8 साल पूर्व
गण्ड मूल को शास्त्रों में गण्डान्त की संज्ञा प्रदान की गई है। यह एक संस्कृत भाषा का शब्द है गण्ड का अर्थ निकृष्ट से है एवं तिथि लग्न व नक्षत्र का कुछ भाग गण्डान्त कहलाता है। अतः तिथि, लग्न एवं नक्षत्र गण्डान्त माने जाते हैं। ज्योतिषाचार्यों की धारणा के अनुसार गण्डान्त में जन्मे जातक की आयु काम होती है अथवा उसका जीवन कष्टों के बीच झूलता रहता है। ज्योतिषाचार्यों का मत यह भी है कि यदि इस नक्षत्र में जन्मा जातक भाग्यवश जीवित रह भी जाये तो माता के लिए कष्ट प्रद रहता है। ऐसा जातक स्वयं बहुत धन सम्पत्ति व वैभव वाला होता है। अतः गण्ड मूल नक्षत्र में जन्मा जातक सदैव ही अशुभ अथवा अशुभ फलदायी होता है ऐसा आवश्यक नहीं है।
यूँ तो नक्षत्र गण्डान्त को ही विशेष प्रभावशाली माना जाता है किन्तु निम्न तीनों गण्डान्तों का विवेचन प्रस्तुत है-
तिथि गन्डान्त- प्रतिपद, षष्ठी व एकादशी तिथि की प्रारम्भ की एक घड़ी अर्थात प्रारम्भिक 24 मिनट एवं पूर्णिमा, पंचमी व दशमी तिथि की अन्त की एक घड़ी, तिथि गन्डान्त कहलाता है।
लग्न गण्डान्त- मीन लग्न के अन्त की आधी घड़ी, कर्क लग्न के अंत व सिंह लग्न के प्रारम्भ की आधी घड़ी, वृश्चिक लग्न के अन्त एवं धनु लग्न की आधी-आधी घड़ी, लग्न गण्डान्त कहलाती है।
नक्षत्र गण्डान्त- खेती, ज्येष्ठा व अश्लेषा नक्षत्र की अन्त की दो दो घडि़याँ अर्थात 48 मिनट अश्विनी, मघा व मूल नक्षत्र के प्रारम्भ की दो दो घडि़याँ, नक्षत्र गण्डान्त कहलाती है।
सामान्यतः अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल व खेती ये छः नक्षत्र गण्डमूल कहे जाते हैं। इनमें चरण विशेष में जन्म होने पर भिन्न भिन्न फल प्राप्त होते है। इन नक्षत्र चरणों में यदि किसी जातक का जन्म हुआ हो तो, जन्म से 27वें दिन में जब पुनः वही नक्षत्र आ जाता है तब विधि विधान पूर्वक पूजन एवं हवनादि के माध्यम से इनकी शान्ति कराई जाती है।
ज्योतिषाचार्यों के मतानुसार उक्त समस्त गण्डमूल नक्षत्रों में से अश्लेषा, ज्येष्ठा एवं मूल ये तीन विशेष प्रभावशाली माने जाते हैं।
नक्षत्र की घडि़याँ व योगफल :-
नक्षत्र घडि़याँ | योगफल |
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अश्लेषा- पहली पांच घड़ी | + 5 = सुख, भोग |
अश्लेषा- 6 घड़ी से 12 घड़ी तक | + 12 = पिता को कष्ट |
अश्लेषा- आगे दो घड़ी | + 14 = माता को कष्ट |
अश्लेषा- आगे तीन घड़ी | + 17 = कामी |
अश्लेषा- आगे 4 घड़ी | + 21 = पितृसम्मान |
अश्लेषा- आगे 8 घड़ी | + 29 = शक्तिमान |
अश्लेषा- आगे 11 घड़ी | + 40 = आत्मनाश |
अश्लेषा- आगे 6 घड़ी | + 46 = त्यागी |
अश्लेषा- आगे 9 घड़ी | + 55 = सुखी |
अश्लेषा- आगे 5 घड़ी | + 60 = धनी |
यदि भभोग साठ घड़ी से ऊपर हो तो उसके उसी अनुपात में भाग कर लेने चाहिए।
यदि ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म हो तो प्रथम चरण बड़े भाई को अशुभ होता है दूसरे चरण में छोटे भाई का नाश होता है। तीसरे चरण में माता को कष्ट तथा चौथे चरण में पिता को कष्ट होता है।
मूल नक्षत्र का चरण के अनुसार फलादेश :-
यदि किसी जातक का जन्म मूल नक्षत्र के पहले चरण में होता है तो ऐसा जातक पिता के लिए कष्टकारी होता है। यदि किसी जातक का जन्म मूल नक्षत्र के दूसरे चरण में में होता है तो ऐसा जातक माता के लिए कष्टकारी होता है। यदि किसी जातक का जन्म मूल नक्षत्र के तीसरे चरण में होता है तो ऐसे जातक के जन्म के पश्चात से ही परिवार को धन हानि प्रारम्भ हो जाती है। मूल नक्षत्र के चौथे चरण में जातक के जन्म लेने पर यदि विधि विधान पूर्वक पूजन हवन आदि के माध्यम से शान्ति करा ली जाए तो सुखकर रहता है।
मूल नक्षत्र का घड़ियों के अनुसार फलादेश :-
