8 साल पूर्व
वास्तु शास्त्र में घर के भीतर पूजा कक्ष बनाने हेतु विभिन्न परामर्श व नियम दिए गए हैं। उनमें से कुछ प्रमुख अंशों की विवेचना निम्नवत की जा रही है -
♦ पूजा कक्ष की स्थापना हेतु घर का ईशान कोण अर्थात उत्तर-पूर्वी दिशा वाला भाग वास्तु शास्त्र अनुसार सर्वोत्तम बताया गया है। यदि उत्तर-पूर्व दिशा में पूजा कक्ष बनाना सम्भव न हो तो इसे पूर्व दिशा अथवा उत्तर दिशा में भी बनाया जा सकता है। यदि इन दिशाओं में भी पूजा कक्ष हेतु स्थान उपलब्ध न हो तो शयन कक्ष व बैठक को छोड़कर घर के किसी भी कमरे का उत्तर-पूर्वी कोना पूजा स्थल बनाने हेतु चुना जा सकता है।
♦ वास्तु शास्त्र शयन कक्ष में पूजा स्थल बनाने की संस्तुति नहीं करता। किन्तु यदि किसी मजबूरीवश ऐसी स्थिति आन ही पड़े, तो पूजा स्थल को पर्दे आदि से ढकने की व्यवस्था करें।
♦ वास्तु शास्त्र की मान्यता अनुसार पूजा कक्ष की स्थापना वायव्य कोण अर्थात उत्तर-पश्चिम दिशा, आग्नेय कोण अर्थात दक्षिण-पूर्व दिशा, नैर्ऋत्य कोण अर्थात दक्षिण-पश्चिम दिशा, पश्चिम दिशा एवं दक्षिण दिशा में करने से अनेकों प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न होने लगती हैं।
♦ पूजा कक्ष की उत्तर-पूर्वी दिशा में देवी अथवा देवताओं के चित्रों एवं मूर्तियों को रखने का परामर्श वास्तु शास्त्र में किया गया है।
♦ ईश्वर के चित्र के साथ अपने मृत पूर्वजों के चित्र पूजा कक्ष में नहीं लगाने चाहिएं।
♦ पूजा कक्ष के उत्तर-पूर्वी भाग में धार्मिक पुस्तकें एवं दक्षिण पूर्वी भाग में हवन सामग्री रखने का वास्तु शास्त्र परामर्श देता है।
♦ आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति हेतु साधना करते समय साधक को अपना चेहरा ईशान कोण अर्थात उत्तर-पूर्वी दिशा या पूर्व दिशा की ओर एवं भौतिक सुख की प्राप्ति करने हेतु साधक को अपना चेहरा पश्चिम दिशा की ओर करके ही साधना करनी चाहिए। किसी भी दशा में दक्षिण की ओर मुँह करके साधना न करें।
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