स्थल से पूर्व वाले भाव के फल में वृद्धि करता है एवं ऐसा वक्री ग्रह कुछ तनाव एवं अधिक प्रयत्न के पश्चात सफलता प्रदान कराता है। जन्म कुण्डली में जातक के जन्म के समय जो ग्रह मार्गी होता है, तो ऐसा मार्गी ग्रह शान्ति पूर्ण ढंग से अपनी पुरानी कार्य शैली एवं सादगी के अनुसार कार्य करवाता रहता है।

 

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