मूल नक्षत्र के विभिन्न चरणों में जन्मे जातक के फलादेश का और भी अधिक सूक्ष्म विवेचन घडि़यों के अनुसार किया जाता है। ज्योतिषाचार्यों के मतानुसार मूल नक्षत्र की पहली 8 घड़ी में जन्मा जातक मूल नाश प्रदान करने वाला, इससे अगली 6 घड़ियों में जन्मा जातक धन नाशक, इससे अगली 11 घड़ियों में जन्मा जातक भाई का विनाशक, इससे अगली 9 घड़ियों में जन्मा जातक माता के लिए कष्टप्रद, इससे अगली 14 घड़ियों में जन्मा जातक परिवार को हानि प्रदान कराने वाला, इससे अगली 5 घड़ियों में जन्मा जातक वैभव प्रदान कराने वाला, इससे अगली 4 घड़ियों में जन्मा जातक राज तुल्य सम्मान प्रदान कराने वाला एवं जो जातक मूल नक्षत्र चरणों की अन्तिम 3 घड़ियों में जन्म लेता है, तो ऐसे जातक की आयु कम होती हैं।
मूल का निवास :-
ज्योतिषशास्त्र के मत अनुसार वैशाख, ज्येष्ठ, मार्गशीर्ष अथवा अगहन एवं फाल्गुन मॉस में मूल का वास पाताल में होता है। इसी प्रकार आषाढ़, आश्विन, भाद्रपद और माघ मॉस में मूल का वास स्वर्ग में होता है एवं चैत्र, श्रावण, कार्तिक व पौष मॉस में मूल का वास भूमि पर रहता है।
ज्योतिषशास्त्र के मत अनुसार किसी जातक के जन्म के समय मूल का वास यदि पाताल अथवा स्वर्ग में हो तो सदा शुभ फल समझना चाहिए।
यदि किसी जातक के जन्म के समय मूल का वास भूमि पर हो तो उक्त विवेचित चरणों एवं घड़ियों के अनुसार शुभाशुभ फलादेश समझना चाहिए।
यदि किसी जातक के जन्म समय पर अश्विनी नक्षत्र अपने पहले चरण में हो तो पिता के लिए कष्टप्रद रहता है, दूसरे चरण में जातक का जन्म सुख लाभ प्रदाता होता है, तीसरे चरण में जातक का जन्म राजपद लाभ प्रदाता होता है एवं चौथे चरण में जातक का जन्म राजा तुल्य शक्ति प्रदाता होता है।
किसी जातक का जन्म मघा नक्षत्र के पहले चरण होने पर मामा व नाना के कुल को हानि कारक, दूसरे चरण में जातक का जन्म पिता को भय प्रदाता होता है, तीसरे चरण में जातक का जन्म सुख लाभ प्रदाता एवं चौथे चरण में जातक का जन्म उत्तम विधा एवं बुद्धि प्रदाता होता है।
खेती नक्षत्र के पहले चरण में जन्म लेने पर जातक राजा तुल्य, इस नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्म लेने पर जातक राज पदाधिकारी, तीसरेचरण में जन्म लेने पर जातक सुख एवं ऐश्वर्य वान एवं खेती नक्षत्र के चौथे चरण में जन्म जातक के लिए कष्ट प्रदाता होता है।
इस प्रकार किसी जातक के सम्बन्ध में गण्ड मूल विचार किया जाना ज्योतिष शास्त्र अनुसार निर्धारित व नियमित किया गया है।
अभुक्त मूल विचार :-
ज्येष्ठा नक्षत्र के अन्त की आधी घड़ी तथा मूल नक्षत्र की प्रारम्भ की आधी घड़ी, कुण्डली मिलान कर एक घड़ी अर्थात 24 मिनट का निरंतर समय अभुक्त मूल कहलाता है। ज्योतिषाचार्यों के मतानुसार दोनों नक्षत्रों की 4-4 घडि़याँ इसी प्रकार से अभुक्त कहलाती है। वस्तुतः आधी घड़ी वाला मत ही ज्यादा प्रमाणिक बताया गया है।
इस समय में उत्पन्न होने पर गण्ड नक्षत्र का फल सम्बंधित जातक पर विशेष रूप से प्रभाव दिखाता है। अतः इस समय में जन्मे जातक का विधि विधान पूर्वक पूजन हवनादि से शान्ति करा लेने के 27 दिन पश्चात ही पिता मुख देखे। गेास्वामी तुलसी दास अभुक्त घडि़यों में उत्पन्न हुए थे, अतः उनके पिता ने उन्हें त्याग दिया था।
अधिकाँश ज्योतिषविदों के मतानुसार जातक का त्याग कदापि उचित नहीं होता है। वस्तुतः शान्ति आदि कराकर ऐसे जातक को भी अपने अन्य जातकों की प्रकार ही सस्नेह पालन करना चाहिए। एस विदित है कि ऐसे जातक को त्यागने से अथवा उसके साथ बुरा व्यवहार करे से अथवा उससे घृणा करने से ऐसा व्यवहार करने वाला व्यक्ति सम्बंधित जातक के ग्रह अंश को बहुत अंशों तक बाँट लेता है, अतः ऐसे जातक से घृणा करना अथवा उसके साथ अशिष्ट व्यवहार करना स्वमं अपने पर अपराध करने के सामान है।
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